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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Page

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत गूढ़ गजल हुई है । विचार, तथ्य और शब्दों का चयन बहुत कुछ सीखने को प्रेरित करता है।  हार्दिक बधाई। "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई शिज्जू जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई गिरिराज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई गजेंद्र जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा व सुझाव के लिए आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई अजय जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई सौरभ जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आभार। आ. भाई तिलक राज जी के मार्गदर्शन से गजल निखर गयी है। बदलाव उसी अनुरूप मूल गजल में कर लिया है।  नेट की समस्या के चलते विलम्ब से उपस्थिति के लिए क्षमा चाहता हूँ।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई शिज्जू शकूर जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई नीलेश जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। सुझाव के अनुसार मूल गजल में बदलाव कर लिया है। रदीफ के 'भी'  के संदर्भ में मार्गदर्शन के लिए पुनः आभार। नेट की समस्या के चलते विलम्ब से उपस्थिति के लिए क्षमा…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. भाई तिलक राज जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपकी उत्साहवर्धक और विस्तृत मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।  ओबीओ पर आप जैसे वरिष्ठों का मार्गदर्शन बहुत अनमोल है। इससे लेखन में सुधार करने में बहुत कुछ सीखने में मदद मिलती है। आपके द्वारा सुझये…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"सादर , अभिवादन आदरणीय।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"नफ़रतों की आँधियों में प्यार भी करते रहे।शांति का हर ओर से आधार भी करते रहे।१। *दुश्मनों के काल को अंगार भी करते रहे।साथ ही हम जंग में त्यौहार भी करते रहे।२।*बूँद बहती देखना तक था नहीं मंज़ूर पररक्त के दरिया कई हम पार भी करते रहे।३।*खूब औरों से कहा…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
May 18
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
May 18

Profile Information

Gender
Male
City State
Delhi
Native Place
Dharchaula,uttarakhand
Profession
teaching

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog

मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२

**

आग में जिसके ये दुनिया जल रही है

वह सियासत कब तनिक निश्छल रही है।१।

*

पा लिया है लाख तकनीकों को लेकिन

और आदम युग में दुनिया ढल रही है।२।

*

क्लोन का साधन दिया विज्ञान ने पर

मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है।३।

*

मान मर्यादा मिटाकर पाप करती

(भूल जाती मान मर्यादा सदा वह)

भूख दौलत की जहाँ भी पल रही है।४।

*

गढ़ लिए मजहब नये कह बद पुरानी

पर न सीरत एक की उज्वल रही है।५।

*

दौड़ती नफरत हमेशा फिर रही…

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Posted on April 30, 2025 at 11:41am — 13 Comments

पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे

रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल।

उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।

*

जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।

रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।

*

छीन किसी के लाल को, जो सौंपे नित पीर।

कहाँ धर्म के मर्म को, जग में हुआ अधीर।।

*

बनकर बस हैवान जो, मिटा रहे सिन्दूर।

वही नीच पर चाहते, जन्नत में सौ हूर।।

*

मंसूबे उनके जगत, अगर गया है ताड़।

देते है फिर क्यों उन्हें, कहो धर्म की आड़।।

*

पहलगाम ही क्यों कहें, पग-पग मचा…

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Posted on April 30, 2025 at 11:26am — 3 Comments

दोहे -रिश्ता

सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।

रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।

*

वह रिश्ते ही सच  कहूँ, पाते  लम्बी आयु

जहाँ परखते हैं नहीं, दीपक को बन वायु।।

*

तोड़ो मत विश्वास की, कभी भूल से डोर

यह टूटा तो हो  गया, हर रिश्ता कमजोर।।

*

करे दम्भ लंकेश सा, कुल का पूर्ण विनाश।

ढके दम्भ की धूल ही, रिश्तों का आकाश।।

*

रिश्तों में  सब  ढूँढते, केवल स्वार्थ जुगाड़।

शेष बची है अब कहाँ, अपनेपन की आड़।।

*

सुख में सब वाचाल हैं, दुख में बेढब…

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Posted on March 16, 2025 at 8:50pm — 4 Comments

दोहा दसक- गाँठ





ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।

जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१।

*

मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर

इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।

*

दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम

लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।

*

छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ

सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।

*

रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल

उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।

*

बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन

मन की…

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Posted on February 25, 2025 at 11:31pm — 4 Comments

Comment Wall (17 comments)

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At 10:59am on January 25, 2023, Anita Bhatnagar said…

सादर आभार आदरणीय 

At 3:37pm on December 21, 2021, KullarSaddik said…

अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)

At 8:45am on January 16, 2021, Aazi Tamaam said…

मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं

At 8:39pm on December 3, 2020,
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
said…

जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी 

At 11:39pm on November 22, 2020, DR ARUN KUMAR SHASTRI said…

प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं

At 8:37am on May 14, 2020, Om Prakash Agrawal said…
आदरणीय
सराहना हेतु सहृदय आभार एवं धन्यवाद
At 4:12pm on May 7, 2020, सालिक गणवीर said…
हौसला अफजाई के लिए आपका ममनून हूँ आदरणीय
At 4:04pm on August 8, 2018, babita garg said…

शुक्रिया लक्ष्मण जी

At 11:44am on March 3, 2018, Sanjay Kumar said…
बहुत बहुत धन्यवाद और आभार। कोशिश करूंगा कि कुछ योगदान कर सकूं। बस हौसला अफजाई करते रहिएगा और जहां जरूरी हो तो कुछ सिखा दीजियेगा। सादर
At 7:27pm on March 10, 2016, TEJ VEER SINGH said…

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!आपने मुझे इस क़ाबिल समझा!

 
 
 

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