यह हैरत यहाँ ही सम्भव है।
भारत में क्या असम्भव है।
जो लोग यहाँ रोटी को तरसें।
मन उनका भी बोतल से हरषे।
जो राशन फ्री का लाते हैं।
वे दारू पर रकम लुटाते हैं।
कुछ ने तो हद इतनी कर दी।
पूड़ी तक दश में धर दी।
जो कुछ था कमाया रोटी का।
उसको दारू पर लुटा दिया।
क्या खूब है हिम्मत जज़्बा भी
इन अतिशय भूखे प्यासों का।
इन विषम दिनों में भी सबने।
क्या देश हेतु है काम किया।
मुँह की रोटी को बेच बेच।
ऊँची कीमत में जाम लिया।
सरकारों ने जो कुछ भी इस
जनता का सहयोग किया।
उन सबकी भरपाई करने
इन वीरों ने हठयोग लिया।
लाखों की दारू का लोगों ने
कोटि कोटि तक दाम दिया।
जो एक नहीं ले सकते थे।
उन लोगों ने तमाम लिया।
ले करके दारू की बोतल।
सीधा अपना श्रमदान दिया।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अवनीश धर द्विवेदी
Comment
जनाब अवनीश धर जी आदाब,अच्छी रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर जी।मैं एकदम नया और अज्ञ हूँ।आपके प्रोत्साहन से हौसला बढ़ेगा।आशा है कि आप सुधीजनों का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा।पुनः एकबार साधुवाद सर।
हार्दिक बधाई आदरणीय अवनीश धर द्विवेदी जी।बहुत करारा व्यंग्य।
जो लोग यहाँ रोटी को तरसें।
मन उनका भी बोतल से हरषे।
जो राशन फ्री का लाते हैं।
वे दारू पर रकम लुटाते हैं।
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