ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
मौज मस्ती चंद रोज आखिर जवानी फिर कहाँ I
दोस्तों में प्यार की वो ख़ुश-बयानी फिर कहाँ II
ख़्वाबों में बसता जो ऐसा यार-ए–जानी फिर कहाँ I
दिल में वो सोज़-ए–मुहब्बत की रवानी फिर कहाँ II
दिल के पुर्ज़े पुर्ज़े पर थी हो नुमायाँ अक्स जो ,
लिखने वाले लिख गये ऐसी कहानी फिर कहाँ I
फूल खिलकत के ले आए तोड़ हम उनके लिए ,
जाने उनकी कब मिलेगी मेज़बानी फिर कहाँ I
फिर मिलेंगे कब कहाँ जी भर के बातें कर लें हम ,
दौर-ए –उल्फ़त फिर कहाँ ये शादमानी फिर कहाँ I
आदमी हैं आदमी से काम कुछ तो कर चलें ,
ये जमाना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ I
वो शराफ़त और नफ़ासत के हैं पैकर बन गये ,
गालिवन उनकी सदाकत का भी सानी फिर कहाँ I
आ चमन में सुर्ख इक ‘कंवर’ लगाएं फूल हम ,
कुछ दिनों की जिन्दगी होगी निशानी फिर कहाँ I
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222
कोई कातिल सुना जो शहर में है बेजुबाँ आया
किसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया
धरा रह जायेगा इन्सान का हथियार हर कोई
हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया
घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ
करें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया
अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत को
अडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया
अगर महफूज रखना है बला…
ContinuePosted on April 3, 2020 at 6:00pm — 6 Comments
शरद ऋतु गीत
झम झम रिमझिम पावस बीता
अब गीले पथ सब सूख गए
गगन छोर सब सूने सूने
परदेश मेघ जा बिसर गए
हरियावल पर चुपके चुपके
पीताभा देखो पसर गई
हौले हौले ठसक दिखा कर
चंचल चलती पुरवाई है -
लो! शरद ऋतु उतर आई है I
दशहरा, नवरात्र, दीवाली
छठ, दे दे खुशियाँ बीत गए
पक कट गए मकई बाजरा
पीले पीले भी हुए धान
रातें भी बढ़ कर हुईं लम्बी
घटते घटते गए दिनमान
विरहन का तन मन डोल रहा
खुद खुद से ही कुछ बोल…
Posted on January 8, 2018 at 10:00pm — 11 Comments
212 212 212 212
सज सँवर अंजुमन में वो गर जाएँगे I
नूर परियों के चेहरे उतर जाएँगे II
जाँ निसार अपनी है तो उन्हीं पे सदा ,
वो कहेंगे जिधर हम उधर जाएँगे I
ऐ ! हवा मत करो ऐसी अठखेलियाँ ,
उनके चेहरे पे गेसू बिखर जाएँगे I
पासवां कितने बेदार हों हर तरफ ,
उनसे मिलने को हद से गुजर जाएँगे I
है मुहब्बत का तूफां जो दिल में भरा ,
उनकी नफ़रत के शर बे-असर जाएँगे I
बेरुखी उनकी…
ContinuePosted on August 17, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
अगर तुम पूछते दिल से शिकायत और हो जाती I
सदा दी होती जो तुमने शरारत ओर हो जाती II
पहन कर के नकावें जिन पे बरसाते कोई पत्थर ,
वयां तुम करते दुख उनका हिमायत और हो जाती I
कहो जालिम जमाने क्यों मुहव्वत करने वालों पर?
अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I
बड़ा रहमो करम वाला है मुर्शिद जो मेरा यारो ,
पुकारा दिल से होता गर सदाकत और हो जाती I
मुझे तो होश में लाकर भी…
ContinuePosted on August 15, 2017 at 10:21pm — 12 Comments
आभार आदरणीय ।
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