आकर वह आँचल में सोये
प्रेम दिखाए नैन भिगोये
मेरा है वह आज्ञापालक
क्या सखि साजन? ना सखि बालक।।1
समझो उसको ज्ञान प्रदाता
जो चाहो वह ढूँढ़ के लाता
बहुत चलन में आज और कल
क्या सखि शिक्षक? ना सखि गूगल।।2
नई बहू पर डाले फन्दा
सास ननद को रखे सुनन्दा
हर पत्नी का वो सहजीवी
क्या सखि गहना? ना सखि टीवी।।3
आता है वह स्वेद बहाने
ओंठ छुवन से प्यास बढ़ाने
बरते तनिक नहीं वह नरमी
क्या सखि साजन? ना सखि गरमी।।4
जिसके बिन घर आँगन सूना
देख जिसे खुश हो मन दूना
गिरे बदन पर खाकर गच्चा
क्या सखि साजन? ना सखि बच्चा।।5
उसके अंदर खुद को देखूँ
सज-धज कर उसको अवरेखूँ
कर दूँ उसको बदन समर्पण
क्या सखि साजन? ना सखि दर्पण।।6
पल में तोला पल में माशा
उसमें बसती फिर भी आशा
गम देता औ' देता खीवन
क्या सखि मौसम? ना सखि जीवन।।7
बड़ा नहीं उसका आकार
बिना बैटरी वह बेकार
हिय में उसके रहते फाइल
क्या कंप्यूटर? ना मोबाइल।।8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आ. भाई सुरेन्द्र जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। आपका आभार
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है। टंकण त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। सादर
आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। पोस्ट करते समय शायद मेरी कुछ गलतियो की वजह से टंकण त्रुटियां दृष्टव्य हुई। अब संसोधित कर दिया है। आपका हृदय तल से आभार।
खीवन = मस्ती
अवरेखूँ = निहारना
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। बेहतरीन रचना।
पल में तोला पल में माशा
उसमें बसती फिर भी आशा
गम देता औ' देता खीवन
क्या सखि मौसम? ना सखि जीवन।।7
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,रचना का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब 'तुरंत' जी की बातों का संज्ञान लें ।
वाह वाह बहुत सुन्दर आप तो कह मुकरियाँ के जादूगर हैं , गिरे तन पर खाकर गच्चा -लय बाधित -गिरे=गिरता से सही हो जाएगा ,हिय में उसके रहते फाइलइल(टंकण त्रुटि ) कुछ शब्दों के अर्थ नहीं मालूम -अवरेखूं -खीवन =? अंतिम कह मुकरी ,कह मुकरी के मानदंड पर खरी नहीं |
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