' हां, ठीक हूं सविता।' मास्क के अंदर से आवाज आई।
' अच्छा चल बता,अब तेरे वो कैसे हैं?' सविता की मास्क ने चुटकी ली,क्योंकि शालू हमेशा अपने पति की शिकायत करती रहती थी।कभी कभी तो वह अपने निः संतान होने का दोष भी पति के मत्थे मढ़ देती।पति का दिन रात अपने ऑफिस के काम में तल्लीन रहना एक अच्छा सा बहाना भी था।भला एक थका मांदा मर्द पत्नी को औलाद क्या देगा? खा - पी के पड़ रहेगा।ऐसे क्या भला औलाद आसमान से टपकेगी?वह यही सब सोचती और अधिकतर सविता को यह सब बताती भी।
' हां ठीक हैं रानी।' शालू की चहक से सविता चकराई। पहले पति को ' है ' से संबोधित करनेवाली शालू अब उसे ' हैं ' का मुलम्माभरा विशेषण अर्पित कर रही थी।सविता सोचने लगी कि जो औरत अपने पति की करतूत से इतनी क्षुब्ध रहा करती थी कि उसके बारे में कुछ भी कहने में किसी सीमा का उसे ध्यान न होता था, वह आज इतना च हक क्यूं रही है?हिकारत के बदले वह उस शख्स को इज्जत बख्श रही है,जो कभी उसके रोष और उपहास का सबब हुए करता था। इतने में 'मां मां ' कहता हुआ एक चार पांच साल का बच्चा उधर दौड़ा आया,और शालू से चिपट गया। उसने उसे गोद में भींच लिया।सविता चौंक कर शालू को देखने लगी।
' मोनू है।मेरा बेटा।' शा लू बोली।
' ओ हो! बहुत खूब शालू!' सविता बोली।
' मेरा प्यारा बेटा है।'
' अच्छा इसीलिए तूने इसे मास्क नहीं पहनाया।' सविता ने लगे हाथ उसे ताना दे डाला,' महामारी के वायरस से सभी परेशान हैं और तू इसे वैसे ही खुल्लमखुल्ला मुहल्ले के बच्चों के बीच घूमने दे रही है।'
शालू लजा गई।
" मौ लिक व अप्रका शि त"
Comment
आभार आदरणीय।
आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा लिखी है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।
आपका आभार आदरणीय समर जी,नमन।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।
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