सुख-दुख में साथ निभाएं अपनों का |
आओ, इक देश बनाएं सपनों का ||
फसलों पर, ना मौसम की मार पड़े |
कृषि हो उन्नत, ना हों परिवार बड़े |
घर-घर नलका, बिजली, शौचालय हो |
गाँव-गाँव रुग्णालय, विद्यालय हो |
तजि कुरीति, संग धरें नव चलनों का |
आओ, इक गांव बसाएं सपनों का ||
जन-जन को, उपयुक्त रोजगार मिले |
जीवन को, सुरभित स्वच्छ बयार मिले |
सुलभ निवास, सुविधाजनक प्रवास हो |
धवल सादगी का बिखरा प्रकाश हो |
फीकी जो करे चमक, नव…
Added by Dharmendra Kumar Yadav on April 6, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
अतुकांत कविता : निर्लज्ज
=================
उसने कहा,
मेरे पास गाड़ी है, बंगला है
बैंक बैलेंस है
तुम्हारे पास क्या है ?
मैने कहा,
मेरे पास हैं...
फेसबुकिये दोस्त
जो नियमित भेजते रहते हैं
गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग,
गुड नाईट, स्वीट ड्रीम वाले संदेश
उसने कहा,
मूर्ख हो तुम
निपट अज्ञानी हो
मैंने कहा,
हाँ, हो सकता है मैं हूँ
किंतु...
सक्रिय हो जाती है छठी इंद्रीय
जब…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2020 at 12:30pm — 2 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
जुबान इतनी तेरी दोस्त आतिशीं मत रख
कि जिसमें मार* पले ऐसी आस्तीं मत रख (*सॉंप )
**
मैं तज़र्बें की बिना पर ये बात कहता हूँ
बहुत दिनों के लिए कोई दिलनशीं मत रख
**
सजाने ज़ुल्फ़ को कुछ देर यासमीं काफ़ी
तवील वक़्त की ख़ातिर तू यासमीं*मत रख
**
फिसलते दस्त हैं जब हमकिनार करता हूँ
क़बा पहन के नई यार रेशमीं मत रख
**…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 5, 2020 at 5:30pm — 2 Comments
मीठे दोहे :
चौखट से बाहर नहीं, रखना अपने पाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना गाँव।
मीठे रिश्तों की यहाँ, मीठी लगती छाँव।।
मीठे रिश्तों की यहां,मीठी लगती छाँव।
बार-बार मिलती नहीं,ऐसी मीठी ठाँव।।
बार बार मिलती नहीं, ऐसी मीठी ठाँव।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।।
अंतस की दूरी मिटे, नफ़रत हारे दाँव।
घर के अंदर स्वर्ग से, सुंदर अपना…
Added by Sushil Sarna on April 4, 2020 at 4:54pm — 4 Comments
मृदु-भाव
प्रात की शीतल शान्त वेला
हवा की लहर-सी तुम्हारी मेरे प्रति
मृदु मोह-ममता
मैं बैठा सोचता मेरे अन्तर में अटका
कोलाहल था बहुत
क्यूँ किस वातायन से किस द्वार से कैसे
चुपके से आकर मेरे जीवन में
घोल दिए सरलता से तुमने मुझमें
प्रणय के पावन गीत
किसी सपने की मधुरिमा-सी
सच, प्यारी है मुझको तुम्हारी यह प्रीत
नए प्यार के नवजात गीत की नई प्रात
तुम आई,…
ContinueAdded by vijay nikore on April 4, 2020 at 4:31pm — 4 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
ग़रीब हूँ मैं मगर शौक इक नवाबी है
ख़िज़ाँ की उम्र में भी दिल मेरा गुलाबी है
**
अधूरा काम कोई छोड़ना नहीं आता
कि मुझ में बचपने से एक ये ख़राबी है
**
मेरे लिए ही सनम क्यों हया का है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 4, 2020 at 12:30pm — 8 Comments
नहीं हमारी नहीं तुम्हारी
अखिल विश्व में महा-बिमारी
आई पैर पसार
भैया मत छोड़ो घर-द्वार
भैया मत छोड़ो घर-द्वार
निकल चीन से पूर्ण जगत में डाल दिया है डेरा
यह विषाणु से जनित बिमारी, खतरनाक है घेरा
रहो घरों में रहो अकेले
नहीं लगाओ जमघट मेले
कहती है सरकार
भैया मत छोड़ो घर-द्वार
नहीं आम यह सर्दी-खाँसी इसका नाम कोरोना
नहीं दवाई इसकी, होने पर केवल है रोना
इसीलिए मत घर से निकलो
धीर धरो पतझड़ से निकलो
मानो…
Added by आशीष यादव on April 4, 2020 at 11:33am — 2 Comments
1222 1222 122
यूँ तुझपे हक़ मेरा कुछ भी नहीं है
मगर दिल भूलता कुछ भी नहीं है
तेरी बातें भी सारी याद है पर
कहा तेरा हुआ कुछ भी नहीं है
तेरी आंखों में है गर कोई मंजिल
तो फिर ये रास्ता कुछ भी नहीं है
ग़ज़ल अपनी कलम से खुद ही निकली
तसल्ली से लिखा कुछ भी नहीं है
मेरा अफसाना जो तुम पढ़ रहे हो
ये कुछ लायक है या कुछ भी नहीं है
नज़र जिसमें तेरी…
ContinueAdded by मनोज अहसास on April 4, 2020 at 12:30am — 2 Comments
ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222
कोई कातिल सुना जो शहर में है बेजुबाँ आया
किसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया
धरा रह जायेगा इन्सान का हथियार हर कोई
हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया
घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ
करें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया
अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत को
अडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया
अगर महफूज रखना है बला…
ContinueAdded by कंवर करतार on April 3, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
एक पंथ दो काज - लघुकथा -
"हल्लो, मिश्रा जी, गुप्ता बोल रहा हूँ।"
"अरे यार नाम बताने की आवश्यकता नहीं है।मेरे मोबाइल में आपका नाम आ गया। बोलो सुबह सुबह कैसे याद किया?"
"आज आपकी थोड़ी मदद चाहिये।"
"कैसी बात करते हो मित्र।आपके लिये तो आधी रात को तैयार हैं।हुकम करो।"
"अरे भाई आज राम नवमी है।कुछ बच्चे बच्चियों को जिमाना है।मैडम का आदेश हुआ कि सोसाइटी में से अपने दोस्तों के बच्चे बुलालो।"
"ये तो बहुत टेढ़ा मामला है।लॉक डाउन का सरकारी आदेश है।उसकी अवहेलना तो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on April 3, 2020 at 5:55pm — 6 Comments
समय :
न जाने किस अँधेरे की जेब में
सिमट जाता है समय
न जाने कब उजालों के शिखर पर
कहकहे लगाता है समय
अंतहीन होती है समय की सड़क
बिना पैरों का ये पथिक
अपने काँधों पर ढोता है सदा
कल, आज और कल की परतों में
साँस लेते लम्हों की अनगिनित दास्तानें
और नुकीली सुईयों के पाँव के नीचे रौंदे गए
आफ़ताबी अरमानों के बेनूर आसमान
क्षणों की माल धारण किये
उन्नत भाल का ये आहटहीन अश्व
सृष्टि चक्र का वो वाहक है…
Added by Sushil Sarna on April 3, 2020 at 3:00pm — 4 Comments
क्षणिकाएँ :
क्या ख़बर
हम फिर
मिलें न मिलें
मगर
छोड़ जाऊँगा मैं
समय के भाल पर
हमारे मिलन की गवाह
परछाईयाँ
काँपते चाँद की
.............................
झुलसे हुए होठों पर
रुक गया
फिसल कर
एक अश्क
बेवफ़ाई का
....................
खाली घड़ा
सूखी रोटी
टूटे छप्परों से झाँकती
झूठी आस की
धवल चाँदनी
सुशील सरना /2.4.20
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 2, 2020 at 5:20pm — 4 Comments
Added by Rachna Bhatia on April 2, 2020 at 1:31pm — 4 Comments
2122 2122 212
.
देख साँसों में बसा है ओ बी ओ
मेरी क़िस्मत में लिखा है ओ बी ओ
कितने आए और कितने ही गए
शान से अब तक खड़ा है ओ बी ओ
बढ़ गई तौक़ीर मेरी और भी
तू मुझे जब से मिला है ओ बी ओ
हों वो 'बाग़ी' या कि भाई 'योगराज'
तू सभी का लाडला है ओ बी ओ
भाई 'सौरभ' शान से कहते…
Added by Samar kabeer on April 1, 2020 at 9:00pm — 18 Comments
अंतस के हिम निर्झर से जब
भाव पिघलने लगते है|
गीतों में ढलने को मेरे
शब्द मचलने लगते हैं ॥
***
लेखन आता नहीं मुझे पर लिखता हृद उद्गारों को |
और बुझा लेता हूँ लिखकर हिय तल के अंगारों को |
कहाँ निभा पाता हूँ अक्सर मैं छंदो का अनुशासन
अलंकार-से भूल गया हूँ शब्दों के श्रृंगारों को |
भाषा शुद्ध न हुई भले ही
लय सुर ताल रहे बाक़ी
बिम्ब-प्रतीक सृजन से जब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on April 1, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
22 22 22 22
शोर हवाओं ने बरपाए,
घाव हरे होने को आए।1
बंटवारे का दर्द सुना,अब
देख कलेजा मुंह को धाए।2
रोजी खातिर परदेश गए
घर भागे सब,धक्के खाए।3
आफत ऐसी आई उड़कर
सबने अपने रंग दिखाए।4
बबुआ भैया जो कहते थे,
सबने फिर से हाथ उठाए।5
बांट रहे कुछ मुंह की रबड़ी
खाने को भूखे ललचाए।6
तीर कमान चढ़ाए चलते
दोमुख सबको कौन बताए?7
मांग बना जो राजा,बैठा
दाता लाठी -…
Added by Manan Kumar singh on April 1, 2020 at 1:20pm — 4 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है
हयात जैसे बशर लग रही सिनाँ पर है
**
हमारा मुल्क परेशान और ख़ौफ़ में है
सुकून-ओ-चैन की अब जुस्तजू यहाँ पर है
**
वजूद अपना बचाने में अब लगा है बशर
न जाने आज ख़ुदा छुप गया कहाँ पर है
**
बचेगा क़ह्र से कोविड के आज कैसे भला
बशर पे ज़ुल्म-ओ-सितम उसका आसमाँ पर है
**
वहाँ की प्यास भला दूर क्या करे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
सुन रहे हैं कि वो इक ऐसी दवाई देगा
जिससे अंधे को भी रातों में दिखाई देगा
प्यार से उसने बुलाया है मुझे मक़्तल में
जानता हूँ मैं जो दावत में क़साई देगा
ऐसे चिल्लाओ कि आवाज़ वहाँ तक जाए
एक दिन तो सभी बहरों को सुनाई देगा
पास रहता हूँ तो मुंह फेर के चल देता है
दूर जाऊँगा तो आने की दुहाई देगा
क़ैदख़ाने में उसी ने ही रखा सालों तक
जिसने उम्मीद जताई थी रिहाई देगा
घुप अंधेरे से …
Added by सालिक गणवीर on April 1, 2020 at 12:00pm — 5 Comments
Added by amita tiwari on April 1, 2020 at 1:30am — 1 Comment
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