2122 2122 2122 212
तोड़ने से पहले मुझको आजमा कर देख ले
अपने घर के एक कोने में सजा कर देख ले
आज भी ज़िंदा है दुनिया में वफ़ा की रोशनी
अपने आंगन में कोई पौधा लगाकर देख ले
कोई अक्षर तुझको मिल जाएगा मेरे नाम का
अपने हाथों की लकीरों को मिला कर देख ले
हौसला करने से मिल ही जाता है सब कुछ यहाँ
वक़्त की भट्टी में बस खुद को तपा कर देख ले
सबसे बढ़कर खूबसूरत कैसे हैं तेरी हया
आइने को आंखों में काजल सजाकर देख ले
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय salik साहब
सादर
हार्दिक आभार आदरणीय अमीर साहब सादर
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब आपके निर्देशानुसार आगे से मुक्ता लगाने का प्रयास करूंगा सादर आभार
जनाब मनोज अह्सास जी आदाब, ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये
तहे-दिल से मुबारकबाद कु़बूल फरमाइये।
जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
एक बात पहले भी कह चुका हूँ, आज भी कहता हूँ कि उर्दू शब्दों में आप जब तक नुक़्ते लगाना नहीं सीखेंगे,अच्छे ग़ज़लकार नहीं बन सकते,इस तरफ़ विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है ।
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