हम वाणी जन हैं वाणी के
कवि लेखक हैं कलमकार।
मन जिनके निर्मल कोमल से
बहती निर्झर करुणा अपार।
हर तप्त हृदय की तपनक्रिया
का करते हैं सम्मान सदा।
जो दीन-हीन दुखियारे हैं
वे अपने हैं अभियान सदा।
जिनकी वाणी में द्रवित यहाँ
होता है बल नित अबला का।
जिनकी चर्चा में दुःख रहता
है मातृशक्ति हर विमला का।
जिनकी कलमों की धार सदा
निज संस्कृति का सम्मान करें।
जिनकी चिन्ता नित बाबू जी
की परिचर्चा का ध्यान…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on May 9, 2020 at 7:06pm — 1 Comment
Added by Anvita on May 9, 2020 at 6:03pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
तिजारत कैसे की जाए हुआ है फैसला जब से
बड़ी किल्लत है पानी की लहू सस्ता हुआ जब से
मशीनें अब यहाँ पर और महंगी क्यों नहीं होंगी?
वतन में मुफ़्त ही इंसान भी मिलने लगा जब से
हमारा शह्र छोटा था मगर मिलता नहीं था वो
हमें अक्सर बुलाता है नयी दिल्ली गयाा जब से
समय के साथ कम होगी यही हम सोच बैठे थे
ये दूरी कम नहीं होती मिटा है फासला जब से
नयी शक्लें दिखाता था कभी जब सामने आया
नहीं जाता…
Added by सालिक गणवीर on May 9, 2020 at 5:00pm — 17 Comments
(221 1221 1221 122 )
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देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक
ग़म देना हमें सिर्फ़ ज़रूरत के मुताबिक
**
ये ध्यान रहे कोई न दीवाना कभी हो
अल्लाह न दे इश्क़ भी चाहत के मुताबिक
**
कर ले न गिरफ़्तार अना जीत से हमको
हर जीत का हो दाम हज़ीमत के मुताबिक
**
दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 9, 2020 at 10:30am — 11 Comments
आकर वह आँचल में सोये
प्रेम दिखाए नैन भिगोये
मेरा है वह आज्ञापालक
क्या सखि साजन? ना सखि बालक।।1
समझो उसको ज्ञान प्रदाता
जो चाहो वह ढूँढ़ के लाता
बहुत चलन में आज और कल
क्या सखि शिक्षक? ना सखि गूगल।।2
नई बहू पर डाले फन्दा
सास ननद को रखे सुनन्दा
हर पत्नी का वो सहजीवी
क्या सखि गहना? ना सखि टीवी।।3
आता है वह स्वेद बहाने
ओंठ छुवन से प्यास बढ़ाने
बरते तनिक नहीं वह नरमी
क्या सखि साजन? ना सखि…
Added by नाथ सोनांचली on May 9, 2020 at 7:00am — 7 Comments
उत्कर्षा का सारा शरीर थककर चूर हो चुका था कब नींद के आगोश में चली गयी पता ही नहीं चला ।
"हे ईश्वर ये किस पाप की सजा दी है तूने ये जन्म देकर जहाँ दो घड़ी का चैन नहीं ।"
"ऐसा क्यों कहती हो ,सतत कर्मशीलता ही तो भरी है मैंने तुम्हारी पेशियों में . क्या गलत किया?"
"प्रभु ! मैं भी कोई मशीन तो नहीं हूँ की ये सतत परिश्रमशीलता.."
"जानता हूँ ये सब सोचकर ही मैंने तुम्हें अष्टभुजा का प्रतिक रूप दिया है।"
"अष्टभुजा??? या कि...सारा श्रेय तो ..किंतु…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on May 8, 2020 at 7:52pm — 2 Comments
शुतुरमुर्ग
सामने आई
विपदा देख
शुतुरमुर्ग सा
रेत में सिर धँसाये पड़ा,
बिल्ली को देख
कबूतर सा
आँखें मूँदे
सहमा बड़ा,
आज मानव
युद्ध सामने देखकर भी
क्यों कायर सम खड़ा,
काश! फिर कोई
जामवंत आये
हनुमान को
उनका बल
याद दिलाये।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Vandana Misra on May 8, 2020 at 3:30pm — 2 Comments
कॉल बेल बजी।शुभ्रा ने द्वार खोला।बाबा को देख वह सकते में आ गयी।वह एक अनिर्णय की स्थिति में फ़ंस गयी थी।अजीब कशमकश थी। वह बाबा को अंदर आने के लिये कहने का साहस नहीं जुटा पा रही थी क्योंकि अंदर का दृश्य बाबा बर्दास्त नहीं कर पायेंगे|
शुभ्रा ने जैसे तैसे खुद को संयमित किया और चरण स्पर्श कर उसने भर्राई आवाज में पूछ ही लिया,
"बाबा आप यहाँ अचानक, बिना कोई पूर्व सूचना?"
घोष बाबू ने बेटी के प्रश्न को अनसुना करते हुए अपना सवाल दाग दिया,
"ये अंदर से कैसी आवाजें आ रही हैं?…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 8, 2020 at 11:30am — 4 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया, दूषित है हर कोना
जिसको दुनिया बोल रही है कोरोना -कोरोना।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हिम्मत तनिक न खोना
यह केवल इक असुर शक्ति है, चीनी जादू टोना।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सबको यह समझाएँ
अपने-अपने घर रह कर ही, आओ इसे हराएँ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हो सामाजिक दूरी
मास्क लगाकर घर से निकलें, जब हो बहुत जरूरी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सबको बात बताना
हाथ जोड़कर करें नमस्ते, हाथ न कभी…
Added by नाथ सोनांचली on May 8, 2020 at 11:18am — 7 Comments
विदा लेता है कोई मन से इस तरह
कि जैसे
पलक भर झुकी हो
और दृश्य बदल जाए।
रात भर ऑसुओ से भीगा गिलाफ तकिये का
सुबह धुल जाए।सूजी हुई आंखें
पानी के छींटो से ताजा दम हो
काजल और बिखर जाए।बाकी हो बहुत कुछ कहना
और सांस का तार टूट जाए।
सूरज पर रहती हैं निगाह चौकस
चांद का क्या पता, कब निकले कब
ढल जाए।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
अन्विता ।
Added by Anvita on May 7, 2020 at 9:00pm — 5 Comments
सिवाय मंज़िल-ए-मक़्सूद गर क़िफ़ा होगी
मसाफ़त उम्र भर अपनी तो बे-जज़ा होगी
मरीज़-ए-इश्क़ हैं चारागरी भी कीजे जनाब
दवा-ए-क़ुरबत-ए-जानां से ही शिफ़ा होगी
चला हूँ जानिब-ए-कूचा-ए-यार उमीद लिये
सलाम आख़िरी होगा या इब्तिदा होगी
हमारे रिश्ते के उक़्दे खुले नहीं अब तक
लगी जो गिरह-ए-शक़-ओ-शुबह दोख़्ता होगी
हुआ तलत्तुफ़-ए-ख़ैरात -ए-आमिर आज ही क्यों
ज़रूर ख़ूं-ओ-पसीने की इक़्तिज़ा होगी
ज़रूर होंगें फ़साहत पे सामयीं मसहूर…
Added by Om Prakash Agrawal on May 7, 2020 at 8:30pm — 2 Comments
यह हैरत यहाँ ही सम्भव है।
भारत में क्या असम्भव है।
जो लोग यहाँ रोटी को तरसें।
मन उनका भी बोतल से हरषे।
जो राशन फ्री का लाते हैं।
वे दारू पर रकम लुटाते हैं।
कुछ ने तो हद इतनी कर दी।
पूड़ी तक दश में धर दी।
जो कुछ था कमाया रोटी का।
उसको दारू पर लुटा दिया।
क्या खूब है हिम्मत जज़्बा भी
इन अतिशय भूखे प्यासों का।
इन विषम दिनों में भी सबने।
क्या देश हेतु है काम…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on May 7, 2020 at 7:00pm — 3 Comments
ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल
(2122 2122 212 )
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बेकली कुछ बेबसी दीवानगी
हो गई है आज कैसी ज़िंदगी
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साथ में रहते मगर हैं दूरियाँ
अब घरों में छा गई बेगानगी
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आरती में भी भटकता ध्यान है
रस्म बन कर रह गई हैं बंदगी
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आदमी है अब अकेला भीड़ में
ढूंढ़ते हैं रिश्ते ख़ुद बाबस्तगी
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यूँ तो बिजली से मुनव्वर है जहाँ
फ़िक्र की है बात दिल की तीरगी
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कट रहे हैं हम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 7, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
करती सूखा बाढ़ बस, हलधर को भयभीत
बाँकी हर दुख पर रही, सदा उसी की जीत।१।
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नाविक हर तूफान से, पा लेगा नित पार
डर केवल पतवार का, ना निकले गद्दार।२।
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मजदूरी में दिन कटा, कैसे काटे रात
टपके का भय दे रही, निर्धन को बरसात।३।
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आते जाते दे हवा, दस्तक जिस भी द्वार
लेकर झट उठ बैठता, हर कोई तलवार।४।
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शासन बैठा देखता, हर संकट को मूक
निर्धन को भय मौत से, अधिक दे रही भूक।५।
**
मानवता से प्रीत थी, पशुपन से भय मीत
इस…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2020 at 6:06am — 6 Comments
मन के जतन :
फूल हुए शूल हुए
रास्ते की धूल हुए
अर्थहीन हो गए
अर्द्ध रैन स्वप्न
अवरोध प्रीत के
छंद सजे गीत के
सृष्टि में अट्हास हुआ
प्रीत का उपहास हुआ
सहमे
तन और मन
मेघों के आँचल पर
खुशबू से नाम लिखे
अनुरोधों की देहरी पर
बेमोल बिक गए
अंतर मौन स्वप्न
स्वीकार सभी खो गए
वनपाखी से हो गए
सायों से मिलने के
व्यर्थ हुए जतन
क्यूँ रोये नैना
न वो जाने
न…
Added by Sushil Sarna on May 6, 2020 at 7:14pm — 3 Comments
मापनी 2122 1212 22/112
दोस्त जो आसपास बैठे हैं,
जाने क्यों सब उदास बैठे हैं
सोचते हैं कि कोई आएगा,
ले के खाली गिलास बैठे हैं.
फिर से दरबार सज गया उनका,
लोग सब ख़ास ख़ास बैठे…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 5, 2020 at 8:28pm — 7 Comments
(121 22 121 22 121 22 121 22)
नया ज़माना कभी न आया , पुरानी दुनिया बदल रही है
ज़मीन पैरों तले थी कल तक ,न जाने कैसे फिसल रही है
बुझा न पायेंगी आंधियाँ भी ,हवाओं से जिस की दोस्ती है
अभी तो शम्अ जवां हुई है ,अभी धड़ल्ले से जल रही है
किसी के अरमां मचल रहे हैं , हुई किसी की मुराद पूरी
यहाँ उठी है किसी की डोली, वहाँ से अरथी निकल रही है
निकल रहा है किसी का सूरज,अभी हुई दोपहर किसी की
हमारे दिन तो गुज़र चुके हैं , हमारी अब…
Added by सालिक गणवीर on May 5, 2020 at 7:00am — 5 Comments
आखिर खुल गया ताला
होगा अब देश मतवाला
पुराने जमाने की बात थी
धंधा कहते थे, उसे काला
गरीब रोटी को रोता था
किसने ये गलत कह डाला
हस्पताल खोलना क्यूँ है
जब हाथ हो सबके प्याला
किसे पढ़ना है बताओ तो
जब विषय ही बदल डाला
दूरी की चिंता कौन करे
धज्जी उसकी उड़ा डाला
अब इकोनॉमी चमकेगी
कोरोना तेरा मुंह काला !!
Added by विनय कुमार on May 4, 2020 at 5:53pm — 8 Comments
(221 2121 1221 212 )
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मयख़ाने आ गया हूँ ज़माने को छोड़कर
मत बैठ साक़ी आज यूँ रुख़ अपना मोड़कर
**
आँखों से अब पिला कि दे जाम-ए-शराब तू
साक़ी सुबू में डाल दे ग़म को निचोड़कर
**
वक़्ते-क़ज़ा अगर यहीं रहने हैं ज़र-ज़मीँ
पी लूँ ज़रा सी क्या करूँ दौलत को जोड़ कर
**
कोई कभी शिकस्त मुझे दे न पाएगा
बादा-कशी में यार तू मुझसे न होड़ कर
**
पीकर ज़रा कहासुनी मामूली बात है
मय के लिए न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 4, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
चेतना का द्वार
उठते ही सवेरे-सवेरे
चिड़ियों की चहचहाट नहीं
आकुल क्रन्दन... चंय-चंय-चंय
शायद किसी चिड़िया का बीमार बच्चा
साँसे गिनता घोंसले से नीचे गिरा था
वह तड़पा, काँपा…
ContinueAdded by vijay nikore on May 4, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
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