सूरज किरणें देता जग को
नदिया देती निर्मल पानी।
पालन करती युगों-युगों से
धरती ओढ़ चुनरिया धानी।
शीतल छाया देता तरुवर
प्राणवायु यह पवन सुहानी।
फूल चमन को देते खुशबू
परम सार संतों की बानी।
उऋण हुए गुरु विद्या देकर
निर्धन को धन देकर दानी।
कैसे सबका मोल चुकाऊँ?
दीन अकिंचन मैं अज्ञानी।
हे चंडी! दे वर दे मुझको
रार अगर दुश्मन ने ठानी।
मातृ-भूमि के चरणों पर मैं
अर्पण कर दूँ शीश…
Posted on August 29, 2021 at 2:38pm — 4 Comments
संग न कोई सखी सहेली,
रूप छुपाए लाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।
मधुर मिलन की आस सँजोए,
वह जब कदम बढ़ाती है।
जल थल नभ की नीरवता से,
आहट तम की आती है।
चार पहर की कठिन डगरिया,
पर इठलाती नाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।
धवल चाँदनी बिखरी नभ में,
खिली यामिनी धरती पर।
बसंत बहार कहीं मल्हार,
मधुर रागिनी जगती पर।
आतुर हो बढ़ती वह जैसे,
राधा मुरली बाजन से।…
Posted on August 1, 2021 at 2:24pm — 6 Comments
नन्हीं बिटिया जग में आई
बड़ी उदासी घर में छाई!
सब के सब हैं चुपचाप मगर
मैया की छाती भर आई।।
जन्म दिया मैया कहलाई
पर इक बात समझ ना आई
नानी है या कोई मिसरी?
माँ से भी मीठी कहलाई।।
पहले बिटिया बनकर आई
फिर बिटिया को जग में लाई
माँ बनती जब, माँ की बिटिया
तब जाकर नानी कहलाई।।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Posted on April 26, 2020 at 3:30pm — 3 Comments
जब से तुमको, देखा सविता।
भूल गया मैं, लिखना कविता।।
भाता मुझको, पैदल चलना।
तुम चाहो, अंबर में उड़ना।
सैर-सपाटा, बँगला-गाड़ी।
फैशन नया, रेशमी साड़ी।
सखियाँ तेरी, इशिता शमिता।
भूल गया मैं, लिखना कविता।।
तुमको प्यारे, गहने जेवर।
नखरे न्यारे, तीखे तेवर।
होकर विह्वल, संयम खोती।
हँसती पल में, पल में रोती।
आँसू बहते, जैसे सरिता।
भूल गया मैं, लिखना कविता।।
नारी धर्म, निभाया तूने।
माँ बनकर,…
Posted on April 14, 2020 at 4:30pm — 1 Comment
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