मृदु-भाव
प्रात की शीतल शान्त वेला
हवा की लहर-सी तुम्हारी मेरे प्रति
मृदु मोह-ममता
मैं बैठा सोचता मेरे अन्तर में अटका
कोलाहल था बहुत
क्यूँ किस वातायन से किस द्वार से कैसे
चुपके से आकर मेरे जीवन में
घोल दिए सरलता से तुमने मुझमें
प्रणय के पावन गीत
किसी सपने की मधुरिमा-सी
सच, प्यारी है मुझको तुम्हारी यह प्रीत
नए प्यार के नवजात गीत की नई प्रात
तुम आई, छूट कर रह गई पीछे कहीं
मेरी नीरवता, मेरी निर्बलता की मुझसे
पीड़ित पहचान
पाया जबसे तुम्हारे नयनों ने नितान्त
मेरे मधु भरे भावों में विश्राम
जानता हूँ हर मिलन की वेला में, प्रिय
घुला होगा तुम्हारे जाने के समय का आभास
मानता हूँ यह भी कि हो सकता है
किसी भीगती-सी शाम
या मेरी किसी शरद-की-रात के सिकुड़े
भयभरे ऊबे पलों में
तुम नहीं होगी मेरे पास ...
पर क्यूँ सोचता है मन यह पीड़ित हुए ख़्याल
अभी जब आ रही है खनकार पेड़ों के पत्तों से
आ रही हो तुम धीरे से लिए मेरे लिए
आँचल में ओढ़े अपना पारस-सा प्यार
कोई कविता-कल्पना नहीं है यह, प्रिय
इस मिलन की वेला जब छा जाएँगी
आज पलकों पर पलकें
आच्छादित होंगे उस पल प्राण पर प्राण
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
भाई समर कबीर जी, आपसे मिली सराहना का मतलब है कि मैं इम्तहान में पास हो गया।दिल से शुक्रिया कि आप मेरी लिखी रचनाओं को इज़्ज़त देते हैं।
हम अब १ १/४ महीने से घर के अन्दर ही हैं, कहीं नहीं गए। Dr की appointments थीं, सारी स्थगित कर दी हैं। सामान delivery service से मंगवाते हैं... हर फल, हर सब्ज़ी को साबुन के गरम पानी से धोते हैं। हर हाल में शुक्र-गुज़ार हूँ। आपने मेरा हाल पूछा, इसके लिए भी दिल से शुक्र-गुज़ार हूँ।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, प्रिय मित्र सुशील जी। आपका आना बहुत सुखद लगा।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह एक अच्छी रचना पेश की आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कृपया अपनी ख़ैरियत से आगाह करते रहें,मुझे आपकी बहुत चिंता है ।
बहुत सुंदर आदरणीय विजय निकोर जी, अंतर् भावों को शब्दों के परिधान से सुसज्जित कर उसे ऐसे पेश करना जैसे शब्दों को स्वर मिल गया हो। इस बेहतरीन भावुक प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई सर।
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