एक पंथ दो काज - लघुकथा -
"हल्लो, मिश्रा जी, गुप्ता बोल रहा हूँ।"
"अरे यार नाम बताने की आवश्यकता नहीं है।मेरे मोबाइल में आपका नाम आ गया। बोलो सुबह सुबह कैसे याद किया?"
"आज आपकी थोड़ी मदद चाहिये।"
"कैसी बात करते हो मित्र।आपके लिये तो आधी रात को तैयार हैं।हुकम करो।"
"अरे भाई आज राम नवमी है।कुछ बच्चे बच्चियों को जिमाना है।मैडम का आदेश हुआ कि सोसाइटी में से अपने दोस्तों के बच्चे बुलालो।"
"ये तो बहुत टेढ़ा मामला है।लॉक डाउन का सरकारी आदेश है।उसकी अवहेलना तो अपराध की श्रेणी में आता है।"
"मिश्रा जी, यह तो सोसाइटी के अंदर का मामला है।और आपका फ्लैट तो हमारी ही बिल्डिंग में है।दो माले ही तो नीचे आना है।कौनसा लॉक डाउन टूट जायेगा।"
"गुप्ता जी, आप जैसे पढ़े लिखे और समझदार इंसान से ऐसी उम्मीद नहीं थी।"
"ऐसा क्या कह दिया मैंने?"
"मित्र, यह कायदे कानून से ज्यादा अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की बात है।"
"मिश्रा जी, जितना आप सोच रहे हो वैसा कुछ भी नहीं है।मेरे घर का वातावरण आपके घर की तरह ही साफ सुथरा और स्वच्छ है।"
"बात केवल घरों की नहीं है।घर के बाहर लिफ़्ट में कितने लोग आते जाते हैं।अखवार वाला, दूध वाला, कचरेवाला, झाड़ू पोंछावाली,दवाईवाले, सिक्योरिटी वाले।क्या पता कौन कैसे माहौल से होकर आया हो?"
"मिश्रा जी, बहानेवाजी मत करो।हमारे बच्चे तो बड़ी खुशी मना रहे थे कि इस बहाने आज कैरम भी खेल लेंगे। एक पंथ दो काज हो जाते।"
"गुप्ता जी, इसमें एक पंथ दो काज नहीं एक पंथ तीन काज हो जायेंगे।"
"तीसरा काज कौनसा?"
"करोना का प्रसार।"
मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय अवनीश धर द्विवेदी जी।
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी , सारगर्भित और शिक्षाप्रद कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी। आदाब।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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