आज ऐरावत की मौत हुई तो कोप जताने आया हूँ
जन्म से पहले प्राण गए हैं रोष दिखाने आया हूँ
आया हूँ मैं ये प्रण लेकर संताप नहीं ये कम होगा
धोखे से मनु ने प्राण हरे जो लड़ने का न दम होगा
मानव कितना नीच जीव है कहता खुद को सबसे ऊपर
अ हिंसा का भाषण देकर हाथ उठाता मूक जीव पर
दम्भ तुझे किस बात का मानव तू क्यों इतना है इतराता
तेरे खेल की आग में जलकर झुलस गई गज की माता
कैद रहा है तीन माह से क्या…
ContinueAdded by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 11, 2020 at 8:33pm — 2 Comments
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ पे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खलीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं
रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे कारना है क्या
है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच के डरना है क्या
टोक न दे कोई मुझको मेरी इस…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2020 at 3:30pm — 2 Comments
एक गीत
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कच्चे आमों जैसा खट्टा
कभी शहद सा होता जीवन |
***
पाया जीवन है जिसने भी
पल पल देनी पड़े परीक्षा |
कैसे भी हालात किसी के
जीवन की मत करें उपेक्षा |
करते अगर भ्रूण की हत्या
या करते हत्या अपनी तुम
पाप हमेशा कहलायेंगे
न्याय करेगा अगर समीक्षा |
अपनी नादानी के कारण
क्यों करते खिलवाड़ मनुज तुम
मिटटी के सम ठोकर मारो
क्या…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 10, 2020 at 11:30pm — 9 Comments
1212 1122 1212 22
यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1
मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।
वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।
था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2
उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3
खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।
हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4
निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2020 at 9:06pm — 6 Comments
मिलते वहीँ थे घाट पे करते थे गुफ़्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए
उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए
अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए
चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए
किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 11:23am — 7 Comments
(1222 *4 )
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कहीं दिल टूटना देखा कहीं दिलदारी देखी है
कहीं ख़ुशियों की फुलवारी कहीं ग़म-ख़्वारी देखी है
**
नशा देखा कभी ज़र का कभी नादारी देखी है
कभी मस्ती कभी हमने मुसीबत भारी देखी है
**
कभी तल्ख़ी कभी आँसू हसद के दौर अपनों के
मरासिम को निभाते वक़्त दुनियादारी देखी है
**
अधूरे रह न जाएँ ख़्वाब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 10, 2020 at 1:00am — 14 Comments
दोहा गज़ल एक प्रयास :
साथी सारे स्वार्थ के, झूठे सारे नात,
अवसर एक न चूकते, देने को आघात।
नैनों से ओझल हुआ, आज लाज का नीर,
संस्कारों की हो गई, भूली बिसरी बात।
साँझे चूल्हों के नहीं, दिखते अब परिवार ,
बिखरे रिश्ते फ़र्श पर, जैसे पीले पात।
बूढ़े बरगद की नहीं, अब आंगन में छाँव,
बूढ़ी आँखों से सदा , होती है बरसात।
कैसा कलयुग आ गया, अपने देते दंश,
जर्जर काया की हुई, आहट हीन…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 9, 2020 at 10:59pm — 6 Comments
एक नज़्म
अरकान-2212, 2212, 2212
दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है
हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है
मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो
लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है
हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे
मेरी दुआ से याब में तू ही तू है
पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है
हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू
फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है
भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर
बढ़ते हुए सैलाब में तू ही…
Added by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 7:05pm — 18 Comments
( 2212 122 2212 122)
कितनी सियाह रातों में हम बहा चुके हैं
ये अश्क फिर भी देखो आंँखों में आ चुके हैं
गर आके देख लो तो गड्ढे भी न मिलेंगे
हाँ,लोग काग़ज़ों पर नहरें बना चुके हैं
अब खिलखिला रहे हैं सब लोग महफ़िलों में
मतलब है साफ सारे मातम मना चुके हैं
वो ख़्वाब सुब्ह का था इस बार झूठ निकला
ता'बीर के लिए हम नींदें उड़ा चुके हैं
अब पाप का यहाँ पर नाम-ओ-निशांँ नहीं है
सब लोग शह्र के अब गंगा नहा चुके…
Added by सालिक गणवीर on June 9, 2020 at 4:00pm — 9 Comments
' हां, ठीक हूं सविता।' मास्क के अंदर से आवाज आई।
' अच्छा चल बता,अब तेरे वो कैसे हैं?' सविता की मास्क ने चुटकी ली,क्योंकि शालू हमेशा अपने पति की शिकायत करती रहती थी।कभी कभी तो वह अपने निः संतान होने का दोष भी पति के मत्थे मढ़ देती।पति का दिन रात अपने ऑफिस के काम में तल्लीन रहना एक अच्छा सा बहाना भी था।भला एक थका मांदा मर्द पत्नी को औलाद क्या देगा? खा - पी के पड़ रहेगा।ऐसे क्या भला औलाद आसमान से टपकेगी?वह यही सब सोचती और अधिकतर सविता को यह सब…
Added by Manan Kumar singh on June 8, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू'अ
2122 / 1212 / 22
ये जो कुछ ख़्वाब पाल बैठे हैं
जान आफ़त में डाल बैठे हैं [1]
दिल से हम को निकाल बैठे हैं
देखिए पुर-मलाल बैठे हैं [2]
कह चुके हैं हमें वो जाने को
फिर भी देखो मजाल बैठे हैं [3]
बढ़ गए आगे सब हुनर वाले
हम यहीं बे-कमाल बैठे हैं [4]
अब ज़रूरत नहीं सलाहों की
हम तो सिक्का उछाल बैठे हैं [5]
मेरे और उनके दरमियाँ जाने
कितने ही माह-ओ-साल बैठे हैं…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on June 8, 2020 at 12:30pm — 13 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मारा करे हैं लोग जो गम को शराब से
लाते खुशी को देखिए कितने हिसाब से।१।
**
खुशबू है भारी भूख पे सुनते जहान में
गेहूँ रहा अलीक न यूँ ही गुलाब से।२।
**
लाता नहीं है होश भी अपने ही साथ क्यों
शिकवा है हमको एक ही यारो शबाब से।३।
**
साधी है हमने यूँ नहीं हर एक तिश्नगी
गुजरा है अपना दौर भी यारो सराब से।४।
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उनको तो कुर्सी चाहिए पापों की नींव पर
मतलब न रखते आज भी सेवक सवाब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2020 at 11:11am — 2 Comments
ग़म के आंसू पी लेते हैं जताते भी नही
सताना सह लेते हैं वो सताते भी नहीं
रूठना आदत है उनकी कोई उनसे सीखे
गर हम रूठ जाएं तो कभी मनाते भी नहीं
इश्क़ में अश्क़ का नशा बहुत गहरा होता है
ज़ाम अश्क़ का हो तो अर्क मिलाते भी नहीं
मेरे दिल की बात तो अक्सर कह देता हूँ मैं
उनके भीतर का ज़लज़ला वो बताते भी नहीं
उनके नूर केे दीदार का इंतज़ार कब से है
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी…
ContinueAdded by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 8, 2020 at 10:19am — 4 Comments
(2122 1212 22)
दूर की रौशनी से क्या कहते
था अंधेरा किसी से क्या कहते
जगमगाती सियाह रातों में
दर्द की चांदनी से क्या कहते
सारा पानी किसी ने रोका था
बेवजह हम नदी से क्या कहते
सामने उसके गिड़गिड़ाए थे
उसके खाता-बही से क्या कहते
अब वो हैवान बन गया तो फ़िर
हम उसी आदमी से क्या कहते
पी गए ख़ूं भी लोग सहरा में
आलमे-तिश्नगी से क्या कहते
तेरी गलियाँ तुझे मुबारक हो …
Added by सालिक गणवीर on June 7, 2020 at 4:30pm — 7 Comments
कहा रूक जा सब ने, बेख़ौफ़ हम
चले गांव जल्दी से बेख़ौफ़ हम
कहीं एक विधवा अकेले खड़ी
खड़े साथ उसके ले बेख़ौफ़ हम
हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम
अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम
हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम
वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम
डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dimple Sharma on June 7, 2020 at 2:36pm — 10 Comments
2122 1122 1122 22
दिल सलामत भी नहीं और ये टूटा भी नहीं ।
दर्द बढ़ता ही गया ज़ख़्म कहीं था भी नहीं ।।
काश वो साथ किसी का तो निभाया होता ।
क्या भरोसा करें जो शख़्स किसी का भी नहीं ।।
क़त्ल का कैसा है अंदाज़ ये क़ातिल जाने ।
कोई दहशत भी नहीं है कोई चर्चा भी नहीं ।।
मैकदे में हैं तेरे रिंद तो ऐसे साक़ी ।
जाम पीते भी नही और कोई तौबा भी नहीं ।।
सोचते रह गए इज़हारे मुहब्बत होगा ।
काम आसां है मगर आपसे होता भी नहीं…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 7, 2020 at 10:00am — 10 Comments
2122 2122 212
.
जो तुम्हारा है हमारा क्यों नहीं
ये किसी ने भी बताया क्यों नहीं
शह्र से मज़दूर आए गांव क्यों
वक़्त पर उनको सँम्हाला क्यों नहीं
लाख तारे आसमाँ पर थे मगर
इक भी मेरी छत पे आया क्यों नहीं
ख़्वाहिशों की भीड़ से ही पूछ लो
मुझको इक पल का सहारा क्यों नहीं
ज़िन्दगी भी दे रही ता'ना हमें
लफ़्ज़ खु़शियों का लिखाया क्यों नहीं
हारते हैं ग़म से "निर्मल" रोज़ ही
जीतना हमको सिखाया क्यों नहीं…
Added by Rachna Bhatia on June 6, 2020 at 9:00pm — 3 Comments
जानकर औक़ात अपनी वो हदों में क़ैद है
हर परिंदा आज अपने घोंंसलों में क़ैद है।।
जीत लेगा मौत को भी आदमी यूँ एक दिन
इस तरह की सोच सबकी हसरतों में क़ैद है।।
क्रोध लालच दम्भ नफ़रत ज़ात मजहब को लिए
हर कोई अनजान सी परछाइयों में क़ैद है।।
कब कहाँ किस को दग़ा दें रहनुमा इस देश के
झूठ मक्कारी तो उनकी आदतों में क़ैद है।।
जिस शजर की छाँव में बारात सजती थी कभी
आज वो वीरान बनके रतजगों में क़ैद है।।
टूट कर ख़ामोश जो…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 5, 2020 at 3:00pm — 15 Comments
वहाँ एक आशिक खड़ा है ।
जो दिल तोड़ कर हँस रहा है ।।
मुहब्बत करें तो करें क्या ..?
मुहब्बत में धोका बड़ा है ।।
हमें आग का डर नहीं था ।
कि सैलाब अन्दर भरा है ।।
भले जिस्म थक हार जाए ।
अभी जोश दिल में बड़ा है ।।
ख़ुदा ख़ैर हमको मिले वो ।
ज़माना बहुत ही बुरा है ।।
कहांँ है जहाँ में मुहब्बत ।
सभी तो सभी से ख़फ़ा है ।।
हमें रात लड़ना पड़ा था ।
उजाला बहुत ग़मज़दा है ।।
यकीं कौन हम पे करेगा ।
ये ढांचा हमीं पे…
Added by Dimple Sharma on June 5, 2020 at 2:00pm — 9 Comments
अपराध बोध - लघुकथा -
"सपना, यह क्या कर करने जा रही थी?"
रश्मि ने सपना के कमरे का जो द्दृश्य देखा तो चकित हो गयी। सपना पंखे में फंदा डाल कर स्टूल पर चढ़ी हुई थी।रश्मि अगर चंद पल देर से पहुंचती तो अनर्थ हो जाता। रश्मि ने झपट कर सपना को सहारा देकर नीचे उतारा।सपना रोये जा रही थी।
"सपना मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि तुम जैसी शिक्षित, सुशील और शांत लड़की ऐसा अविवेक पूर्ण कदम भी उठा सकती है।"
रश्मि ने उसे पानी दिया और उसे गले लगा कर ढांढस बधाने की चेष्टा की।सपना के…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 5, 2020 at 12:29pm — 8 Comments
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