Everyone's Blog Posts - Open Books Online2024-03-19T10:52:58Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/blog/feed?xn_auth=noकाश कहीं ऐसा हो जाताtag:openbooks.ning.com,2024-03-19:5170231:BlogPost:11167052024-03-19T00:32:47.000ZAMAN SINHAhttp://openbooks.ning.com/profile/AMANSINHA
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">काश कहीं ऐसा हो जाता, </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं जगता तू सो जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मेरी हंसी तुझे मिल जाती </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरे बदले मैं रो लेता </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">काश कहीं ऐसा हो जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तू चलता मैं थक जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पैर तेरे कभी ना रुकते…</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">काश कहीं ऐसा हो जाता, </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं जगता तू सो जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मेरी हंसी तुझे मिल जाती </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरे बदले मैं रो लेता </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">काश कहीं ऐसा हो जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तू चलता मैं थक जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पैर तेरे कभी ना रुकते तू </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अपनी मंज़िल को पाता </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">काश कहीं ऐसा हो जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दोनों का मन एक जैसा होता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सोच जो मेरे मन में आती </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वही खयाल तेरा भी होता</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">काश कहीं ऐसा हो जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरे तन में मेरा मन होता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तो मैं तुझको याद ना करता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ना तू मेरे बीन रह पाता </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">काश कहीं ऐसा हो जाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दर्द को तेरे मैं ले पाता </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तू चैन से साँसे लेता और</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं चैन से फिर सो जाता</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">"मौलिक व स्वरचित" </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अमन सिन्हा </span></p>दोहा पंचक. . .tag:openbooks.ning.com,2024-03-18:5170231:BlogPost:11167022024-03-18T10:33:25.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा पंचक. . . . .</p>
<p></p>
<p>महफिल में तनहा जले, खूब हुए बदनाम । <br></br>गैरों को देती रही, साकी भर -भर जाम ।।</p>
<p></p>
<p>गज़ब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज़ । <br></br>सुर्खी सारे कह गई, बीती शब के राज़ ।।</p>
<p></p>
<p>साथी है अब वेदना, विरही मन की यार ।<br></br>विस्मृत होता ही नहीं, वो अद्भुत संसार ।।</p>
<p></p>
<p>उसे भुलाने के सभी, निष्फल हुए प्रयास ।<br></br>मदन भाव उन्नत हुए, मन में मचली प्यास ।।</p>
<p></p>
<p>कोई पागल हो गया, किसी ने खोये होश ।<br></br>आशिक को घायल करे, मदमाती आगोश…</p>
<p>दोहा पंचक. . . . .</p>
<p></p>
<p>महफिल में तनहा जले, खूब हुए बदनाम । <br/>गैरों को देती रही, साकी भर -भर जाम ।।</p>
<p></p>
<p>गज़ब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज़ । <br/>सुर्खी सारे कह गई, बीती शब के राज़ ।।</p>
<p></p>
<p>साथी है अब वेदना, विरही मन की यार ।<br/>विस्मृत होता ही नहीं, वो अद्भुत संसार ।।</p>
<p></p>
<p>उसे भुलाने के सभी, निष्फल हुए प्रयास ।<br/>मदन भाव उन्नत हुए, मन में मचली प्यास ।।</p>
<p></p>
<p>कोई पागल हो गया, किसी ने खोये होश ।<br/>आशिक को घायल करे, मदमाती आगोश ।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p>सुशील सरना / 18-3-24</p>आँख मिचौलीtag:openbooks.ning.com,2024-03-16:5170231:BlogPost:11169092024-03-16T00:46:02.000ZAMAN SINHAhttp://openbooks.ning.com/profile/AMANSINHA
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span> <span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ…</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span> <span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span> <span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कहाँ है तू पर्दे के पीछे, या जा छुपा पलंग के नीचे </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कैसे मैं तुझे ढूंढ निकालूँ जाने कहाँ छुप के बैठा है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">गर तू बाहर ना आया सूरत ना अपनी दिखलाया </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं तुझे मिल पाने में फिर विफल कहीं ना हो जाऊँ </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span> <span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span> <span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">घर का कोना कोना देखा बाग देखा बगीचा देखा </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">किधर तू छुप के जा बैठा है थक जाऊँ तुझे खोज ना पाऊँ</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ऊपर नीचे आगे पीछे अंदर बाहर द्वार दरबार </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब अपने आँचल में देखा मैं तुझको तब पाऊँ </span></p>
<p><br/><span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span> <span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span> <span style="font-weight: 400;">मैं आऊँ</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">"मौलिक व अप्रकाशित" </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अमन सिन्हा </span></p>ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )tag:openbooks.ning.com,2024-03-11:5170231:BlogPost:11166792024-03-11T23:46:55.000Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
<p>221--2121--1221--212</p>
<p></p>
<p>दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही</p>
<p>जी कर भी क्या करोगे जो इज़्ज़त नहीं रही</p>
<p></p>
<p>झूठों की सल्तनत में हुआ सच का सर क़लम </p>
<p>ऐसा भी सब में कहने की हिम्मत नहीं रही</p>
<p></p>
<p>जो फ़ाइलों में पुल था बना, कब का ढह गया</p>
<p>सरकारी काम काज में बरक़त नहीं रही</p>
<p></p>
<p>संसार लेन देन का बाज़ार बन गया</p>
<p>रिश्तों में अब लगाव की क़ीमत नहीं रही</p>
<p></p>
<p>देखो तो काम एक भी हमने कहाँ किया</p>
<p>पूछो तो एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं…</p>
<p>221--2121--1221--212</p>
<p></p>
<p>दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही</p>
<p>जी कर भी क्या करोगे जो इज़्ज़त नहीं रही</p>
<p></p>
<p>झूठों की सल्तनत में हुआ सच का सर क़लम </p>
<p>ऐसा भी सब में कहने की हिम्मत नहीं रही</p>
<p></p>
<p>जो फ़ाइलों में पुल था बना, कब का ढह गया</p>
<p>सरकारी काम काज में बरक़त नहीं रही</p>
<p></p>
<p>संसार लेन देन का बाज़ार बन गया</p>
<p>रिश्तों में अब लगाव की क़ीमत नहीं रही</p>
<p></p>
<p>देखो तो काम एक भी हमने कहाँ किया</p>
<p>पूछो तो एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं रही</p>
<p></p>
<p>दर पर ख़ुदा के सिर्फ़ सवाली ही रह गए </p>
<p>कहने को सर झुके हैं, अक़ीदत नहीं रही</p>
<p></p>
<p>ऐसा नहीं कि दूर हैं मुझसे ख़ुशी के पल</p>
<p>बस मुझको मुस्कुराने की आदत नहीं रही </p>
<p></p>
<p>दिनेश कुमार</p>
<p></p>
<p>( मौलिक और अप्रकाशित )</p>
<p></p>दोहा पंचक. . . . .tag:openbooks.ning.com,2024-03-10:5170231:BlogPost:11165962024-03-10T09:43:35.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा पंचक. . . .</p>
<p></p>
<p>कर्मों के परिणाम से, गाफिल क्यों इंसान ।<br></br>ऐसे जीता जिंदगी, जैसे हो भगवान ।।</p>
<p>भौतिक युग की सम्पदा, कब देती आराम ।<br></br>अर्थ पाश में जिंदगी , भटके चारों याम ।।</p>
<p>नश्वर तन को मानता, अजर -अमर परिधान ।<br></br>बस में समझे साँस को, यह दम्भी इंसान ।।</p>
<p>साथ चली किसके भला, अर्थ दम्भ की शान।<br></br>खाक चिता पर हो गई, इंसानी पहचान ।।</p>
<p>कहे स्वयंभू स्वयं को , माटी का इंसान ।<br></br>मुट्ठी भर अवशेष बस,मैं -मैं की पहचान ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना /…</p>
<p>दोहा पंचक. . . .</p>
<p></p>
<p>कर्मों के परिणाम से, गाफिल क्यों इंसान ।<br/>ऐसे जीता जिंदगी, जैसे हो भगवान ।।</p>
<p>भौतिक युग की सम्पदा, कब देती आराम ।<br/>अर्थ पाश में जिंदगी , भटके चारों याम ।।</p>
<p>नश्वर तन को मानता, अजर -अमर परिधान ।<br/>बस में समझे साँस को, यह दम्भी इंसान ।।</p>
<p>साथ चली किसके भला, अर्थ दम्भ की शान।<br/>खाक चिता पर हो गई, इंसानी पहचान ।।</p>
<p>कहे स्वयंभू स्वयं को , माटी का इंसान ।<br/>मुट्ठी भर अवशेष बस,मैं -मैं की पहचान ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 10-3-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता )tag:openbooks.ning.com,2024-03-10:5170231:BlogPost:11167802024-03-10T01:40:35.000Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
<p>1212--1122--1212--22</p>
<p></p>
<p>अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता</p>
<p>ग़ज़ल सुनो! मैं लतीफ़े सुना नहीं सकता</p>
<p></p>
<p>ग़मों के दौर में जो मुस्कुरा नहीं सकता</p>
<p>वो ज़िंदगी से यक़ीनन निभा नहीं सकता</p>
<p></p>
<p>ख़ुद अपने सीने पे ख़ंजर चला नहीं सकता</p>
<p>हर एक दोस्त को मैं आज़मा नहीं सकता </p>
<p></p>
<p>वो जिसकी ताल ही है मेरी धड़कनों का सबब</p>
<p>वही तराना-ए-उल्फ़त मैं गा नहीं सकता </p>
<p></p>
<p>वो आसमाँ का सितारा है, मैं ज़मीं का परिंद</p>
<p>मैं ख़्वाब में भी क़रीब…</p>
<p>1212--1122--1212--22</p>
<p></p>
<p>अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता</p>
<p>ग़ज़ल सुनो! मैं लतीफ़े सुना नहीं सकता</p>
<p></p>
<p>ग़मों के दौर में जो मुस्कुरा नहीं सकता</p>
<p>वो ज़िंदगी से यक़ीनन निभा नहीं सकता</p>
<p></p>
<p>ख़ुद अपने सीने पे ख़ंजर चला नहीं सकता</p>
<p>हर एक दोस्त को मैं आज़मा नहीं सकता </p>
<p></p>
<p>वो जिसकी ताल ही है मेरी धड़कनों का सबब</p>
<p>वही तराना-ए-उल्फ़त मैं गा नहीं सकता </p>
<p></p>
<p>वो आसमाँ का सितारा है, मैं ज़मीं का परिंद</p>
<p>मैं ख़्वाब में भी क़रीब उसके जा नहीं सकता </p>
<p></p>
<p>कहानी ख़त्म की, उसने ये बात कहते हुए </p>
<p>उसे मैं चाह तो सकता हूँ, पा नहीं सकता</p>
<p></p>
<p>मेरी ज़बान पकड़ते हैं, मेरे ऐब 'दिनेश'</p>
<p>मैं ज़िंदगी की कहानी सुना नहीं सकता </p>
<p></p>
<p>दिनेश कुमार</p>
<p></p>
<p>( मौलिक और अप्रकाशित ) </p>दोहा पंचक. . . . .नारीtag:openbooks.ning.com,2024-03-09:5170231:BlogPost:11167782024-03-09T12:05:48.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा पंचक. . . नारी</p>
<p></p>
<p>नर नारी से श्रेष्ठ है, हुई पुरानी बात । <br></br>जीवन के हर क्षेत्र में, नारी देती मात ।।</p>
<p></p>
<p>नर नारी के बीच अब, नहीं जीत अरु हार ।<br></br>बनी शक्ति पर्याय अब, वर्तमान की नार ।।</p>
<p></p>
<p>कंधे से कंधा मिला, दे जीवन को अर्थ ।<br></br>नारी अब हर क्षेत्र में, लगने लगी समर्थ ।।</p>
<p></p>
<p>अनुपम कृति है ईश की, इस जग का आधार ।<br></br>लगे अधूरा सृष्टि का , नारी बिन शृंगार ।।</p>
<p></p>
<p style="text-align: left;">आसमान छूने चली, कल की अबला नार ।<br></br>देख…</p>
<p>दोहा पंचक. . . नारी</p>
<p></p>
<p>नर नारी से श्रेष्ठ है, हुई पुरानी बात । <br/>जीवन के हर क्षेत्र में, नारी देती मात ।।</p>
<p></p>
<p>नर नारी के बीच अब, नहीं जीत अरु हार ।<br/>बनी शक्ति पर्याय अब, वर्तमान की नार ।।</p>
<p></p>
<p>कंधे से कंधा मिला, दे जीवन को अर्थ ।<br/>नारी अब हर क्षेत्र में, लगने लगी समर्थ ।।</p>
<p></p>
<p>अनुपम कृति है ईश की, इस जग का आधार ।<br/>लगे अधूरा सृष्टि का , नारी बिन शृंगार ।।</p>
<p></p>
<p style="text-align: left;">आसमान छूने चली, कल की अबला नार ।<br/>देख पराक्रम नार का, चकित हुआ संसार ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 9-3-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( आप क्यूँ दूर दूर हैं हम से )tag:openbooks.ning.com,2024-03-09:5170231:BlogPost:11168782024-03-09T03:00:00.000Zदिनेश कुमारhttp://openbooks.ning.com/profile/0bbsmwu5qzvln
<p>2122--1212--22</p>
<p></p>
<p>वोदका, व्हिस्की और कभी रम से</p>
<p>दिल को निस्बत है क़िस्सा ए ग़म से</p>
<p></p>
<p>ख़्वाब झरते हैं चश्मे पुर-नम से</p>
<p>हम बहलते हैं अपने ही ग़म से</p>
<p></p>
<p>उसकी मर्ज़ी ही अपनी मर्ज़ी है </p>
<p>क्यूँ गिला ज़िंदगी को फिर हम से </p>
<p></p>
<p>छूट जाता जो मोह अपनों का</p>
<p>बुद्ध बन जाते हम भी गौतम से</p>
<p></p>
<p>कब तलक देखें हम तेरी तस्वीर</p>
<p>प्यास बुझती नहीं है शबनम से</p>
<p></p>
<p>शाम होने लगी है जीवन की</p>
<p>रंग उड़ने लगे हैं मौसम…</p>
<p>2122--1212--22</p>
<p></p>
<p>वोदका, व्हिस्की और कभी रम से</p>
<p>दिल को निस्बत है क़िस्सा ए ग़म से</p>
<p></p>
<p>ख़्वाब झरते हैं चश्मे पुर-नम से</p>
<p>हम बहलते हैं अपने ही ग़म से</p>
<p></p>
<p>उसकी मर्ज़ी ही अपनी मर्ज़ी है </p>
<p>क्यूँ गिला ज़िंदगी को फिर हम से </p>
<p></p>
<p>छूट जाता जो मोह अपनों का</p>
<p>बुद्ध बन जाते हम भी गौतम से</p>
<p></p>
<p>कब तलक देखें हम तेरी तस्वीर</p>
<p>प्यास बुझती नहीं है शबनम से</p>
<p></p>
<p>शाम होने लगी है जीवन की</p>
<p>रंग उड़ने लगे हैं मौसम से</p>
<p></p>
<p>चाँद दरिया में रोज़ उतरता है</p>
<p>आप क्यूँ दूर दूर हैं हम से</p>
<p></p>
<p>दिनेश कुमार</p>
<p></p>
<p>( मौलिक और अप्रकाशित ) </p>
<p></p>मेरे नाम की पातिtag:openbooks.ning.com,2024-03-08:5170231:BlogPost:11167742024-03-08T17:39:44.000ZAMAN SINHAhttp://openbooks.ning.com/profile/AMANSINHA
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आज गाँव से पाति आई,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">माँ के चरणों की मिट्टी लायी</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वैसे तो ये बस धूल है लेकिन,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इसमे अपनों की महक समाई</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पाति में सबके हिस्से है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सबके अपने-अपने किस्से है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कहीं प्रेम है, कहीं…</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आज गाँव से पाति आई,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">माँ के चरणों की मिट्टी लायी</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वैसे तो ये बस धूल है लेकिन,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इसमे अपनों की महक समाई</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पाति में सबके हिस्से है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सबके अपने-अपने किस्से है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कहीं प्रेम है, कहीं वात्सल्य है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">और पिता के दर्द छिपे है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जैसे-जैसे पाति खुलती,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">याद सभी की साथ में चलती</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सब के मन की बात है उसमे,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">शब्द भाव में है घुल जाती</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">लिफ़ाफ़े पर नाम मेरा है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अंदर सारा हाल लिखा है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">क्युं परदेशी मैं बन बैठा हूँ,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">सभी के मन को ये खलता है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">थल की दूरी पाट दे कोई,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मन की दूरी पाट ना पाए</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">देश पड़ोसी हो तो क्या है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जो वो मन का मीत ना होए</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अबके बरस जो फसल उगाई,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बिन मेरे ना होत कटाई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अंधियारी सुनी कुटिया में,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुझ बिन न दीप जलावे कोई</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वैसे तो सब हीं ज़िंदा है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पर दिखने में लगते मुर्दा है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आँख से आँसू अब ना बहते,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब डोर लहू जुड़े न रहते</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तोरे बापू कुछ ना कहते,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरे आहट को तकते रहते</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">माँ भी तेरी चल ना सकती,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पर तुलसी की फेरे करती</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरी बहुरिया बन गयी दासी,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तुझ बिन उसकी यौवन उदासी</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बस सिंदूर का शृंगार दिखे है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">मन तो लाचार दिखे है</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">डोली चढ़त बहनिया बोली,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">क्यूँ ना तेरे संग वो रो ली</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">क्यूँ तुझसे मिलने के पहले,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हाथ ये उसकी पीली होली</span></p>
<p><br/><span style="font-weight: 400;">अब तो वो आम भी सूखा,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जिसमे तूने जान था फूंका</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ताल का पानी हो गया खारा,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरे जाने से जल गया सारा</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अब तो लौट तू घर को आजा,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">एक बात को दरस दिखा जा,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ऐसे धन का करना क्या है,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब अपनों से दूर रहना है</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;"> </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">इतना तो हम कर पाएंगे,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">तेरा पेट भी भर पाएंगे</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पर जो तु हमरे साथ ना होगा,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हम एक दाना ना खा पाएंगे</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जैसे तुझ तक पाति पहुंचे,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अपनी बेचैनी भी पहुंचे</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पांव तेरे रुके न तबतक,</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब तक तू घर को ना पहुंचे</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">"मौलिक व अप्रकाशित" </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अमन सिन्हा </span></p>ग़ज़ल: सही सही बता है क्याtag:openbooks.ning.com,2024-03-06:5170231:BlogPost:11168682024-03-06T13:30:00.000ZAazi Tamaamhttp://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>1212 1212</p>
<p></p>
<p>सही सही बता है क्या</p>
<p>भला है क्या बुरा है क्या</p>
<p></p>
<p>न इश्क़ है न चारागर</p>
<p>तो दर्द की दवा है क्या</p>
<p></p>
<p>लहू सा लाल लाल है</p>
<p>ये आँख में जमा है क्या</p>
<p></p>
<p>बुझे बुझे से लोग हैं</p>
<p>ये ज़िंदगी सज़ा है क्या</p>
<p></p>
<p>अजीब कशमकश सी है</p>
<p>ये दिल तुझे हुआ है क्या</p>
<p></p>
<p>सुकून है न चैन है</p>
<p>यूँ जीने में मज़ा है क्या</p>
<p></p>
<p>जो खाक़ हो रहे हैं हम</p>
<p>किसी कि बद्दुआ है क्या</p>
<p></p>
<p>जला दिया तो…</p>
<p>1212 1212</p>
<p></p>
<p>सही सही बता है क्या</p>
<p>भला है क्या बुरा है क्या</p>
<p></p>
<p>न इश्क़ है न चारागर</p>
<p>तो दर्द की दवा है क्या</p>
<p></p>
<p>लहू सा लाल लाल है</p>
<p>ये आँख में जमा है क्या</p>
<p></p>
<p>बुझे बुझे से लोग हैं</p>
<p>ये ज़िंदगी सज़ा है क्या</p>
<p></p>
<p>अजीब कशमकश सी है</p>
<p>ये दिल तुझे हुआ है क्या</p>
<p></p>
<p>सुकून है न चैन है</p>
<p>यूँ जीने में मज़ा है क्या</p>
<p></p>
<p>जो खाक़ हो रहे हैं हम</p>
<p>किसी कि बद्दुआ है क्या</p>
<p></p>
<p>जला दिया तो जल गया</p>
<p>ये जिस्म बे-वफ़ा है क्या</p>
<p></p>
<p>बहक रहे हैं देख कर</p>
<p>बदन तेरा नशा है क्या</p>
<p></p>
<p>हरेक शय मलंग है</p>
<p>बहार में अदा है क्या</p>
<p></p>
<p>उसी की आरज़ू है क्यों</p>
<p>'तमाम' वो ख़ुदा है क्या</p>
<p></p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित) </p>है खुश खूब झकझोर डाली हवा- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'tag:openbooks.ning.com,2024-03-06:5170231:BlogPost:11168612024-03-06T05:34:27.000Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p></p>
<p dir="ltr"><a>१२२/१२२/१२२/१२</a></p>
<p dir="ltr">नगर भर चले दौड़ काली हवा<br></br> है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।<br></br> *<br></br> गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर<br></br> बजा पात कहती है ताली हवा।२।<br></br> *<br></br> कभी दान जीवन सभी को दिया<br></br> हुई आज लेकिन सवाली हवा।३।<br></br> *<br></br> कहाँ से प्रदूषण धरा का मिटे<br></br> नहीं सीख पायी जुगाली हवा।४।<br></br> *<br></br> कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन<br></br> गयी लौट कुल्लू मनाली हवा।५।<br></br> *<br></br> तनिक तो कहीं बात होती है कुछ<br></br> किसी की चली कब है…</p>
<p></p>
<p dir="ltr"><a>१२२/१२२/१२२/१२</a></p>
<p dir="ltr">नगर भर चले दौड़ काली हवा<br/> है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।<br/> *<br/> गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर<br/> बजा पात कहती है ताली हवा।२।<br/> *<br/> कभी दान जीवन सभी को दिया<br/> हुई आज लेकिन सवाली हवा।३।<br/> *<br/> कहाँ से प्रदूषण धरा का मिटे<br/> नहीं सीख पायी जुगाली हवा।४।<br/> *<br/> कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन<br/> गयी लौट कुल्लू मनाली हवा।५।<br/> *<br/> तनिक तो कहीं बात होती है कुछ<br/> किसी की चली कब है खाली हवा।६।<br/> *<br/> उड़ाकर दुपट्टा बिखेरे वो लट<br/> हिलाती है कानों की बाली हवा।७।<br/> *<br/> घुटा खूब दम तब मगर अब चली<br/> तेरे आगमन से निराली हवा।८।<br/> *<br/> मौलिक/अप्रकाशित<br/> लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</p>दोहा पंचक. . . . .tag:openbooks.ning.com,2024-03-05:5170231:BlogPost:11165912024-03-05T10:15:24.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा पंचक . . .</p>
<p></p>
<p>बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।<br></br>इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।</p>
<p></p>
<p>सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।<br></br>कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।</p>
<p></p>
<p>सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।<br></br>वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।</p>
<p></p>
<p>छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।<br></br>सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।</p>
<p></p>
<p>कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।<br></br>देह क्षुधा के दौर में,…</p>
<p>दोहा पंचक . . .</p>
<p></p>
<p>बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।<br/>इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।</p>
<p></p>
<p>सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।<br/>कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।</p>
<p></p>
<p>सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।<br/>वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।</p>
<p></p>
<p>छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।<br/>सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।</p>
<p></p>
<p>कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।<br/>देह क्षुधा के दौर में, प्रेम हुआ निर्गंध ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 5-3-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>दोहा सप्तक. . . जीवन तो अनमोल हैtag:openbooks.ning.com,2024-03-03:5170231:BlogPost:11168542024-03-03T09:06:54.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा सप्तक - जीवन तो अनमोल है</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग ।<br></br>पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग ।1।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार ।<br></br>कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार ।2।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।<br></br>अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ ।3।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप ।<br></br>इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप ।4।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।<br></br>बहुत कठिन है जानना , इसका अर्थ…</p>
<p>दोहा सप्तक - जीवन तो अनमोल है</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग ।<br/>पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग ।1।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार ।<br/>कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार ।2।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।<br/>अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ ।3।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप ।<br/>इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप ।4।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।<br/>बहुत कठिन है जानना , इसका अर्थ विशाल ।5।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, रखना इसका मान ।<br/>देना इसकी गंध को, एक नई पहचान ।6।</p>
<p></p>
<p>जीवन तो अनमोल है, सुख - दुख इसके तीर ।<br/>एक तीर पर कहकहे, एक तीर पर पीर ।7।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 3-3-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>सम्राट समुद्रगुप्तtag:openbooks.ning.com,2024-03-01:5170231:BlogPost:11165782024-03-01T11:00:00.000ZPHOOL SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/PHOOLSINGH
<p>उदार शासक एक वीर योद्धा</p>
<p>कला-प्रतिभा का संरक्षक जिसे कहा</p>
<p>गुप्त वंश एक महान योद्धा, <span>जिसे भारत का नेपोलियन सबने कहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>चंद्रगुप्त प्रथम का राजदुलारा</p>
<p>कुमारदेवी का पुत्र रहा</p>
<p>विनयशील जो मृदुलवाणी का, <span>प्रखर बुद्धि का स्वामी हुआ।।</span></p>
<p> </p>
<p>उत्तराधिकारी का प्रबल दावेदार</p>
<p>पराजित अग्रज काछा भी उससे हुआ</p>
<p>विजय अभियान की ख़ातिर जाना जाता, <span>अजय-अभय एक योद्धा रहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>गृह कलह को शांत है…</p>
<p>उदार शासक एक वीर योद्धा</p>
<p>कला-प्रतिभा का संरक्षक जिसे कहा</p>
<p>गुप्त वंश एक महान योद्धा, <span>जिसे भारत का नेपोलियन सबने कहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>चंद्रगुप्त प्रथम का राजदुलारा</p>
<p>कुमारदेवी का पुत्र रहा</p>
<p>विनयशील जो मृदुलवाणी का, <span>प्रखर बुद्धि का स्वामी हुआ।।</span></p>
<p> </p>
<p>उत्तराधिकारी का प्रबल दावेदार</p>
<p>पराजित अग्रज काछा भी उससे हुआ</p>
<p>विजय अभियान की ख़ातिर जाना जाता, <span>अजय-अभय एक योद्धा रहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>गृह कलह को शांत है करता</p>
<p>वक्त जिसमें बहुत लगा</p>
<p>शान्ति लाता विश्वास दिलाता, <span>उचित महाराज वह एक बना।।</span></p>
<p> </p>
<p>पराजय का कभी स्वाद चखा न जिसने</p>
<p>सब विजित राज्य करता गया</p>
<p>समूल उच्छिन्न कर देता उसका, <span>जो चुनौती देने की भूल किया।।</span></p>
<p> </p>
<p>प्रतिरथ न शेष धरा पर</p>
<p>सबको बाहुबल से उसने बांध लिया</p>
<p>पराक्रम, <span>शौर्य-वीरता उसकी अद्भुत गाथा</span>, <span>इतिहास का लेखक लिखता गया।।</span></p>
<p> </p>
<p>नष्ट जनपदों का पुनरुद्धार कराता</p>
<p>अश्वमेध यज्ञ भी उसने किया</p>
<p>वैदिक धर्म का जो अनुयायी, <span>राज्य में उसके काव्य-कवियों के बुद्धिवैभव का विकास हुआ।।</span></p>
<p> </p>
<p>दीन-हीन की रक्षा करता</p>
<p>दान-दक्षिणा, <span>उपकार कार्य करता गया</span></p>
<p>अस्त्र-शस्त्र से कोषागार भरे थे, <span>सर्वोत्तम सखा जिसका स्वभुजबल रहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>अधर्म का नाश हमेशा</p>
<p>धर्म-कर्म में जिसका विश्वास बड़ा</p>
<p>कोमल हृदय, <span>विनम्र स्वभाव</span>, <span>जो जनता का चहेता सारी बना।।</span></p>
<p> </p>
<p>उत्कृष्ट साहित्य का सर्जन करता</p>
<p>जो कविराज की उपाधि भी प्राप्त किया</p>
<p>कई प्रकार के सिक्के चलाया, <span>सत्य अंकित चित्र से पता चला।।</span></p>
<p> </p>
<p>संगीतज्ञ जो कुशल प्रशासक</p>
<p>सिक्कों पर वीणा बजाता वही मिला</p>
<p>हजारों गायों को दान में देता, <span>करुणा से जिसका हृदय भरा।।</span></p>
<p> </p>
<p>मैत्रीपूर्ण संबंध देश-विदेश</p>
<p>जो टकराया हार गया</p>
<p>पारिवारिक रिश्तों को महत्व देता, <span>स्थापित कूटनीतिज्ञ गठबंधन करता गया।।</span></p>
<p> </p>
<p>दिग्विजययात्रा निकल पड़ा तो</p>
<p>कई राजाओं के सम्मुख अकेला खड़ा</p>
<p>आर्यावर्त के मुख्य राजा जो, <span>इतिहास ने राज-अच्युत</span>, <span>नागसेन जिन्हें नाम दिया।।</span></p>
<p> </p>
<p>अधीन कर उनके सभी राज्य</p>
<p>पुष्कर में प्रवेश किया</p>
<p>दक्षिण को विजितकर उसने सारे, <span>राज्य में अपने मिला लिया।।</span></p>
<p> </p>
<p>हर राजा श्रृद्धा में झुकता जाता</p>
<p>वह विजय अभियान पर निकल पड़ा </p>
<p>कर चुकाते सभी पराजित राज्य, <span>एक शानदार कमांडर वो ऐसा रहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>जनता की सेवा को जो धर्म समझता</p>
<p>घनघोर विनाशक एक रहा</p>
<p>क्षमा-दया-<span>प्रेम जो खूब लुटाता</span>, <span>जो शरण में उसकी आन गिरा।।</span></p>
<p> </p>
<p>निर्दयी-क्रूर राजाओं को जड़ से मिटाता</p>
<p>जबरदस्ती जो राज किया</p>
<p>बंदी राजाओं को वह छुड़ाकर, <span>मुक्त सभी को करता गया।।</span></p>
<p> </p>
<p>दोहरी नीति का अनुसरण करता</p>
<p>अधीन प्रसरण बोद्वरण से उत्तर किया</p>
<p>दक्षिण नीति के तहत समुद्र ने</p>
<p>बड़ी एवज में कर को लेकर, <span>वापस पराजित राजा को राज्य सौंप दिया।।</span></p>
<p> </p>
<p>प्रचंड-प्रखर रूप जब धारण करता</p>
<p>प्रबल शत्रु भी हार गया</p>
<p>विध्वंश मचाता ऐसा रण में, <span>अरिदल रण छोड़कर भाग गया।।</span></p>
<p> </p>
<p>संधि करता शत्रु से अपने</p>
<p>जो आधिपत्य उसका स्वीकार किया</p>
<p>उच्छिन्न करता जड़ से उसको, <span>जिसका विरोध में उसके शीश उठा।।</span></p>
<p> </p>
<p>ध्यानी-ज्ञानी उदार हृदय का</p>
<p>असहाय की सदा ही मदद किया</p>
<p>प्रपंच, <span>छल-कपट उससे जो भी करता</span>, <span>हक बाहुबल से उसका छीन लिया।।</span></p>
<p> </p>
<p>रौद्र रूप जब धारण करता</p>
<p>वहाँ विनाश-ध्वंश का अंबार लगा</p>
<p>तितर-बितर होती अरिदल की सेना, <span>जब-जब युद्ध में समुद्र उतर गया।।</span></p>
<p> </p>
<p>मित्र बनकर उसका जो भी आया</p>
<p>समुद्र ने उसे स्वीकार किया</p>
<p>विरोधी बन यदि सम्मुख आएं, <span>उसका समूल विनाश था उसने किया।।</span></p>
<p> </p>
<p>उपहार भेजकर संतुष्ट करते</p>
<p>शत्रुओं में उसका रुतबा बढ़ा</p>
<p>विद्रोह करने की जो कोशिश करता, <span>झट से उसका दमन किया।।</span></p>
<p> </p>
<p>अधीनता स्वीकारते जो गणराज्य</p>
<p>दे लेवी से उन्होंने प्रसन्न किया</p>
<p>आधिपत्य स्वीकारते पश्चिम राज्य, <span>प्रमुख सिंहल के राजा उनमें रहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>उज्ज्वल चरित्र वो वचन बद्ध</p>
<p>जो निष्ठा अदम्य साहस का मालिक था</p>
<p>मानवीय गरिमा उनमें समाहित, <span>ऐसा समुद्रगुप्त महाराज हुआ।।</span></p>
<p> </p>
<p>घर-घर जिनकी वीरता के किस्से</p>
<p>विचलित शत्रु जिसने किया</p>
<p>युद्ध में जब-जब उतर के आया, <span>बेबस सबको करता चला।।</span></p>
<p> </p>
<p>संगठित होकर शत्रु आते</p>
<p>अगल-बगल वो झाँकता मिला</p>
<p>उसका बाल न बांका कर पाता, <span>वैरी बिलख-बिलख रोता मिला।।</span></p>
<p> </p>
<p>हारे पर कभी वार न करता</p>
<p>खौफ से उनके शत्रु डरा</p>
<p>क्षमा कर उसे आगे बढ़ता, <span>फिर विरोध-विद्रोह न कभी किया ।।</span></p>
<p> </p>
<p>धर्म का रक्षक अधर्म का भक्षक</p>
<p>विनम्रता धारण सदा किया</p>
<p>संधि करता आगे बढ़ता, <span>कभी युद्ध का न जिसका लक्ष्य रहा।।</span></p>
<p> </p>
<p>अतुलनीय शोभा अद्भुत पराक्रम</p>
<p>अविजित कभी जो योद्धा रहा </p>
<p>हरा सका न जिसको कोई, <span>वह ऐसा वीर भारत का एक हुआ।।</span></p>
<p> </p>
<p>अखंड भारत के निर्माण में जिसने </p>
<p>अदम्य-अखंडित साहस किया</p>
<p>कीर्ति फैली चहुँ ओर थी, <span>एक महान योद्धा समुद्रगुप्त रहा।।</span></p>
<p></p>
<p>स्व्रचित व मौलिक रचना </p>चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'tag:openbooks.ning.com,2024-02-29:5170231:BlogPost:11168412024-02-29T17:12:56.000Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p></p>
<p dir="ltr"><a>१२२/१२२/१२२/१२</a><br></br> *<br></br> हमें एक नदिया मिली नाम की<br></br> न थी वो किसी प्यास के काम की।१।<br></br> *<br></br> जिसे देश कहते हैं सब राम का<br></br> वहीं पर फजीहत हुई राम की।२।<br></br> *<br></br> दुखाती है मन जो महज याद से<br></br> करो अब न बातें उसी शाम की।३।<br></br> *<br></br> बिना उस के ये भी परायी गली<br></br> शरण में चलें कौन से धाम की।४।<br></br> *<br></br> मिटायेगी वाणी सभी दूरियाँ<br></br> मिठासें रखो बस पके आम की।५।<br></br> *<br></br> <u>चलो</u> अब <u>तो</u> साँसों इसे छोड़कर<br></br> घड़ी आ गयी तन…</p>
<p></p>
<p dir="ltr"><a>१२२/१२२/१२२/१२</a><br/> *<br/> हमें एक नदिया मिली नाम की<br/> न थी वो किसी प्यास के काम की।१।<br/> *<br/> जिसे देश कहते हैं सब राम का<br/> वहीं पर फजीहत हुई राम की।२।<br/> *<br/> दुखाती है मन जो महज याद से<br/> करो अब न बातें उसी शाम की।३।<br/> *<br/> बिना उस के ये भी परायी गली<br/> शरण में चलें कौन से धाम की।४।<br/> *<br/> मिटायेगी वाणी सभी दूरियाँ<br/> मिठासें रखो बस पके आम की।५।<br/> *<br/> <u>चलो</u> अब <u>तो</u> साँसों इसे छोड़कर<br/> घड़ी आ गयी तन के आराम की।६।<br/> **<br/> मौलिक/अप्रकाशित<br/> लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</p>यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'tag:openbooks.ning.com,2024-02-28:5170231:BlogPost:11168332024-02-28T09:12:34.000Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p></p>
<p dir="ltr"><br></br> <a>१२२ १२२/ १२२/१२</a></p>
<p dir="ltr">जिन्हें भाव जग में खले दीप के<br></br> वही कहते आरे चले दीप के।१।<br></br> *<br></br> यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के<br></br> तमस जी रहा है तले दीप के।२।<br></br> *<br></br> बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को<br></br> नहीं एक हम ही छले दीप के।३।<br></br> *<br></br> चले है तमस यूँ दिखा आँख जो<br></br> लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।<br></br> * <br></br> कहाँ कब जले घर नहीं है पता<br></br> इरादे कहाँ अब भले दीप के।५।<br></br> *<br></br> परायों से बढ़ आज अपनो से भय<br></br> न बाती ही कालिख …</p>
<p></p>
<p dir="ltr"><br/> <a>१२२ १२२/ १२२/१२</a></p>
<p dir="ltr">जिन्हें भाव जग में खले दीप के<br/> वही कहते आरे चले दीप के।१।<br/> *<br/> यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के<br/> तमस जी रहा है तले दीप के।२।<br/> *<br/> बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को<br/> नहीं एक हम ही छले दीप के।३।<br/> *<br/> चले है तमस यूँ दिखा आँख जो<br/> लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।<br/> * <br/> कहाँ कब जले घर नहीं है पता<br/> इरादे कहाँ अब भले दीप के।५।<br/> *<br/> परायों से बढ़ आज अपनो से भय<br/> न बाती ही कालिख मले दीप के।६।<br/> *<br/> कहीं फूट जाये तुम्हीं में किरण <br/> चलो साथ दो पग जले दीप के।७।<br/> *<br/> तमस भी 'मुसाफिर' दुआ दे उसे<br/> कि आशीष जिसको फले दीप के।८।<br/> *<br/> ****<br/> मौलिक/अप्रकाशित<br/> लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</p>
<p dir="ltr"></p>अँधेरे उजाले मिले प्यार से- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'tag:openbooks.ning.com,2024-02-27:5170231:BlogPost:11165582024-02-27T17:44:58.000Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p></p>
<p dir="ltr"><a>१२२/१२२/१२२/१२</a></p>
<p dir="ltr"><br></br> अँधेरे उजाले मिले प्यार से<br></br> चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।<br></br> *<br></br> नहीं काम आता किसी के कोई<br></br> मिटे दुख भला कैसे संसार से।२।<br></br> *<br></br> हटा मैल मन का तनिक भी नहीं<br></br> नहा कर चले नित्य हरिद्वार से।३।<br></br> *<br></br> न बदला है कोई किसी के कहे<br></br> जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।<br></br> *<br></br> अकेले न तुम हो असंतुष्ट अब<br></br> हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।<br></br> *<br></br> शिखर चाहते हैं सजाना बहुत…<br></br></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><a>१२२/१२२/१२२/१२</a></p>
<p dir="ltr"><br/> अँधेरे उजाले मिले प्यार से<br/> चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।<br/> *<br/> नहीं काम आता किसी के कोई<br/> मिटे दुख भला कैसे संसार से।२।<br/> *<br/> हटा मैल मन का तनिक भी नहीं<br/> नहा कर चले नित्य हरिद्वार से।३।<br/> *<br/> न बदला है कोई किसी के कहे<br/> जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।<br/> *<br/> अकेले न तुम हो असंतुष्ट अब<br/> हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।<br/> *<br/> शिखर चाहते हैं सजाना बहुत<br/> हटाकर सभी ईंट आधार से।६।<br/> *<br/> यहाँ अश्क ने हाल ऐसा किया<br/> जली देह जितनी न अंगार से।७।<br/> *<br/> मिटे द्वेष सब के दिलों से यहाँ<br/> करो एक अरदास करतार से।८।<br/> *<br/> मौलिक/अप्रकाशित<br/> लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</p>हर बार नई बात निकल आती हैtag:openbooks.ning.com,2024-02-26:5170231:BlogPost:11166382024-02-26T06:00:00.000ZAMAN SINHAhttp://openbooks.ning.com/profile/AMANSINHA
<p><span style="font-weight: 400;">बात यहीं खत्म होती तो और बात थी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">यहाँ तो हर बात में नई बात निकल आती है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">यूँ लगता है जैसे कि ये कोई बरगद का पेड़ है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जहां से भी खोदो एक नई साख निकल आती है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उलझने ऐसी है कि कोई छोड़ मिलती ही नहीं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">एक को खींचो तो संग मे दो चार चली…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बात यहीं खत्म होती तो और बात थी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">यहाँ तो हर बात में नई बात निकल आती है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">यूँ लगता है जैसे कि ये कोई बरगद का पेड़ है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जहां से भी खोदो एक नई साख निकल आती है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उलझने ऐसी है कि कोई छोड़ मिलती ही नहीं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">एक को खींचो तो संग मे दो चार चली आती है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">खुला है माँझा पड़े है बिखरे कई तार यहाँ </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">खुले छत पर जैसे कोई पडी जाल नजर आती है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">कही थी जो बात तुमने जो बर्फी में लपेटे हमको </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">परत जो उतरी नीम कि बौछार नजर आती है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बड़ा सोचकर पड़ता है नज़र करना लफ्जों को </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ज़ुबां से फिसलकर जो निकली तो गुनहगार नज़र आती है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जिसे होता है ग़ुमा अपने दौर-ए-जमाने का</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">उसे हो मालूम कि सुई कभी रुकती हीं नहीं </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वो तो डूबा रहता है आगोश में गुरुर के अपने </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">पलक झपकती है यहाँ वहाँ रियासत चली जाती है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">दबा हो प्यार जो दिल में और कहने में उलझन हो </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">नज़र चाहती तो है खूब मगर देख नहीं पाती है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">ज़रा सा दर्द दगा का जो लगे “झूठा” दिल में </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">झूठा ही हो सही मगर दिल की बात निकल आती है </span></p>
<p><br/> <span style="font-weight: 400;">कोई मजहब नहीं होता भूखे का जहां में देखो </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">रोटी कोई भी दे जाय तो बस दुआ निकल आती है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भरा हो पेट जरा सा देखो फिर फितरत इनकी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">हर हाथ बढ़ाने वालों की भी ज़ात निकल आती है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जब तलक छाँव देते है कीमत है उनकी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जो कीमत मांग ली कभी तो बुरा लगता है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">वैसे तो पहचान है उनसे जहां में अपनी लेकिन </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जो खुद आई तो पहचान बादल जाती है </span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">क्या समझेंगे वो दर्द को पराये के जब तक</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">जो लगे खुद को कभी दर्द तब ही समझ आती है </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">घाव दूसरे के देख जिसको आ जाए हंसी </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">बन जाए जो खुद के तन पर तब टीस समझ आती है</span></p>
<p></p>
<p><span style="font-weight: 400;">"मौलिक व अप्रकाशित" </span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अमन सिन्हा </span></p>दोहा त्रयी .....tag:openbooks.ning.com,2024-02-22:5170231:BlogPost:11163502024-02-22T08:01:22.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा त्रयी. . . . .</p>
<p></p>
<p>जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।<br/>अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।</p>
<p></p>
<p>चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।<br/>संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।</p>
<p></p>
<p>गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।<br/>नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 23-2-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p>दोहा त्रयी. . . . .</p>
<p></p>
<p>जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।<br/>अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।</p>
<p></p>
<p>चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।<br/>संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।</p>
<p></p>
<p>गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।<br/>नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 23-2-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>दोहा त्रयी. . . . . .tag:openbooks.ning.com,2024-02-11:5170231:BlogPost:11161612024-02-11T08:36:45.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा त्रयी. . . .</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p>मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।<br/>काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।</p>
<p></p>
<p>बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।<br/>तीखी लगती स्वार्थ की, अब आँगन में धूप ।।</p>
<p></p>
<p>अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।<br/>धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 11-2-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p>दोहा त्रयी. . . .</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p>मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।<br/>काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।</p>
<p></p>
<p>बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।<br/>तीखी लगती स्वार्थ की, अब आँगन में धूप ।।</p>
<p></p>
<p>अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।<br/>धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 11-2-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>दोहा सप्तक. . . .tag:openbooks.ning.com,2024-02-06:5170231:BlogPost:11161482024-02-06T08:49:25.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p></p>
<p>दोहा सप्तक. . . . </p>
<p></p>
<p>बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।<br></br>अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।</p>
<p></p>
<p>बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।<br></br>एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।</p>
<p></p>
<p>पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।<br></br>जीवन को मत दीजिए, दागदार उपहार ।3।</p>
<p></p>
<p>रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।<br></br>दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।</p>
<p></p>
<p>वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।<br></br>रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में…</p>
<p></p>
<p>दोहा सप्तक. . . . </p>
<p></p>
<p>बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।<br/>अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।</p>
<p></p>
<p>बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।<br/>एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।</p>
<p></p>
<p>पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।<br/>जीवन को मत दीजिए, दागदार उपहार ।3।</p>
<p></p>
<p>रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।<br/>दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।</p>
<p></p>
<p>वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।<br/>रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में लोच।5।</p>
<p></p>
<p>नजरें दूषित हो गई , दूषित हुए विचार ।<br/>वर्तमान सन्दर्भ में, शर्मिन्दा शृंगार ।6।</p>
<p></p>
<p>वृद्धों का सन्तान जब,रखती पूर्ण ख़याल ।<br/>जीवन के हर क्षेत्र में , रहती वो खुशहाल ।7।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 6-2-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>दोहा पंचक. . . . नैनtag:openbooks.ning.com,2024-02-03:5170231:BlogPost:11163102024-02-03T08:23:55.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p></p>
<p>दोहा पंचक. . . नैन</p>
<p></p>
<p>नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार । <br></br>नैनों को अच्छी लगे, नैनों से तकरार ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों से तकरार का, लगे अजब आनन्द ।<br></br>हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।<br></br>नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।<br></br>नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।<br></br>नैन तीर पर हो सदा, लक्षित…</p>
<p></p>
<p>दोहा पंचक. . . नैन</p>
<p></p>
<p>नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार । <br/>नैनों को अच्छी लगे, नैनों से तकरार ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों से तकरार का, लगे अजब आनन्द ।<br/>हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।<br/>नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।<br/>नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।</p>
<p></p>
<p>नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।<br/>नैन तीर पर हो सदा, लक्षित मन की चाह ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 3-2-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसासtag:openbooks.ning.com,2024-02-02:5170231:BlogPost:11161412024-02-02T15:10:46.000Zमनोज अहसासhttp://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p></p>
<p>121 22 121 22 121 22 121 22<br></br>हज़ार लोगों से दोस्ती की हज़ार शिकवे गिले निभाये।<br></br>किसी ने लेकिन हमें न समझा सभी से हमने फरेब खाये।</p>
<p><br></br>हमारे जीवन में अब तुम्हारी जगह तो कोई नहीं है लेकिन,<br></br>दुआ में होठों से फिर ये निकला खुदा तुम्हारे दरस दिखाये।</p>
<p></p>
<p>किसी के दिल में बसे रहो तुम,हमारे दिल को मसलने वाले,<br></br>यही तकाज़ा है दोस्ती का फरेब खाकर करे दुआये।</p>
<p></p>
<p>हमारी आँखें फ़टी रही पर पलट के तुमने कभी न देखा,<br></br>अजीब उलझन है जिंदगी की न याद आये न भूल…</p>
<p></p>
<p>121 22 121 22 121 22 121 22<br/>हज़ार लोगों से दोस्ती की हज़ार शिकवे गिले निभाये।<br/>किसी ने लेकिन हमें न समझा सभी से हमने फरेब खाये।</p>
<p><br/>हमारे जीवन में अब तुम्हारी जगह तो कोई नहीं है लेकिन,<br/>दुआ में होठों से फिर ये निकला खुदा तुम्हारे दरस दिखाये।</p>
<p></p>
<p>किसी के दिल में बसे रहो तुम,हमारे दिल को मसलने वाले,<br/>यही तकाज़ा है दोस्ती का फरेब खाकर करे दुआये।</p>
<p></p>
<p>हमारी आँखें फ़टी रही पर पलट के तुमने कभी न देखा,<br/>अजीब उलझन है जिंदगी की न याद आये न भूल पाये।</p>
<p></p>
<p>सितम तुम्हारें कबूल थे सब सभी हसरतें चढ़ाई माथे,<br/>तुम्हीं ने लेकिन जला दिये सब वफ़ा के आँगन बने बनाये।</p>
<p></p>
<p>हमारे हिस्से में आई शर्ते कुबूल करके मिला हमें क्या ?<br/>ये तन्हा कमरा, उदास सड़कें ,अजीब महफ़िल ,सभी पराये।</p>
<p><br/>धुंआ नज़र में भरा हुआ है वो राख दिल मे जमी हुई हुई है,<br/>जो तुमने हमको लिखे थे दिलबर तुम्हारी खातिर वो खत जलाए।</p>
<p><br/>गली से तुमको गुज़रते देखा पुकारने की उठी तमन्ना,<br/>हमारी चौखट पे आ गए पर उसूल सारे बिना बुलाये।</p>
<p></p>
<p>ये वेदना से भरा समय और सफर में गाड़ी ठहर गई है,<br/>मिलेगी मंजिल ये सोचते हैं उदासियों से नज़र चुराये।</p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>धूम कोहराtag:openbooks.ning.com,2024-01-31:5170231:BlogPost:11159922024-01-31T02:44:37.000ZUsha Awasthihttp://openbooks.ning.com/profile/UshaAwasthi
<p>धूम कोहरा</p>
<p></p>
<p>उषा अवस्थी</p>
<p></p>
<p>धूम युक्त कोहरा सघन</p>
<p>मचा हुआ कोहराम </p>
<p>किस आयुध औ कवच से</p>
<p>जीतें यह संग्राम?</p>
<p></p>
<p>एक नहीं, अनगिन बने</p>
<p>कारण, होती वृद्धि</p>
<p>रोके से रुकता नहीं </p>
<p>क्रम,कैसे हो शुद्धि?</p>
<p></p>
<p>ढेरों टन कोयला दहन </p>
<p>कर विद्युत संयंत्र</p>
<p>धूम्र उगलते; जो जाकर</p>
<p>मिले बूंद के संग</p>
<p></p>
<p>वही हवा फिर साँस से </p>
<p>पहुँचे मानव अंग</p>
<p>स्वास्थ्य बिगाड़े,कष्ट दे</p>
<p>करे मनुज का…</p>
<p>धूम कोहरा</p>
<p></p>
<p>उषा अवस्थी</p>
<p></p>
<p>धूम युक्त कोहरा सघन</p>
<p>मचा हुआ कोहराम </p>
<p>किस आयुध औ कवच से</p>
<p>जीतें यह संग्राम?</p>
<p></p>
<p>एक नहीं, अनगिन बने</p>
<p>कारण, होती वृद्धि</p>
<p>रोके से रुकता नहीं </p>
<p>क्रम,कैसे हो शुद्धि?</p>
<p></p>
<p>ढेरों टन कोयला दहन </p>
<p>कर विद्युत संयंत्र</p>
<p>धूम्र उगलते; जो जाकर</p>
<p>मिले बूंद के संग</p>
<p></p>
<p>वही हवा फिर साँस से </p>
<p>पहुँचे मानव अंग</p>
<p>स्वास्थ्य बिगाड़े,कष्ट दे</p>
<p>करे मनुज का अन्त</p>
<p></p>
<p>एक राज्य, इक देश,यह</p>
<p>नहीं कर सकें काम</p>
<p>मिलकर पूरे विश्व को</p>
<p>रखना होगा ध्यान </p>
<p></p>
<p>प्रलंयकर शस्त्रास्त्र से</p>
<p>दूजे पर कर वार</p>
<p>महापातकी अहं वश</p>
<p>करें सृष्टि संहार</p>
<p></p>
<p>जीव-जन्तु, वन नष्ट कर</p>
<p>मूर्ख करें आघात </p>
<p>धूम कोहरा रूप ले</p>
<p>प्रकृति करे प्रतिघात</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसासtag:openbooks.ning.com,2024-01-28:5170231:BlogPost:11160932024-01-28T17:37:43.000Zमनोज अहसासhttp://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>हमारा जिक्र छोड़ो आप कुछ अपनी कहो, बोलो ।</span></p>
<p dir="ltr"><span>बहुत दिन बाद आये ख़्वाब में कहदो उठो,बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>फिसलते वक़्त की गिनती ने हमको कर दिया गंभीर,</span></p>
<p dir="ltr"><span>मगर माँ बाप कहते हैं कि बच्चे हो हँसो, बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>कहीं पर सामना हो जाए तेरा मैं रहूँ खामोश,</span></p>
<p dir="ltr"><span>तेरी आँखे बहे,मुझसे कहें,तुम भी…</span></p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>हमारा जिक्र छोड़ो आप कुछ अपनी कहो, बोलो ।</span></p>
<p dir="ltr"><span>बहुत दिन बाद आये ख़्वाब में कहदो उठो,बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>फिसलते वक़्त की गिनती ने हमको कर दिया गंभीर,</span></p>
<p dir="ltr"><span>मगर माँ बाप कहते हैं कि बच्चे हो हँसो, बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>कहीं पर सामना हो जाए तेरा मैं रहूँ खामोश,</span></p>
<p dir="ltr"><span>तेरी आँखे बहे,मुझसे कहें,तुम भी बहो,बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>सही लोगों को तो ये दौर कुछ कहने नहीं देता,</span></p>
<p dir="ltr"><span>मगर सच्चाई के हक़ में सभी कुछ भी करो,बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>मेरे हमअसरों कुछ पहचानों तुम स्याही की ताकत को,</span></p>
<p dir="ltr"><span>सफेदी ओढ़े लोगों पर मलो कालिख लिखो, बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>यहाँ से रास्ता कोई भी उसके दर नहीं जाता,</span></p>
<p dir="ltr"><span>मैं अब जाऊँ कहाँ,यारों मेरे मुझपर हँसो,बोलो।</span></p>
<p></p>
<p dir="ltr"><span>मेरे इन शेरों में कोई ग़ज़ल का गुण नहीं दिलबर,</span></p>
<p dir="ltr"><span>तुम इनमें अपने ग़ुम होने की आहट को सुनो,बोलो।</span></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><span>मौलिक और अप्रकाशित</span></p>
<p></p>अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसासtag:openbooks.ning.com,2024-01-28:5170231:BlogPost:11160922024-01-28T16:35:26.000Zमनोज अहसासhttp://openbooks.ning.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>1222 1222 122<br></br>1<br></br>मुझे महसूस करते थे खुशी से<br></br>मगर ये अब न कहना तुम किसी से<br></br>2<br></br>मुझे चाहत नहीं है अब किसी की<br></br>मुझे चाहत रही है पर सभी से<br></br>3<br></br>तुम्हारा नाम ही था कॉल में पर<br></br>मैं बातें कर रहा था अजनबी से<br></br>4<br></br>तनाफुर दिखता होगा शेर में अब<br></br>मैं शायद थक चुका हूँ शाइरी से<br></br>5<br></br>मैं अपने ग़म में ही मदहोश हूँ पर<br></br>हमें काफिर रिझाते मयकशी से<br></br>6<br></br>शुतुरगर्बा जबां पर आ गया है<br></br>बिठायें संतुलन कैसे सभी से<br></br>7<br></br>ये ज़ख़्मी शब्द हैं खामोश,रीते<br></br>तुझे…</p>
<p>1222 1222 122<br/>1<br/>मुझे महसूस करते थे खुशी से<br/>मगर ये अब न कहना तुम किसी से<br/>2<br/>मुझे चाहत नहीं है अब किसी की<br/>मुझे चाहत रही है पर सभी से<br/>3<br/>तुम्हारा नाम ही था कॉल में पर<br/>मैं बातें कर रहा था अजनबी से<br/>4<br/>तनाफुर दिखता होगा शेर में अब<br/>मैं शायद थक चुका हूँ शाइरी से<br/>5<br/>मैं अपने ग़म में ही मदहोश हूँ पर<br/>हमें काफिर रिझाते मयकशी से<br/>6<br/>शुतुरगर्बा जबां पर आ गया है<br/>बिठायें संतुलन कैसे सभी से<br/>7<br/>ये ज़ख़्मी शब्द हैं खामोश,रीते<br/>तुझे छूते तो भरते ज़िंदगी से<br/>8<br/>तकाबुल ए रदीफन ? छोड़िये भी<br/>यहाँ कुछ शेर भी हैं आदमी से<br/>9<br/>मैं उनको भूल कर खुश हो रहा हूँ<br/>मगर यें मरहले हैं याद ही से<br/>10<br/>उन्होंने कह दिया किसने कहा है?<br/>किसी को दोस्त समझा था खुशी से<br/>11<br/>मैं अपने आप में यूँ कैद हूँ अब<br/>समंदर घिर गया जैसे नदी से<br/>12<br/>तड़फ के और भी रस्ते हैं लेकिन<br/>मुझे बस चैन मिलता शाइरी से</p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>ग़ज़ल: बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हमtag:openbooks.ning.com,2024-01-26:5170231:BlogPost:11158042024-01-26T16:00:00.000ZAazi Tamaamhttp://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम</p>
<p>अपनी ही सुर्ख़ आँख में चुभते रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>ये और बात है की मुकम्मल न हो सका</p>
<p>इक ख़त किसी के नाम जो लिखते रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>सबसे जरूरी काम में पीछे रहे मगर</p>
<p>बाक़ी हर एक बात में आगे रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>वैसे तो हमसे जीतना मुमकिन न था मगर</p>
<p>अपनी रज़ा से आप से पीछे रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>इक रोज़ तन्हा छोड़ गए आप तो हमें</p>
<p>दर्द उम्र भर ये हिज़्र का सहते रहे हैं…</p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>बाद एक हादिसे के जो चुप से रहे हैं हम</p>
<p>अपनी ही सुर्ख़ आँख में चुभते रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>ये और बात है की मुकम्मल न हो सका</p>
<p>इक ख़त किसी के नाम जो लिखते रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>सबसे जरूरी काम में पीछे रहे मगर</p>
<p>बाक़ी हर एक बात में आगे रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>वैसे तो हमसे जीतना मुमकिन न था मगर</p>
<p>अपनी रज़ा से आप से पीछे रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>इक रोज़ तन्हा छोड़ गए आप तो हमें</p>
<p>दर्द उम्र भर ये हिज़्र का सहते रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>ये सच है हमने तेग़ उठाई नहीं कभी</p>
<p>'आज़ी' लहू में फिर भी नहाये रहे हैं हम</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>26 जनवरी 2024 अमृतकाल का 75वा गणतंत्रtag:openbooks.ning.com,2024-01-26:5170231:BlogPost:11157942024-01-26T07:30:00.000Zडा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्माhttp://openbooks.ning.com/profile/3jyzkevjttpzy
<p></p>
<p>भले देख लो जग सारा, सबसे प्यारा देश हमारा.</p>
<p>कण कण में इसके अपनापन, अपना भारत सबसे न्यारा.</p>
<p>गंगा यमुना सरस्वती जैसे मिल कर संगम हो जाती.</p>
<p>अनेकताएं विविध यहाँ, एक हो हम दम जो जाती.</p>
<p>प्राचीनतम संस्कृति हमारी, सबको समावेशित कर देती.</p>
<p>अपनी पहचान बनाए रख मा, सबको अपना कर लेती.</p>
<p>सदियों आक्रान्ताओं से जूझे हम, नहीं कभी मिटी हस्ती.</p>
<p>है अमरत्व सनातन का, बनी रही अपनी मस्ती.</p>
<p>कालचक्र परिवर्तन में, राजतन्त्र मिट हुआ लोकतंत्र.</p>
<p>अपने शाश्वत…</p>
<p></p>
<p>भले देख लो जग सारा, सबसे प्यारा देश हमारा.</p>
<p>कण कण में इसके अपनापन, अपना भारत सबसे न्यारा.</p>
<p>गंगा यमुना सरस्वती जैसे मिल कर संगम हो जाती.</p>
<p>अनेकताएं विविध यहाँ, एक हो हम दम जो जाती.</p>
<p>प्राचीनतम संस्कृति हमारी, सबको समावेशित कर देती.</p>
<p>अपनी पहचान बनाए रख मा, सबको अपना कर लेती.</p>
<p>सदियों आक्रान्ताओं से जूझे हम, नहीं कभी मिटी हस्ती.</p>
<p>है अमरत्व सनातन का, बनी रही अपनी मस्ती.</p>
<p>कालचक्र परिवर्तन में, राजतन्त्र मिट हुआ लोकतंत्र.</p>
<p>अपने शाश्वत मूल्यों से , और भी सशक्त ये गणतंत्र.</p>
<p>विकट चुनौतियाँ सन्मुख हैं, आत्मघाती इस विश्व में.</p>
<p>मांग ये ही, रहें हम सन्नद्ध एक, सदा इस परिवेश में.</p>
<p>निजता संस्कृति की बनाए रखें, बचे रहें वैश्विक फंदों से.</p>
<p>द्वंद्व मुक्त, खुद रहें सावधान भीतर घाती जयचंदों से.</p>
<p></p>
<p><span>“मौलिक एवं अप्रकाशित रचना”</span></p>महाराणा संग्राम सिंहtag:openbooks.ning.com,2024-01-23:5170231:BlogPost:11160452024-01-23T09:24:35.000ZPHOOL SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/PHOOLSINGH
<p>राजपूत राजाओं को संगठित करता</p>
<p>एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था</p>
<p>थर-थर कांपते शत्रु जिससे, <span>वह संग्राम सिंह महाराजा था॥</span></p>
<p> </p>
<p>वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें</p>
<p>सिसोदिया वंश का गौरव था</p>
<p>विस्तार किया जो साम्राज्य का, <span>हिंद देश का रक्षक था॥</span></p>
<p> </p>
<p>सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने</p>
<p>खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था</p>
<p>एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, <span>शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥</span></p>
<p> </p>
<p>सतलुज से लेकर नर्मदा…</p>
<p>राजपूत राजाओं को संगठित करता</p>
<p>एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था</p>
<p>थर-थर कांपते शत्रु जिससे, <span>वह संग्राम सिंह महाराजा था॥</span></p>
<p> </p>
<p>वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें</p>
<p>सिसोदिया वंश का गौरव था</p>
<p>विस्तार किया जो साम्राज्य का, <span>हिंद देश का रक्षक था॥</span></p>
<p> </p>
<p>सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने</p>
<p>खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था</p>
<p>एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, <span>शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥</span></p>
<p> </p>
<p>सतलुज से लेकर नर्मदा तक</p>
<p>साम्राज्य जिसका फैला था</p>
<p>ग्वालियर से लेकर भरतपुर तक, <span>परचम उसका लहराया था॥</span></p>
<p> </p>
<p>हिंदुपत की उपाधि पाता</p>
<p>दो बार इब्राहिम लोदी को हराया था</p>
<p>महानायक था भारत का जो, <span>राणा सांगा भी कहलाया था॥</span></p>
<p> </p>
<p>जागीरदार जिसका मेदनीराय भी</p>
<p>महान चंदेरी का राजा था</p>
<p>द्वितीय महमूद खिलजी को क़ैद किया, <span>राणा जज़िया कर भी हटवाया था॥</span></p>
<p> </p>
<p>गुजरात-मालवा क्षेत्र भी जीते</p>
<p>जो लोधी सल्तनत के छक्के छुड़ाया था</p>
<p>जीता बयाना क़िला था मुगलों से, <span>कोहराम खानवा युद्ध में मचाया था॥</span></p>
<p> </p>
<p>कायल था बाबर भी जिनका</p>
<p>पहले पराजय राणा से पाया था</p>
<p>जीत की उम्मीद भी हार बैठा वो, <span>नतीजा एक गोली से समर का बदला था॥</span></p>
<p> </p>
<p>घायल अवस्था में बेहोश हुए राणा जी</p>
<p>उन्हें ओझल युद्ध से कर दिया था</p>
<p>गाज़ी बनकर लौटा बाबर, <span>जो झंडा बुलंद जीत का कर गया था॥</span></p>
<p> </p>
<p>क्रोधित हो गए हार से राणा जी</p>
<p>मना चित्तौड़ लौटने से कर दिया था</p>
<p>शिकार हो गए धोखेबाजों के, <span>जो ज़हर उनको दे दिया था॥</span></p>
<p></p>
<p>स्वरचित व मौलिक रचना</p>
<p>फूल सिंह, दिल्ली </p>दोहा त्रयी. . . . सन्तानtag:openbooks.ning.com,2024-01-19:5170231:BlogPost:11151382024-01-19T07:30:00.000ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
<p>दोहा त्रयी. . . सन्तान</p>
<p></p>
<p>सन्तानों के बन गए ,अपने- अपने नीड़ ।<br/> वृद्ध हुए माँ बाप अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।</p>
<p></p>
<p>अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।<br/> क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।</p>
<p></p>
<p>सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।<br/> वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 19-1-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p>दोहा त्रयी. . . सन्तान</p>
<p></p>
<p>सन्तानों के बन गए ,अपने- अपने नीड़ ।<br/> वृद्ध हुए माँ बाप अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।</p>
<p></p>
<p>अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।<br/> क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।</p>
<p></p>
<p>सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।<br/> वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।</p>
<p></p>
<p>सुशील सरना / 19-1-24</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>