For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्नेह-धारा

कल्पना-मात्र नहीं है यह स्नेह का बंधन ...

उस स्वप्निल प्रथम मिलन में, प्रिय

कुछ इस तरह लिख दी थीं तुमने

मेरे वसन्त की रातें

मेरी समस्याओं ने

अव्यव्स्थाओं ने, अभिलाषाओं ने 

भाग कर ले ली थी असाधारण शरण

कल-कल गाती तुम्हारी स्नेह-धारा में

उस प्रथम मिलन की अभी भी महकती है गंध

फट गए थे बाहरी सतही ज़िन्दगी के परदे सारे

एकान्त ने सत्य में पाया सुख संपूर्ण

मेरी गोद है बनी तुम्हारी सम्पत्ति

बाहें तुम्हारी हैं अब मेरा आधार

अप्राकृतिक-सी थी मेरी अवस्था

स्वप्नाभिलाषी रहा मेरा प्यार

तुम भावुक, कुछ मैं अतिभावुक

ऐसे में बन गई हैं महत्वपूर्ण

छोटी से छोटी करी हुई वह बातें

कि दुहराते उनको शीतल-अकेले में

थकती नहीं हैं हमारी छायामय रातें

मुस्कराते हैं हमारे हेमन्त-शीत-वसन्त

कुछ अजीब अनुभव हैं अन्तस्थ हमारे

टटोलते रहते हैं एक-दूजे में धड़कन अपनी

बांधे रखती है इसी से हमें कोई मनोग्रन्थि

शायद इसी को कहते होंगे मानव-परम्परा

कि ऐसे में हो गए हैं हम दोनो अनजाने

कुछ गुप्त अभिलाषाओं के शिकार

सुना जब से तुम्हारी साँसों ने मेरी साँसों में

बहती स्नेह-धारा में मोह-ममता का आलाप

धड़कन मेरी अब इकाई नहीं है

अँधेरे आसमान को देख अब डरी-डरी

रुकती नहीं है मेरी रक्त-धारा की गति

आत्म-स्वीकृति के सुख में यह मांगता है मन  

कि स्वप्न-सी  हमारी  यह मिलन की रात 

ठहरे,  न खोले अभी कुछ देर तक

चोरी-छुपके-से अपनी मुंदी आँखो के द्वार

बाहों-में-बाहों के मधुमय नशे में मस्त

पलने दे आज यूँ ही हमारा निश्छल प्यार

                    ------

-- विजय  निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 342

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 2, 2020 at 11:50am

प्रिय भाई,हमारी हालत भी आप जैसी ही है,घर में ही रहते हैं,और सबके लिए दुआ करते हैं,समाचारों में अमेरिका के हालात सुनता हूँ तो आपकी फ़िक्र करना मेरे लिए लाज़िमी हो जाता है,आप अपना और परिवार का विशेष ध्यान रखें,अल्लाह जल्द ही इस मुसीबत से हमें निकालेग,यही दुआ है,आमीन ।

Comment by vijay nikore on April 2, 2020 at 11:14am

मेरे प्रिय भाई, सर्वप्रथम आपका आभारी हूँ कि आपने हमारी ख़ैरियत को सोच में रखा। हम एक महीने से घर में ही हैं।  आना-जाना, शोपिंग आदि सब सब बंद है। खाने का सामान deliver service से मंगवाते हैं, वह बैग बाहर छोड़ जाते हैं, सामान आने के बाद सभी चीज़ों को disinfect करते हैं, गरम पानी से, साबन से, कई चीज़ें chemical से भी। शायद ३-४ महीने और ऐसा ही चलेगा। 

कृपया आप अपना सुख-समाचार दें। आपके परिवार के लिए शुभकामनाएँ। 

रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, मेरे भाई।

Comment by Samar kabeer on March 31, 2020 at 1:00pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,रचना हमेशा की तरह कामयाब है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आप के बारे में चिंता है,कृपया अपनी ख़ैरियत से आगाह करें,और अमेरिका के हालात पर भी कुछ रोशनी डालें 

 ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service