For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( दूर की रौशनी से क्या कहते..)

(2122 1212 22)

दूर की रौशनी से क्या कहते
था अंधेरा किसी से क्या कहते

जगमगाती सियाह रातों में

दर्द की चांदनी से क्या कहते

सारा पानी किसी ने रोका था
बेवजह हम नदी से क्या कहते

सामने उसके गिड़गिड़ाए थे
उसके खाता-बही से क्या कहते

अब वो हैवान बन गया तो फ़िर
हम उसी आदमी से क्या कहते

पी गए ख़ूं भी लोग सहरा में
आलमे-तिश्नगी से क्या कहते

तेरी गलियाँ तुझे मुबारक हो
और हम बेेरुखी से क्या कहते

*मौलिक ,अप्रकाशित एवं अप्रसारित

Views: 528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on June 9, 2020 at 4:20pm

आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय की गहराईयों से आभार. उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. सादर

Comment by Samar kabeer on June 9, 2020 at 12:24pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें,शेष जनाब अमीरुद्दीन साहिब बता ही चुके हैं ।

Comment by सालिक गणवीर on June 9, 2020 at 11:40am

प्रिय रूपम

आदाब

ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए  हार्दिक आभार.

Comment by सालिक गणवीर on June 9, 2020 at 11:38am

प्रिय रूपम

आदाब

ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए  हार्दिक आभार.

Comment by सालिक गणवीर on June 8, 2020 at 10:39am
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए सादर आभार. इस्लाह के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 7, 2020 at 11:27pm

//अब तो हैवान बन गया है जो ऊला को 

हम उसी आदमी से क्या कहते//             "अब वो हैवान बन गया तो फिर" कर सकते हैं।

                                                           हम उसी आदमी से क्या कहते।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 7, 2020 at 11:20pm

जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें। कुछ बिन्दुओं पर आपका ध्यानाकर्षण कराना चहता हूँ :

दूर की रौशनी से क्या कहते.         सानी मिसरे में काल बदल गया है, इसे यूँ कर सकते हैं :

है अंधेरा किसी से क्या कहते.       था अंधेरा किसी से क्या कहते

स्याह रातों में जगमगाती है            यहाँ सहीह लफ़्ज़ 'सियाह' 121 होना चाहिए, इसे यूँ कर सकते हैं :

दर्द की चांदनी से क्या कहते          जगमगाती सियाह रातों में, दर्द की चांदनी से क्या कहते। 

सारा पानी किसी ने रोका है.          यहांँ भी काल बदल गया है "सारा पानी किसी ने रोका था" कर सकते हैं। 

बेवजह हम नदी से क्या कहते

सामने उसके गिड़गिड़ाए थे            खाता-बही बहुवचन हैं इसलिए "उसके खाता-बही से क्या कहते" 

उसकी ख़ाता-बही से क्या कहते      कर सकते हैं खाता में ख पर नुक़्ता नहीं लगेगा। 

अब तो हैवान बन गया है जो           ऊला को "अब तो हैवान बन गया तो फिर" कर सकते हैं। 

हम उसी आदमी से क्या कहते

तेरी सड़कें तुझे मुबारक हो             इस शेअ'र का भाव स्पष्ट नहीं हुआ है, इसे यूँ कर सकते हैं :

और तेरी गली से क्या कहते.          "तेरी गलियाँ तुझे मुबारक हों, और हम बेरुखी़ से क्या कहते"।  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service