(1212 1122 1212 22 /112 )
यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है
हयात जैसे बशर लग रही सिनाँ पर है
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हमारा मुल्क परेशान और ख़ौफ़ में है
सुकून-ओ-चैन की अब जुस्तजू यहाँ पर है
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वजूद अपना बचाने में अब लगा है बशर
न जाने आज ख़ुदा छुप गया कहाँ पर है
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बचेगा क़ह्र से कोविड के आज कैसे भला
बशर पे ज़ुल्म-ओ-सितम उसका आसमाँ पर है
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वहाँ की प्यास भला दूर क्या करे कोई
शिकार-ए-तिश्नगी ख़ुद आबजू जहाँ पर है
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बिछड़ के लौट गया हूँ पनाह दे कि न दे
ये फ़ैसला तो नए मीर-ए-कारवाँ पर है
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उठा रहे हैं कई लोग मसअला-ए-जुबाँ
मुझे तो नाज़ वतन की हर इक जुबाँ पर है
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खिला सका न शजर फूल जो बहारों में
ख़िज़ाँ में दे रहा इलज़ाम बाग़बाँ पर है
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'तुरंत' ज़िंदगी के गर ग़मों की बात करूँ
फ़साना भारी मिरा सब की दास्ताँ पर है
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार Salik Ganvir जी
यहाँ सवाल इज़ाफ़त का है,और इज़ाफ़त का नियम ये है कि हिन्दी और अंग्रेज़ी शब्दों में नहीं लगाई जा सकती ।
आदरणीय Samar kabeer साहेब , मेरे जिज्ञासा है कि , व्यक्तिवाचक संज्ञा ,जातिवाचक संज्ञा जिनके नामों में किसी भी भाषा में परिवर्तन न हो पाए , जैसे कोरोना ,कोविड ,कंप्यूटर , ट्रम्प , इमरान खान , प्लेटफार्म , स्टेशन , मोबाईल आदि का प्रयोग उर्दू में भी यदि मूल नाम से ही प्रयोग हों , तो क्या उन्हें उर्दू में सम्मिलित नए शब्द नहीं माना जाएगा ? सादर |
"कोविड" शब्द उर्दू का कैसे हुआ?
आपकी क़ीमती दाद मेरे लिए वाइस-ए-फ़ख्र है मोहतरम Samar kabeer साहेब | नवाज़िश-ओ-करम का दिल से शुक्रिया | मेरे ख़याल से संज्ञा शब्द तो हर भाषा में ज्यों के त्यों प्रयोग होते हैं , इसलिए मैंने कोविड को उर्दू शब्द मान लिया है | यदि इस बारे में भी कठोर नियम है तो क्षमा चाहता हूँ , गलती हो गई |
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