एक पंथ दो काज - लघुकथा -
"हल्लो, मिश्रा जी, गुप्ता बोल रहा हूँ।"
"अरे यार नाम बताने की आवश्यकता नहीं है।मेरे मोबाइल में आपका नाम आ गया। बोलो सुबह सुबह कैसे याद किया?"
"आज आपकी थोड़ी मदद चाहिये।"
"कैसी बात करते हो मित्र।आपके लिये तो आधी रात को तैयार हैं।हुकम करो।"
"अरे भाई आज राम नवमी है।कुछ बच्चे बच्चियों को जिमाना है।मैडम का आदेश हुआ कि सोसाइटी में से अपने दोस्तों के बच्चे बुलालो।"
"ये तो बहुत टेढ़ा मामला है।लॉक डाउन का सरकारी आदेश है।उसकी अवहेलना तो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 3, 2020 at 5:55pm — 6 Comments
समय :
न जाने किस अँधेरे की जेब में
सिमट जाता है समय
न जाने कब उजालों के शिखर पर
कहकहे लगाता है समय
अंतहीन होती है समय की सड़क
बिना पैरों का ये पथिक
अपने काँधों पर ढोता है सदा
कल, आज और कल की परतों में
साँस लेते लम्हों की अनगिनित दास्तानें
और नुकीली सुईयों के पाँव के नीचे रौंदे गए
आफ़ताबी अरमानों के बेनूर आसमान
क्षणों की माल धारण किये
उन्नत भाल का ये आहटहीन अश्व
सृष्टि चक्र का वो वाहक है…
Added by Sushil Sarna on April 3, 2020 at 3:00pm — 4 Comments
क्षणिकाएँ :
क्या ख़बर
हम फिर
मिलें न मिलें
मगर
छोड़ जाऊँगा मैं
समय के भाल पर
हमारे मिलन की गवाह
परछाईयाँ
काँपते चाँद की
.............................
झुलसे हुए होठों पर
रुक गया
फिसल कर
एक अश्क
बेवफ़ाई का
....................
खाली घड़ा
सूखी रोटी
टूटे छप्परों से झाँकती
झूठी आस की
धवल चाँदनी
सुशील सरना /2.4.20
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 2, 2020 at 5:20pm — 4 Comments
Added by Rachna Bhatia on April 2, 2020 at 1:31pm — 4 Comments
2122 2122 212
.
देख साँसों में बसा है ओ बी ओ
मेरी क़िस्मत में लिखा है ओ बी ओ
कितने आए और कितने ही गए
शान से अब तक खड़ा है ओ बी ओ
बढ़ गई तौक़ीर मेरी और भी
तू मुझे जब से मिला है ओ बी ओ
हों वो 'बाग़ी' या कि भाई 'योगराज'
तू सभी का लाडला है ओ बी ओ
भाई 'सौरभ' शान से कहते…
Added by Samar kabeer on April 1, 2020 at 9:00pm — 18 Comments
अंतस के हिम निर्झर से जब
भाव पिघलने लगते है|
गीतों में ढलने को मेरे
शब्द मचलने लगते हैं ॥
***
लेखन आता नहीं मुझे पर लिखता हृद उद्गारों को |
और बुझा लेता हूँ लिखकर हिय तल के अंगारों को |
कहाँ निभा पाता हूँ अक्सर मैं छंदो का अनुशासन
अलंकार-से भूल गया हूँ शब्दों के श्रृंगारों को |
भाषा शुद्ध न हुई भले ही
लय सुर ताल रहे बाक़ी
बिम्ब-प्रतीक सृजन से जब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on April 1, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
22 22 22 22
शोर हवाओं ने बरपाए,
घाव हरे होने को आए।1
बंटवारे का दर्द सुना,अब
देख कलेजा मुंह को धाए।2
रोजी खातिर परदेश गए
घर भागे सब,धक्के खाए।3
आफत ऐसी आई उड़कर
सबने अपने रंग दिखाए।4
बबुआ भैया जो कहते थे,
सबने फिर से हाथ उठाए।5
बांट रहे कुछ मुंह की रबड़ी
खाने को भूखे ललचाए।6
तीर कमान चढ़ाए चलते
दोमुख सबको कौन बताए?7
मांग बना जो राजा,बैठा
दाता लाठी -…
Added by Manan Kumar singh on April 1, 2020 at 1:20pm — 4 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है
हयात जैसे बशर लग रही सिनाँ पर है
**
हमारा मुल्क परेशान और ख़ौफ़ में है
सुकून-ओ-चैन की अब जुस्तजू यहाँ पर है
**
वजूद अपना बचाने में अब लगा है बशर
न जाने आज ख़ुदा छुप गया कहाँ पर है
**
बचेगा क़ह्र से कोविड के आज कैसे भला
बशर पे ज़ुल्म-ओ-सितम उसका आसमाँ पर है
**
वहाँ की प्यास भला दूर क्या करे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
सुन रहे हैं कि वो इक ऐसी दवाई देगा
जिससे अंधे को भी रातों में दिखाई देगा
प्यार से उसने बुलाया है मुझे मक़्तल में
जानता हूँ मैं जो दावत में क़साई देगा
ऐसे चिल्लाओ कि आवाज़ वहाँ तक जाए
एक दिन तो सभी बहरों को सुनाई देगा
पास रहता हूँ तो मुंह फेर के चल देता है
दूर जाऊँगा तो आने की दुहाई देगा
क़ैदख़ाने में उसी ने ही रखा सालों तक
जिसने उम्मीद जताई थी रिहाई देगा
घुप अंधेरे से …
Added by सालिक गणवीर on April 1, 2020 at 12:00pm — 5 Comments
Added by amita tiwari on April 1, 2020 at 1:30am — 1 Comment
मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी
नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसी
गफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब
बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसी
मौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला
क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसी
देखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें
चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसी
गालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ
मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसी
अब करोना क़हर…
ContinueAdded by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
तोड़ने से पहले मुझको आजमा कर देख ले
अपने घर के एक कोने में सजा कर देख ले
आज भी ज़िंदा है दुनिया में वफ़ा की रोशनी
अपने आंगन में कोई पौधा लगाकर देख ले
कोई अक्षर तुझको मिल जाएगा मेरे नाम का
अपने हाथों की लकीरों को मिला कर देख ले
हौसला करने से मिल ही जाता है सब कुछ यहाँ
वक़्त की भट्टी में बस खुद को तपा कर देख ले
सबसे बढ़कर खूबसूरत कैसे हैं तेरी हया
आइने को आंखों में काजल सजाकर देख…
Added by मनोज अहसास on March 31, 2020 at 12:31am — 6 Comments
कैसा हाहाकार मचा है मालिक करुणा बरसाओ
सन्नाटा खुद चीख रहा है मालिक करुणा बरसाओ
भूख, गरीबी, लाचारी से पहले ही आतंकित थे
एक नया तूफान उठा है मालिक करुणा बरसाओ
वादा तुमने किया था सबसे भीड़ पड़ी तो आओगे
खतरे में फिर मानवता है मालिक करुणा बरसाओ
कौन सुनेगा टेर हमारी बिना तुम्हारे ओ पालक
बेबस मानव कांप गया है मालिक करुणा बरसाओ
तुमने साथ दिया न तो फिर किसके दर पर जाएंगे
सबके मन मे व्याकुलता है मालिक करुणा…
Added by मनोज अहसास on March 30, 2020 at 10:19pm — 1 Comment
आसमाँ .....
बहुत ढूँढा
आसमाँ तुझे
दर्द की लकीरों में
मोहब्बत के फ़कीरों में
ख़ामोश जज़ीरों में
मगर
तू छुपा रहा
धड़कन की तड़पन में
यादों के दर्पण में
कलाई के कंगन में
वक्त सरकता रहा
सागर छलकता रहा
अब्र बरसता रहा
मगर
तू न समझा
मैं किसे ढूँढता हूँ
पागल आसमाँ
मैं तो
इस दिल की ज़मी का
आँखों की नमी का
अपनी ज़बीं का
आसमाँ ढूँढता हूँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 30, 2020 at 8:30pm — 3 Comments
हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें
बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकें
नहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन
हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकें
हमेशा ही रही तूफ़ान से यारी
घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकें
हमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे
कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकें
क़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से
मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकें
पुराना डर मुझे बेचैन करता जब
कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 30, 2020 at 4:30pm — 2 Comments
डरते हैं जो मुश्किल से घबराते हैं ख़तरों से ,
लरज़ीदः क़दम फिर वो मन्ज़िल को नहीं पाते ,,
गर अ़ज़्म जो पुख़्ता हो लें काम भी हिम्मत से,
तो लोग सितारों से आगे हैं निकल जाते ।
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 29, 2020 at 12:19pm — 2 Comments
Added by Bhupender singh ranawat on March 29, 2020 at 10:15am — 1 Comment
स्नेह-धारा
कल्पना-मात्र नहीं है यह स्नेह का बंधन ...
उस स्वप्निल प्रथम मिलन में, प्रिय
कुछ इस तरह लिख दी थीं तुमने
मेरे वसन्त की रातें
मेरी समस्याओं ने
अव्यव्स्थाओं ने, अभिलाषाओं…
ContinueAdded by vijay nikore on March 29, 2020 at 8:00am — 3 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
तड़प उनकी भी चाहत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
लगी आतिश मुहब्बत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
मिलन के बिन तड़पते हैं वो क्या वैसे कि जैसे हम
जो बेचैनी है सोहबत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
हुआ है अनमना सा दिल हुई कुछ शाम भी बोझिल
तम्मना आज ख़िलवत की इधर जैसी उधर भी क्या ?
**
बग़ैर इक दूसरे के जी सकें और मर न पाएँगे
ज़रूरत ऐसी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 29, 2020 at 12:00am — 7 Comments
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