22 22 22 22
शोर हवाओं ने बरपाए,
घाव हरे होने को आए।1
बंटवारे का दर्द सुना,अब
देख कलेजा मुंह को धाए।2
रोजी खातिर परदेश गए
घर भागे सब,धक्के खाए।3
आफत ऐसी आई उड़कर
सबने अपने रंग दिखाए।4
बबुआ भैया जो कहते थे,
सबने फिर से हाथ उठाए।5
बांट रहे कुछ मुंह की रबड़ी
खाने को भूखे ललचाए।6
तीर कमान चढ़ाए चलते
दोमुख सबको कौन बताए?7
मांग बना जो राजा,बैठा
दाता लाठी - डंडे खाए।8
'जनता मालिक, वह सब करती',
सबने मिल अहसास कराए।9
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आभार आदरणीय।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
नमस्ते आ.श्याम नारायण जी,शुक्रिया।
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