एक नज़्म
अरकान-2212, 2212, 2212
दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है
हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है
मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो
लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है
हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे
मेरी दुआ से याब में तू ही तू है
पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है
हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू
फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है
भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर
बढ़ते हुए सैलाब में तू ही तू है
आब - पानी, जल, चमक
नाब - पवित्र
शगुफ़्ता -खिला हुआ
याब - प्राप्त होनेवाला, मिलनेवाला
ख़ुर्शीद - सूर्य
महताब - चाँद
सैलाब -नदी आदि के पानी की बाढ़
डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आपको और उस्ताद मोहतरम Samar Kabeerसाहब को मेरा नतमस्तक हो कर प्रणाम है स्वीकार करें , आप दोनों गुणी जनों को प्रणाम चरण स्पर्श। आदरणीय उस्ताद मोहतरम को तो धन्यवाद कहने लायक शब्दों का चयन करने में भी मुझे वर्षों लग जाएंगे और फिर भी सही शब्द नहीं मिल पाएंगे, आशीर्वाद बनाए रखें।
आदरणीया Dimple Sharma जी, नमस्कार। जी मुझे शे'र-ओ-शाइरी का जो भी थोड़ा-बहुत इल्म है वो उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की इनायत से ही हासिल हुआ है, इसलिए प्रणाम के हक़दार वो ही हैं, मैं नहीं। जहाँ तक समर्पण की भावना का सवाल है, वो भी उस्ताद जी की ही प्रेरणा से मिलती है, जब देखते हैं कि कमज़ोर नज़र और कई कठिनाइयों के बावजूद वो रोज़ाना कितनी ही ग़ज़लों और अशआर की इस्लाह करते हैं और हर एक को अपना ज्ञान बाँटते हैं। हम लोग तो उनके मुक़ाबले में बहुत सुस्त और कामचोर हैं आदरणीया, पढ़ने में भी, लिखने में भी, और दूसरों की मदद करने में भी। आपकी ज़र्रा-नवाज़ी के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नतमस्तक हो कर प्रणाम करती हूँ आपके ज्ञान को और उससे भी ऊपर इतने सहज ढंग से जो आप मुझे सीखा रहे हो उस भाव को भी,आपकी ये विनम्रता दर्शाती है कि ग़ज़ल और शायरी के प्रति आपका समर्पण भाव कितना अधिक है , आपके इस समर्पण भाव को दंडवत प्रणाम है आदरणीय , आपकी ये सलाह मैं निःसंदेह ध्यान रखूंगी और आगे इसका उपयोग करने के पहले इसके बारे में अच्छे से समझने की कोशिश करुंगी।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका आदरणीय, आपने इतना वक्त दिया ।
आदरणीय Dimple Sharma जी, एक और वज़ाहत करना चाहता हूँ।
/यदि इक को एक करती हूं तो मात्रा २१ हो जाती है फिर आगे का जो शब्द मैंने लिया है वो लहर है तो वहाँ गड़बड़ लग रही है/
आदरणीया, 'लहर' का वज़्न 21 होता है, 12 नहीं। ये देखिए:
2122 / 1212 / 112
दिल में इक लहर से उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
(नासिर काज़मी)
आप 'लह्र' लिखने की आदत डाल लेंगी तो ग़लती होने के इमकानात कम हो जाएँगे।
और एक लम्हे के लिए मान भी लिया जाए कि वहाँ 12 वज़्न का कोई शब्द होता, तो इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से उसका वज़्न बदल जाता। अब देखिए 'सहर' का वज़्न 12 होता है, लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से कैसे बदल जाता है:
11212 / 11212 / 11212 / 11212
पिला साक़िया मय-ए-जाँ पिला कि मैं लाऊँ फिर ख़बर-ए-जुनूँ
ये ख़िरद की रात छटे कहीं नज़र आए फिर सहर-ए-जुनूँ
(नून मीम राशिद)
इस शे'र में 'सहर-ए-जुनूँ' का वज़्न 11212 है, मतलब स 1 ह 1 रे 2
अब एक उदाहरण देखिये कि वाव-ए-अत्फ़ का इस्तेमाल करने से लफ़्ज़ों का वज़न कैसे बदल जाता है:
शब = 2 रोज़ = 21 माह = 21 साल = 21
2122 / 1212 / 112
वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
शबो = 12
रोज़ो = 21 (मात्रा पतन किया है, इसे 22 भी ले सकते हैं)
माहो = 21 (मात्रा पतन किया है, इसे 22 भी ले सकते हैं)
आपको ये सुझाव देना चाहूँगा कि इज़ाफ़त का इस्तेमाल समझने के लिए उस्ताद शोअरा की ग़ज़लों की तक़्तीअ करें, और उन्हें ऊँचा बोलकर बह्र की लय में पढ़ें। और जब तक इज़ाफ़त का इस्तेमाल अच्छे से पकड़ में ना आये तब तक इसे अपनी शाइरी में इस्तेमाल करने से परहेज़ करें।
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते , जी सही कहा आपने , ये शेर बस यूं ही ज़हन में आ गया था आपके दिए उदाहरण को पढ़ते हुए तो लिख डाला , परन्तु यह भी गलत नहीं हुआ देखा जाए तो कुछ और नया सीखा दिया आपने इस गलती को देखते हुए।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार।
आदरणीय Dimple Sharma जी, नमस्ते। जी शे'र बह्र में नहीं है मुहतरमा।
अज़मत = 22
लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:
अज़ म ते
2 1 1/2
इसी तरह हुनर = 12
लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:
हु न रे
1 1 1/2
आदरणीया, इज़ाफ़त और वाव अत्फ़ के इस्तेमाल में जल्दबाज़ी न करें। पहले इनका शब्दों के वज़्न पर प्रभाव समझ लें और फिर इस्तेमाल करना शुरू करें।
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते आपने जो उदाहरण दिए हैं उनमें से एक शेर बन पड़ा है मुक्कमल हुआ की नहीं , नहीं जानती पर आपकी खिदमत में पेश है शेर जो कुछ यूं हुआ है..
2212, 2212, 2212
अज़्मत बहर-ए-बे-कराँ की देख ले
उसके हुनर ए ताब में तू ही तो है
अज़्मत - महिमा
ताब - सहन-शक्ति, बरदाश्त
बहर-ए-बे-कराँ = समंदर जो बिना किनारे का है
आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आदाब , आपके सुझावों के लिए हृदय तल से धन्यवाद और आपने जो नई नई जानकारियां दि हैं वो बहुत ही कारगर साबित होगी मेरे लिए भविष्य में आप सभी गुणी जनों ने अपना अनमोल समय देकर जो कृपा की है उसके लिए आभार व्यक्त करने को शब्द नहीं हैं मेरे पास , आदरणीय निचे एक शेर के उल्ला में "देखा" शब्द के कारण तक़तीअ बिगड़ रही थी तो उस शेर को मैंने कुछ यूं बदल दिया है आप एक बार देख लें तो कृपा होगी ..
2212, 2212, 2212
मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है
धन्यवाद आदरणीय।
आदरणीया Dimple Sharma जी,
/मैं देखती हूँ रात दिन ऊपर वहाँ
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है/
जी, अब रब्त स्पष्ट है।
आदरणीया, आपको इज़ाफ़त के संबंध में वज़ाहत करना चाहूँगा। इज़ाफ़त दो तरह से इस्तेमाल की जाती है। एक तो ऐसे:
दर्दे-दिल = दिल का दर्द (शब्द समूह को उल्टी दिशा से पढ़ें)
दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती = ज़िन्दगी की हसरत के दाग़
चराग़-ए-दर-ए-मयख़ाना = मयख़ाने के दर का चराग़
रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार = रोज़गार के ज़ुल्मों के नीचे
इज़ाफ़त का दूसरा इस्तेमाल है पहले लफ़्ज़ की विशेषता बताना, जैसे:
दिल-ए-नादाँ = दिल जो नादान है
बहर-ए-बे-कराँ = समंदर जो बिना किनारे का है
नग़मा-ए-पुरदर्द = नग़मा जो दर्द से भरा है
लहर-ए-नाब = लहर जो पवित्र है
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत' जी हृदय तल से आभारी हूं आपकी के आपने मुझे और मेरी बेकार सी ग़ज़ल को अपना इतना वक्त दिया और इस लिंक को शेयर करने के लिए भी विशेष धन्यवाद , ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप सभी गुणी जनों से इतना कुछ सीखने को मिल रहा है आशीर्वाद और दया दृष्टि बनाए रखें।
2212, 2212, 2212
मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है
इस शेर में यूं परिवर्तन कर दिया जाए तो कैसा रहेगा, क्षमा चाहुंगी आपको परेशान कर रही हूं, कृप्या मार्गदर्शन करें।
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