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Dayaram Methani
  • Male
  • Bhilwara - rajsthan
  • India
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  • अजय गुप्ता 'अजेय
  • Samar kabeer
 

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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदरणीय अमित जी, पोस्ट की समीक्षा कर सुझाव देने के लिए हार्दिक आभार। आपके सुझाव याद रखूंगा। प्रयास कर रहा हूँ और करता रहूंगा। सादर।"
Thursday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"221 2121 1221 212 मस्ती भरी कहानिया बहका गई मुझेबदनामियाँ थकान दे बिखरा गई मुझे परिवार ने कहा तो मुझे सोचना पड़ाआबाद घर किया तो फिज़ा भा गई मुझे सारी थकान खींच ली उसने गले लगा उस यार की अदा तो नशा पिला गई मुझे उसने तो फर्ज अपना निभाया भली तरह उपकार…"
Wednesday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-155
"आदरणीय कल्पना भट्ट जी, सुंदर हाइकु के लिए बधाई स्वीकार करें। कुछ टंकण त्रुटि रह गई लगती है। सुझाव के तौर पर लिख रहा है। आप अन्यथा न लें। प्रथम हाइकु में ...पहली बना के स्थान पर पहेली बना होना चाहिए तथा आठवे हाइकु में ... दोस्त न साथी, सोचना नही अब,…"
Sep 17
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-155
"आदरणीय कल्पना भट्ट जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sep 17
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-155
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, शानदार कुण्डलिया छंद सृजन के लिए हार्दिक बधाई।"
Sep 17
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-155
"आदरणीय अजय गुप्ता जी, आयामों का अतुल संकलन, मेरा जीवन...अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
Sep 17
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-155
"आदरणीय अजय गुप्ता जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sep 17
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-155
"गज़लमापनी — 22 22 22 22 22 22 22 जीवन मेरा ऐसा जैसे, नदिया की इक धारा,सुख दुख की लहरों में बीता, अपना जीवन सारा। कुछ बातों से सुख मिलता है, कुछ घाव करे गहरे।एक चुभन हरदम रहती है, मिला न कोई प्यारा। चोट लगी है दिल पर ऐसी, दर्द न भूला जाये।धन…"
Sep 16
अजय गुप्ता 'अजेय and Dayaram Methani are now friends
Sep 12
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"आदरणीय रिचा यादव जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी आपने। बधाई स्वीकार करें।"
Aug 26
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Aug 26
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"आदरणीय अमित जी, जो जानकारी आपने दी है उसका ज्ञान मुझे नहीं था। आपने बहुत अच्छी तरह एवं विस्तार से इस बाबत बताया है। इस हेतु आपका बहुत बहुत शु​क्रिया एवं हार्दिक आभार।"
Aug 26
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"धन्यवाद आदरणीय।"
Aug 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"आदरणीय अमित जी, आपने गिरह पर जो सुझाव दिया है उसे एक बार देख कर बतायें कि हर को लघु कैसे किया जा सकता है।लबों से नहीं कह सके बात हमज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात कीसुझाव - लबों से कहें क्यों हर इक बात हमलबों से 122कहें क्यों 122हर इक बा 222त हम 12"
Aug 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"आदरणीय अमित जी, बहुत बहुत धन्यवाद पोस्ट पर आने व सुझाव देने के लिए हार्दिक आभार।"
Aug 25
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-158
"हुई आरजू पूरी सौगात की वतन की चँदा से मुलाकात की कई साल से थे लगे काम मेंपसीना बहाया करामात की सही राह हम अब दिखाये उन्हेंकरे है जो बाते खुराफात की सफलता मिली ये निजी दम हमेंनहीं है मिली मुफ्त खैरात की जले है अनेकों हमीं से सदाकरे बात ऐसे सवालात…"
Aug 25

Profile Information

Gender
Male
City State
BHILWARA
Native Place
BHILWARA
Profession
journlist and writer
About me
I like to read and write kavita, gazal, short stories and artical.

Dayaram Methani's Blog

गज़ल

गज़ल

2122 2122 2122 212

आजकल हर बात पर लड़ने लगा है आदमी,

क्रोध के साये तले पलने लगा है आदमी।

चाह झूठी शान की अब बढ़ गई है बहुत ही,

इस लिये बेचैन सा रहने लगा है आदमी।

आग हिंसा की बहुत झुलसा रही है देश को,

खूब धोखा दल बदल करने लगा है आदमी।

धन कमाया पर बचाया कुछ नहीं अपने लिये,

अब बुढ़ापे में छटपटाने लगा है आदमी।

जिन्दगी भर झगड़ने से क्या मिला इंसान को,

देख ’’मेठानी‘‘ बहुत रोने लगा है आदमी।

मौलिक…

Continue

Posted on January 30, 2022 at 12:16pm — 2 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 2



ज़िन्दगी में हर कदम तेरा सहारा हूँ

नाव हो मझधार तो तेरा किनारा हूँ

तुम भटक जाओ अगर अनजान राहों में

पथ दिखाने को तुम्हें रौशन सितारा हूँ

ज़िन्दगी का खेल खेलो तुम निडरता से

हर सफलता के लिए मैं ही इशारा हूँ

राह जीने की सही तुमको दिखाऊंगा

ज़िन्दगी के सब अनुभवों का पिटारा हूँ

साथ क्यों दूं मैं तुम्हारा सोच मत ऐसा

अंश तुम मेरे पिता मैं ही तुम्हारा हूँ

- दयाराम मेठानी…

Continue

Posted on November 6, 2021 at 10:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

 2122 2122 2122 212

नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है

सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है

संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं

वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है

जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया

यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है

दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं

बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है

हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां

आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…

Continue

Posted on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments

गज़ल सीख लो

2122 2122 212

दर्द को दिल में दबाना सीख लो

ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो

आंख से आंसू बहाना छोड़िये

हर मुसीबत को भगाना सीख लो

ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से

खेल में खुद को जिताना सीख लो

फूल को दुनिया मसल कर फैंकती

खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो

छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी

कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो

थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी

दिन पुराने अब भुलाना सीख लो

कौन…

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Posted on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments

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At 10:09pm on May 24, 2019, dandpani nahak said…
आदरणीय दयाराम मेथानि जी आदाब बहुत बहुत शुक्रिया जनाब
 
 
 

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