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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए खेद है।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आभार। इंगित मिसरे पर आपका सुझाव अच्छा है। एक जगह से पेस्ट करते समय कुछ डिलिट हो गया रहा। मूल इस प्रकार से है देखिएगा- * मेल को खूब भरत राम की गाथा कहकरसिर्फ झगड़े को तू…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई आजी तमाम जी , सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।उत्तम गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"याद रख रेत के दरिया को रवानी लिखनाभूलता खूब है अधरों को तू पानी लिखना।१।*छीन लेता है  स्वयं  भोर  सभी की लेकिनमुझसे कहता है सदा शाम सुहानी लिखना।२।*आज सब  धूर्त  सियासत  में समाये हैं जब ईश जनता को तनिक और सयानी…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही चलन हैअँधेरा रिझाता है अब रोशनी को।।*दुखों ने लगायी  है  ये आग कैसीसुहाती नहीं है खुशी ही खुशी को।।*चकाचौंध ऊँची जो बोली लगाताकि अनमोल कैसे रखें सादगी को।।*बचे ज़िन्दगी क्या भला हौसलों कीअगर तोड़  दे  आदमी  आदमी को।।*गलत को मिला है सहजता से परमिटकसौटी  पे  रक्खा   गया   है सही को।।*रतौंधी सी अब जो समय को हुई हैछलावा न छल दे कही पारखी को।।*"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसेभले  नींद   आयी  तेरी  रहबरी  को।।*मौलिक/अप्रकाशितलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'See More
Sep 25
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Sep 18
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा कर  तर्क से जो सच समझने जा रहा है  "
Sep 10
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए हार्दिक आभार।"
Sep 7
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन मिलता रहे यही कामना है।"
Sep 7

Profile Information

Gender
Male
City State
Delhi
Native Place
Dharchaula,uttarakhand
Profession
teaching

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

  • १२२/१२२/१२२/१२२

    *****

    पसरने न दो इस खड़ी बेबसी को

    सहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।

    *

    नया दौर जिसमें नया ही चलन है

    अँधेरा रिझाता है अब रोशनी को।।

    *

    दुखों ने लगायी  है  ये आग कैसी

    सुहाती नहीं है खुशी ही खुशी को।।

    *

    चकाचौंध ऊँची जो बोली लगाता

    कि अनमोल कैसे रखें सादगी को।।

    *

    बचे ज़िन्दगी क्या भला हौसलों की

    अगर तोड़  दे  आदमी  आदमी को।।

    *

    गलत को मिला है सहजता से परमिट

    कसौटी  पे  रक्खा   गया   है सही को।।

    *

    रतौंधी सी…
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Posted on September 25, 2025 at 5:02pm

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*****

जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है

हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर है।१।

*

जब सच कहे तो काँप  उठे झूठ का नगर

हमको तो सच का ऐसे ही गढ़ना ज़मीर है।२।

*

सत्ता के  साथ  बैठ  के  लिखते हैं फ़ैसले,

जिनकी कलम है सोने की, मरना ज़मीर है।३।

*

ये शौक निर्धनों का है, पर आप तो धनी,

किसने कहा है आप को, रखना ज़मीर है।४।

*

चलने लगी हैं गाँव में, बाज़ार की हवा,

पनपेंगे ज़र के…

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Posted on September 3, 2025 at 9:15pm — 4 Comments

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२

******

घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी

याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१।

*

झूठ उसका न जग झूठ समझे कहीं

बात यूँ अनकही  भी  निभानी पड़ी।२।

*

दे गये अश्क  सीलन  हमें इस तरह

याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३।

*

बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर

एक  दीवार   घर   की  गिरानी  पड़ी।४।

*

रख दिया बाँधकर उसको गोदाम में

चीज अनमोल  जो  भी पुरानी पड़ी।५।

*

कर लिया सबने ही जब हमें आवरण

साख हमको  सभी  की बचानी…

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Posted on September 1, 2025 at 5:30pm — 4 Comments

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212

****

केश जब तब घटा के खुले रात भर

ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।।

*

देख सावन के आँसू छलकने लगे

और जुगनू  हुए  चुलबुले रात भर।।

*

हाल अपना मगर इसके विपरीत था

नैन  डर  से  रहे  अधखुले  रात भर।।

*

धार फूटी कहीं फोड़ पाषाण को

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर।।

*

देख तारों को मद्धम जो इतरा गयी

दर्प उस  चाँदनी  के  घुले रात भर।।

*

खोल मन बिजलियाँ खिलखिलाती रहीं

कह गये …

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Posted on August 17, 2025 at 8:56pm — 4 Comments

Comment Wall (17 comments)

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At 10:59am on January 25, 2023, Anita Bhatnagar said…

सादर आभार आदरणीय 

At 3:37pm on December 21, 2021, KullarSaddik said…

अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)

At 8:45am on January 16, 2021, Aazi Tamaam said…

मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं

At 8:39pm on December 3, 2020,
सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey
said…

जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी 

At 11:39pm on November 22, 2020, DR ARUN KUMAR SHASTRI said…

प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं

At 8:37am on May 14, 2020, Om Prakash Agrawal said…
आदरणीय
सराहना हेतु सहृदय आभार एवं धन्यवाद
At 4:12pm on May 7, 2020, सालिक गणवीर said…
हौसला अफजाई के लिए आपका ममनून हूँ आदरणीय
At 4:04pm on August 8, 2018, babita garg said…

शुक्रिया लक्ष्मण जी

At 11:44am on March 3, 2018, Sanjay Kumar said…
बहुत बहुत धन्यवाद और आभार। कोशिश करूंगा कि कुछ योगदान कर सकूं। बस हौसला अफजाई करते रहिएगा और जहां जरूरी हो तो कुछ सिखा दीजियेगा। सादर
At 7:27pm on March 10, 2016, TEJ VEER SINGH said…

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!आपने मुझे इस क़ाबिल समझा!

 
 
 

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