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Anvita
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Jul 7, 2020
Anvita commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मगर हम स्वेद के गायें - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर नमस्कार बहुत सुंदर रचना है।मेरी बधाई स्वीकार करें ।"
Jul 7, 2020
Anvita commented on Anvita's blog post एकाकी चांद
"इस ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।आशा है आगे भी माग॔दश॔न देकर स्नेह बनाए रखेंगे ।"
Jun 24, 2020
Samar kabeer commented on Anvita's blog post एकाकी चांद
"'ऑख की,ड़िबिया में' इस पंक्ति में 'ऑख' को "आँख" करें । 'खुनक'--"ख़ूनक" 'सांसो के रास्ते'--"साँसों" 'और कामना की बातियाॅ'--"बातियाँ" 'जलती…"
Jun 24, 2020
Anvita commented on Anvita's blog post एकाकी चांद
"आदरणीय समर कबीर साहब अभिवादन स्वीकार करें ।कुछ कमियों के बारे में इंगित करेंगे तो सौभाग्य समझूंगी।धन्यवाद ।सादर अन्विता ।"
Jun 24, 2020
Samar kabeer commented on Anvita's blog post एकाकी चांद
"मुहतरमा अन्विता जी आदाब, अच्छी कविता लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।"
Jun 24, 2020
Anvita posted a blog post

एकाकी चांद

ऑख की,ड़िबिया में,बंद,सपने हैं,मौसम की खुनक,सांसो के रास्ते,अब,नहीं उतरती,मन की,सीढ़ियाँ ....हालाँकि,उदासी के दियों में,भरपूर है तेल,और कामना की बातियाॅ ....रात भरजलती है ।होड़ लेती हैं, स्मृतियाँ...तारों से !चांदनी के इद॔-गिद॔,मृत सपनों का,वलय है, एकाकी चांद के आंसू ...रात भर टपकते हैं,सुबह,पत्तों पर,धोखा होता है,ओस का।अन्विता ।मौलिक एवं अप्रकाशित ।See More
Jun 22, 2020
Anvita commented on Manan Kumar singh's blog post दीप बन मैं ही जला....(गजल)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी. आपकी रचना "दीप बन.."के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।सादर अभिवादन ।अन्विता"
Jun 22, 2020
Anvita commented on Anvita's blog post "स्मृतियाँ "
"आदरणीय समर कबीर जी नमस्कार, आपकी प्रतिक्रिया के बिना रचना में कुछ अधूरापन सा था। बहुत बहुत आभार ।सादर अन्विता ।"
Jun 21, 2020
Samar kabeer commented on Anvita's blog post "स्मृतियाँ "
"मुहतरमा अन्विता जी आदाब,अच्छी कविता हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Jun 21, 2020
Anvita commented on Anvita's blog post "स्मृतियाँ "
"आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ. ।सादर।अन्विता ।"
Jun 20, 2020
Anvita and आशीष यादव are now friends
Jun 20, 2020
narendrasinh chauhan commented on Anvita's blog post "स्मृतियाँ "
"बहुत सुन्दर प्रस्तुति"
Jun 20, 2020
Anvita commented on Anvita's blog post "स्मृतियाँ "
"ड़ा.विजय शंकर जी सादर प्रणाम ।सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।"
Jun 19, 2020
Dr. Vijai Shanker commented on Anvita's blog post "स्मृतियाँ "
"सहमे- सहमे सच पर हावी,झूठ के निम॔म दांव हैं बाकी ।बहुत सुन्दर प्रस्तुति , सुश्री अन्विता जी , बधाई , सादर।"
Jun 19, 2020
Anvita posted a blog post

"स्मृतियाँ "

दुःखते हुए पांव हैं बाकी,रिसते हुए घाव हैं बाकी,आशाएँ जो छोड़ गईं,उजड़े हुए गाँव हैं बाकी।गीत अधर पर ठहरे-ठहरेअश्रु पर पलकों के पहरे,सहमे- सहमे सच पर हावी,झूठ के निम॔म दांव हैं बाकी ।सतरंगी सपनों के ड़र से,लहरों से समझौते करते,ठीक किनारे उलट गई जो,स्मृतियों की नाव है बाकी...।अन्विता ।मौलिक एवं अप्रकाशित ।See More
Jun 19, 2020

Profile Information

Gender
Female
City State
Jabalpur , Madhya Pradesh
Native Place
Jabalpur
Profession
Housewife

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एकाकी चांद

ऑख की,ड़िबिया में,
बंद,
सपने हैं,
मौसम की खुनक,
सांसो के रास्ते,
अब,नहीं उतरती,
मन की,
सीढ़ियाँ ....
हालाँकि,
उदासी के दियों में,
भरपूर है तेल,
और कामना की बातियाॅ ....
रात भर
जलती है ।
होड़ लेती हैं, स्मृतियाँ...तारों से !
चांदनी के इद॔-गिद॔,
मृत सपनों का,
वलय है, एकाकी चांद के आंसू ...
रात भर टपकते हैं,
सुबह,पत्तों पर,
धोखा होता है,
ओस का।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Posted on June 22, 2020 at 9:58pm — 4 Comments

"स्मृतियाँ "

दुःखते हुए पांव हैं बाकी,
रिसते हुए घाव हैं बाकी,
आशाएँ जो छोड़ गईं,
उजड़े हुए गाँव हैं बाकी।
गीत अधर पर ठहरे-ठहरे
अश्रु पर पलकों के पहरे,
सहमे- सहमे सच पर हावी,
झूठ के निम॔म दांव हैं बाकी ।
सतरंगी सपनों के ड़र से,
लहरों से समझौते करते,
ठीक किनारे उलट गई जो,
स्मृतियों की नाव है बाकी...।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Posted on June 18, 2020 at 9:49pm — 6 Comments

"समय नहीं है"

चुप है समय,

दिशाओं के अनुमान में,

भ्रमित और आहत है मन

सत्य के संधान में,

शब्द करते हैं सवारी,

नुकीले अस्त्रों की,

शब्द,

बनना चाहिए था

जिन्हें मरहम!

अंगुलियां उठती हैं

सामर्थ्य पर;

थाम सकतीं थीं जो,अशक्तता ...

अंगुलियां जो,ढाल सकतीं थीं

दहकते लावे को

फूल की शक्ल में; शून्य हैं ऑखे,

ऑखे, जो संजो सकतीं थीं

पल-पल का इतिहास,

आहत है मन,

जो प्रहरी था सच का,

निःशब्द है अपने आखेट पर,

अभी समय नहीं… Continue

Posted on June 14, 2020 at 1:18pm — 2 Comments

"नियति "

आस छोड़ी न थी,
न,प्रयास बौने थे,
जीतना कहाँ
संभव होता
हम
नियति के हाथों के,
खिलौने थे।
ओढे, बिछाए,
तह लगाकर
रख दिए
हमारी इच्छाओं के
ही तो,बिछौने थे।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Posted on June 13, 2020 at 1:10pm — 2 Comments

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