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कभी मनाते भी नहीं

ग़म के आंसू पी लेते हैं जताते भी नही

सताना सह लेते हैं वो सताते भी नहीं

रूठना आदत है उनकी कोई उनसे सीखे

गर हम रूठ जाएं तो कभी मनाते भी नहीं

इश्क़ में अश्क़ का नशा बहुत गहरा होता है

ज़ाम अश्क़ का हो तो अर्क मिलाते भी नहीं

मेरे दिल की बात तो अक्सर कह देता हूँ मैं

उनके भीतर का ज़लज़ला वो बताते भी नहीं

उनके नूर केे दीदार का इंतज़ार कब से है

साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 6:32pm

ज़नाब समर कबीर साहब आपका तहे दिल से शुक्रिया ग़ज़ल पर वक़्त देने और जरूरी शिक्षा देने के लिए, आप सभी आशीर्वाद बनाए रखे जल्दी ही सुधार कर लेंगे

Comment by Samar kabeer on June 10, 2020 at 12:12pm

जनाब विनय प्रकाश तिवारी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन ग़ज़ल बह्र,शिल्प,व्याकरण पर अभी समय चाहती है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

एक निवेदन ये कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें,इससे कुछ कहने में आसानी होती है ।

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 10:18am

अमीरुद्दीन 'अमीर साहब आपका तहे दिल से शुक्रिया मै निश्चय ही ज्वाइन करूँगा

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 8, 2020 at 3:41pm

जनाब विनय प्रकाश तिवारी जी, आदाब। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें। 

ग़ज़ल सीखने के लिए ग़ज़ल की कक्षा ग्रुप ज्वाइन कर लें। आपकी इस ग़ज़ल में क़वाफी़ दुरुुस्त नहीं हैं। 

सीखते रहिए और आगे बढ़ते रहिये। 

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