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छोड़ बसेरा बचपन का अब, दूजे घर को जाना है
रीत बनी है इस जग की जो, उसको मुझे निभाना है
लेकिन मन में प्रश्न बहुत हैं, उनमें पापा खोने दो
पल भर में मैं हुई पराई, मुझको खुल कर रोने दो
घर आँगन की मधुर सुवासित, पापा मैं कस्तूरी थी
जन्मी थी तो बोले थे तुम, बिटिया बहुत जरूरी थी
कल तक तेरी ही गोदी में, पापा मैं तो सोती थी
तुम्हे न पाती थी जब घर में, मार दहाड़े रोती थी
भूल गए क्यों सारी बातें, मुझसे क्यों मुँह…
ContinuePosted on October 13, 2021 at 10:52am — 9 Comments
221 2121 1221 212
था नाम दिल पे नक़्श मिटाया नहीं गया
मुझसे तुम्हारा प्यार भुलाया नहीं गया
कल को सँवारने में गई बीत ज़िन्दगी
जो सामने था लुत्फ़ उठाया नहीं गया
कोशिश बहुत की, राज़-ए- मुहब्बत अयाँ न हो
अल्फ़ाज़ से मगर ये छिपाया नहीं गया
बीवी बहन बहू न मिलेगी कोई तुम्हें
बेटी को कोख़ में जो बचाया नहीं गया
मंदिर में जाके भोज …
ContinuePosted on March 30, 2021 at 5:30pm — 3 Comments
रहते यारों संग थे, मस्ती में हम डूब
बचपन में होता रहा, गप्प सड़ाका खूब
गप्प सड़ाका खूब, नहीं चिंता थी कल की
आह! मगर वह नाथ' ज़िन्दगी थी दो पल की
आया अब यह दौर, जवानी जिसको कहते
अपने में ही मस्त, जहाँ हम सब हैं रहते
ऑफिस में गप मारना, बहुत बुरी है बात
देख लिया यदि बॉस ने, बिगड़ेंगे हालात
बिगड़ेंगे हालात, मिले टेंशन पर टेंशन
घट जाए सम्मान, कटे वेतन औ' पेंशन
भभके उल्टी आग, बन्द थी जो माचिस में
हर…
Posted on March 15, 2021 at 5:16am — 4 Comments
किसे सुनाऊँ अपनी पीड़ा, किसको मैं समझाऊँ
सब पत्थर के देव यहाँ हैं, किस से सर टकराऊँ
युग कोई भी यहाँ रहा हो, सबने हमें ठगा है
माँ ममता की मूरत कहकर, देता रहा दगा है
कल जैसी ही आज हमारी, वैसी भाग्य निशानी
जुड़ी उसी से सुन लो यारा, अपनी एक कहानी
शादी के दस साल हुए थे, पर ना गोद भरी थी
बाँझ न रह जाऊँ जीवन भर, इससे बहुत डरी थी
देख किसी बच्चे को सोचूँ, झट से गले लगा लूँ
छाती का मैं दूध पिलाकर, अपनी …
Posted on March 7, 2021 at 8:14pm — 6 Comments
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी.
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी ग़ज़ल "हाथ से सारे फिसल गए" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र यथा शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
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