ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू'अ
2122 / 1212 / 22
ये जो कुछ ख़्वाब पाल बैठे हैं
जान आफ़त में डाल बैठे हैं [1]
दिल से हम को निकाल बैठे हैं
देखिए पुर-मलाल बैठे हैं [2]
कह चुके हैं हमें वो जाने को
फिर भी देखो मजाल बैठे हैं [3]
बढ़ गए आगे सब हुनर वाले
हम यहीं बे-कमाल बैठे हैं [4]
अब ज़रूरत नहीं सलाहों की
हम तो सिक्का उछाल बैठे हैं [5]
मेरे और उनके दरमियाँ जाने
कितने ही माह-ओ-साल बैठे हैं [6]
वक़्त थम जाए अब यहीं उनके
मेरे काँधे पे बाल बैठे हैं [7]
ये मईशत है आँख का धोका
इसके नीचे अकाल बैठे हैं [8]
ख़ुद समझ लो सफ़र रहा कैसा
हम जो यूँ ख़स्ता-हाल बैठे हैं [9]
ज़ह्न में सोच का बवंडर है
और हम बे-ख़याल बैठे हैं [10]
भूके बच्चों को आस देने को
लोग पत्थर उबाल बैठे हैं [11]
दूर मंज़िल है इश्क़ की रह में
सौ उरूज-ओ-ज़वाल बैठे हैं [12]
अश्क आँखों में अब कहाँ वो हम
अपनी ग़ज़लों में ढाल बैठे हैं [13]
दिल की दहलीज़ पे इक अर्से से
जाने कितने सवाल बैठे हैं [14]
इन किताबों में क्या मिलेगा अब
हम तो गूगल खंगाल बैठे हैं [15]
तुम ही कर लो जो बन पड़े यारो
आज 'शाहिद' निढाल बैठे हैं [16]
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' साहिब, आपकी हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से आपका आभारी हूँ। जी आप ग़ज़ल में अशआर की गिनती के बारे में सहीह फ़र्मा रहे हैं, मैंने इसीलिए दो मतले कहे थे। बहुत शुक्रिया जनाब!
वाह वाह गज़ब के अशआर हुए हैं , मेरी निजी राय में एक ग़ज़ल में ९ शेर काफी हैं , उससे ज़ियादा अशआर हों तो एक अलग ग़ज़ल कह लेनी चाहिए , इसके दो कारण एक तो ९ अशआर की ग़ज़ल किताब के एक पेज में आ जाती है , दुसरे आजकल पाठक भी लम्बी ग़ज़ल के सभी शेर पढ़ते नहीं है |
आदरणीया Dimple Sharma जी, आपकी इस ज़र्रा-नवाज़ी और हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ!
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'जी नमस्ते, आपकी ग़ज़ल जितनी उम्दा है उतना ही नया कुछ भी सीखाती है , पढ़ कर आनन्द आ गया । बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय।
/वक़्त थम सा गया है जबसे आप
अपने बिखरा के बाल बैठे हैं'/
ओ हो हो, उस्ताद जी, क्या कहने आपके! आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय: और आप के फ़न को हज़ारों सलाम!
// क्या इसे बदल कर यूँ किया जा सकता है?
2122 / 1212 / 22
वक़्त थम जाए पहलू में जानम
अपने बिखराये बाल बैठे हैं//
इस शैर को यूँ कह सकते हैं:-
'वक़्त थम सा गया है जबसे आप
अपने बिखरा के बाल बैठे हैं'
आदरणीय उस्ताद-ए-मुहतरम, सादर प्रणाम! नाचीज़ की ग़ज़ल को अपना क़ीमती वक़्त देने के लिए, अमूल्य इस्लाह से नवाज़ने के लिए और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक आभार।
/इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं: 'अब नहीं है सलाह की हाजत'/
जी बहुत सुन्दर मिस्रा दिया है आपने, आपका बहुत शुक्रिय:
/क्या बात हुई? 'बाल बिखरे' तो ठीक है,लेकिन 'बैठे हैं'?ये मिसरा भर्ती का है।/
जी ठीक है। उस्ताद जी, सुंदर मंज़रकशी हो रही थी, सो कह दिया। क्या इसे बदल कर यूँ किया जा सकता है?
2122 / 1212 / 22
वक़्त थम जाए पहलू में जानम
अपने बिखराये बाल बैठे हैं
/इस मिसरे में तनाफ़ुर है,'सफ़र रहा' को "रहा सफ़र" कर सकते हैं।/
उस्ताद जी, आपकी पैनी नज़र को सलाम, और आपको इस्लाह देने के लिए एक बार फिर तह-ए-दिल से शुक्रिय:!
जनाब रवि भसीन 'शाहिद' साहिब आदाब, ग़ज़ल अच्छी हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
'अब ज़रूरत नहीं सलाहों की'
'सलाह' शब्द को बहुवचन करने के लिए आगे पीछे के शब्दों का सहारा लेना पड़ता है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'अब नहीं है सलाह की हाजत'
'मेरे काँधे पे बाल बैठे हैं'
क्या बात हुई? 'बाल बिखरे' तो ठीक है,लेकिन 'बैठे हैं'?ये मिसरा भर्ती का है ।
'ख़ुद समझ लो सफ़र रहा कैसा'
इस मिसरे में तनाफ़ुर है,'सफ़र रहा' को "रहा सफ़र" कर सकते हैं ।
बाक़ी शुभ शुभ ।
आदरणीय रूपम कुमार 'मीत' जी, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। आप जैसे युवा प्रतिभाशाली शाइर के संपर्क में आकर बहुत ख़ुशी हुई। विशेष दाद के लिए विशेष आभार।
आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार। इस मंच को सलाम जो साहित्य प्रेमियों को आपस में जोड़ता है, अपने विचार प्रकट करने की आज़ादी देता है, और सीखने के अवसर प्रदान करता है।
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