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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
  • Male
  • बाग़पत, उत्तर प्रदेश.
  • India
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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया,... जी बेशक, गुणीजनों से हमें हमेशा सीखने को बहुत कुछ मिलता है। "
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। 'ख़ूराक' की मात्रा-पतन पर आपकी बेशक़ीमती राय क्या है? "
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, हौसला अफ़ज़ाई और इस्लाह का तह-ए-दिल से शुक्रिया। मतले पर आपसे सहमत हूँ आपने बहतर सुझाव दिया है, मैंने इसे यूँ किया है देखिएगा - 'मेरा वजूद अभी ख़ाक में मिलाने को उमँड़ रही है घटा बिजलियाँ गिराने…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें,  ... मगर ये मक़्ता लाजवाब हुआ है -  ख़ुद इम्तिहान से गुज़रे नहीं न गुज़रेंगे जो लोग 'तल्ख़' को आए हैं आज़माने को "
19 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ, आपकी ग़ज़ल के ये अशआर बहतर लगे हैं - कभी जो लोग थे आतुर ये घर बसाने को सुना है आज वो उद्यत हैं सब मिटाने को।१। * रचे थे गीत ग़ज़ल जो भी गुनगुनाने…"
19 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"गिराके बर्क़ मुझे ख़ाक में मिलाने को  उमँड़ रही है घटा बिजलियाँ गिराने को  मेरे लहू की हरिक बूंद में है वो ख़ुशबू  मचल रही हैं जिसे तितलियाँ चुराने को  शकिस्ता दिल से कोई दिल्लगी भी करता है  ये दिल मेरा ही मिला तुमको दिल…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//'उर्दू ज़बान सीख न पाए अगर जनाब वाक़िफ़ कभी न होंगे ग़ज़ल के हुनर से हम'// बहुत ख़ूब, हक़ बयान करता हुआ शे'र मुहतरम।"
Jun 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई जी, फ़ैज़ अहमद "फ़ैज़" की ग़ज़ल के ये अशआर देखें जहांँ उन्होंने मतले में हाथ को "हात" कहा है और "रात" के साथ ग़ज़ल का क़ाफ़िया "आत" तय किया है और अगले शे'र में "हालात"…"
Jun 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें। कुछ सुधार अपेक्षित हैं, देखियेेगा -  साबुत न बच सकेंगे इधर और उधर से हम काटेंगे ज़िन्दगी जो ज़माने के डर से हम ज़ौक ए नज़र से कीजिए मत गुफ्तगू…"
Jun 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//हर शख़्स को मिली हैं यहाँ अपनी इक नज़र// इस मिसरे में शुतरगुरबा दोष है... "मिली हैं" - बहुवचन, के साथ "इक नज़र" - एक वचन है। "
Jun 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//इस शब्द में मात्रा पतन नहीं है बल्कि लुग़त के हिसाब से इसे 2 और 21 दोनों तरह लिया जा सकता है।// इस उपयोगी जानकारी के लिए बहुत शुक्रिया मुहतरम। "
Jun 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//मेरा दिल जानता है मैंने कितनी मुश्किलों से इस आयोजन में सक्रियता बनाई है।// जी बेशक - हम सब आपकी ख़ैर ओ आ़फ़ियत और बहतर सेहत के मुतमन्नी और दुआगो हैं। "
Jun 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, मुशायरे में आपकी शमूलियत से रौनक़ लौट आयी है, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से मशकूर ओ ममनून हूँ। 'उकता गये जहान के शाम-ओ-सहर से हम'.. जी कर लिया है। आपके बेशक़ीमती वक़्त…"
Jun 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई जी, इल्म-ए-अरूज़ के अनुसार "हाय मख़्लूत" के कारण फल: पल, भूल: बूल, रथ: रत तथा घर: गर के हम वज़्न तथा हम क़ाफ़िया होता है, ये बात इल्म-ए-अरूज़ के माहिर बख़ूबी जानते हैं। "
Jun 28

Profile Information

Gender
Male
City State
BAGHPAT , UTTAR PRADESH.
Native Place
BARAUT
Profession
Private job
About me
उर्दु शायरी हिन्दी में लिखने और पढ़ने का शौक़ है॥

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's Blog

ग़ज़ल (महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे)

1212 - 1122 - 1212 - 112/22

महब्बतों से बने रिश्ते यूँ बिखरने लगे 

मुझी से कट के मेरे मेह्रबाँ गुज़रने लगे

*

मशाल इल्म की फिर से बुझा गया कोई 

फ़सादी सारे जिहालत में रक़्स करने लगे

अवाम जिनको समझती रही भले किरदार 

मुखौटे उन के भी चेहरों से अब उतरने लगे

ख़ुलूस और महब्बत के पैरोकार भी अब

धरम के नाम पे आपस में वार करने लगे 

*

सिला ये हमको मिला उन से दिल लगाने का

जुनून-ए-इश्क़ में हर…

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Posted on August 18, 2023 at 8:31am — 4 Comments

ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल (उम्र मिरी यूँ रही गुज़र)

22 - 22 - 22 - 2

उम्र मिरी यूँ रही गुज़र

कोई परिंदा ज्यूँ बे-पर

तपती रेत के सहरा में 

ढूंढ रहा हूँ आब-गुज़र 

हद्द-ए-नज़र वीराना है 

कोई साया है न शजर

ग़म के लुक़्मे खाकर मैं 

पी लेता हूँ अश्क गुहर

ढूँड रहा हूँ ख़ुद को ही 

बेकल दिल बेताब नज़र 

जूँ-जूँ रात गुज़रती है 

दूर हुई जाती है सहर 

तन्हा और बेबस हूँ मैं 

देख मुझे भी एक…

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Posted on July 13, 2023 at 11:52pm — 2 Comments

नज़्म - चाट

221 - 2122 - 221 - 2122 

आया है चाट वाला ले कर गली में ठेला

आते ही लग गया है बच्चों का जैसे मेला 

अम्मा से पैसे लेके दौड़ी जो बिटिया रानी 

सुनकर ही आ गया है चच्ची के मुँह में पानी

भाभी भी हो रहीं ख़ुश भय्या मँगा रहे हैं 

खाते नहीं मगर वो सबको खिला रहे हैं 

टन-टन तवा बजाता कर्छी से चाट वाला

कहता है आओ बाजी आओ जी मेरी ख़ाला

गर्मा-गरम पकौड़े चटनी है खट्टी-मीठी 

रगड़ा-मसाला खा के मुँह से…

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Posted on July 6, 2023 at 8:53pm — 4 Comments

ग़ज़ल (जाँ फिर से नुमूदार न हों ग़म के निशाँ और)

2211 -2211 -2211 -22

जाँ फिर से नुमूदार न हों ग़म के निशाँ और 

आ चल कि चलें ढूँडें कोई ऐसा जहाँ और 

दुनिया का सफ़र मुझ पे गिराँ होने लगा है

कहती है मेरी तब्अ' कि ठहरूँ न यहाँ और 

आते हैं नज़र फिर से मुझे पस्ती के इम्कान 

लगता है कि बाक़ी हैं अभी संग-ए-गिराँ और

 

भड़की हुई आतिश न बुझे ख़ून-ए-जिगर से 

इस इश्क़ के दरिया में जले आब-रसाँ और

अब सहरा की लहरें नज़र आती हैं…

Continue

Posted on June 29, 2023 at 7:18pm

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At 6:21pm on March 9, 2020, Samar kabeer said…

जनाब अमीरुद्दीन साहिब,ओबीओ पर आपका स्वागत है,मैं हर ख़िदमत के लिए हाज़िर हूँ ।

 
 
 

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"आदरणीय जैफ जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. वरिष्ठ जनों के  सुझाओं पर ध्यानकर्षण निवेदित…"
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"आदरणीय दयाराम जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार ... सादर "
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