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ग़रीब हूँ मैं मगर शौक इक नवाबी है
ख़िज़ाँ की उम्र में भी दिल मेरा गुलाबी है
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अधूरा काम कोई छोड़ना नहीं आता
कि मुझ में बचपने से एक ये ख़राबी है
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मेरे लिए ही सनम क्यों हया का है पर्दा
रक़ीब से तो बहुत तेरी बेहिजाबी है
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यक़ीन आता नहीं आज चन्द लोगों की
न फ़िक्र और न ही सोच इंकलाबी है
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फिर एक बार उठाया है नफ़रतों ने सर
कहाँ पे आज हुई गुम सुकूँ की चाबी है
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सुकूँ की धूप सहर-शाम बाँटता हूँ मैं
अभी तलक मेरी फ़ितरत ये आफ़ताबी है
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उक़ाब* चुग रहे हैं इन दिनों सुना दाना (*बाज़ )
कबूतरों की हवस हो गई उक़ाबी है
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मिले जो रौंद के अपने की लाश पावों से
ख़ुदा ही जाने कि ये कैसी कामयाबी है
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किसी की चश्म की मय जबसे पी है तब से 'तुरंत '
बग़ैर मय को पिये तन-बदन शराबी है
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भाई Salik Ganvir जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार |
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , आदाब , आपके उत्साहवर्धक सराहना के लिए हार्दिक आभार
हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी जी।बेहतरीन गज़ल।
मिले जो रौंद के अपने की लाश पावों से
ख़ुदा ही जाने कि ये कैसी कामयाबी है
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,
आपकी पुरखुलूस हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रग़ुज़ार हूँ . सादर नमन |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।
'ग़रीब हूँ मैं मगर शौक इक नवाबी है'
इस मिसरे में क़ाफ़िया दुरुस्त नहीं,सहीह शब्द है "नव्वाबी",देखियेगा ।
आपने रचना को सराहा। आपके स्नेह के लिए अंतस्थल से आभारी हूँ। सादर नमन भाई Sushil Sarna जी |
वाह क्या शे'र है सर..... गज़ब की अदायगी है। .... खूबसूरत अहसासों के खूबसूरत अशआर ... दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी ... सादर
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