(2122 1212 22)
दूर की रौशनी से क्या कहते
था अंधेरा किसी से क्या कहते
जगमगाती सियाह रातों में
दर्द की चांदनी से क्या कहते
सारा पानी किसी ने रोका था
बेवजह हम नदी से क्या कहते
सामने उसके गिड़गिड़ाए थे
उसके खाता-बही से क्या कहते
अब वो हैवान बन गया तो फ़िर
हम उसी आदमी से क्या कहते
पी गए ख़ूं भी लोग सहरा में
आलमे-तिश्नगी से क्या कहते
तेरी गलियाँ तुझे मुबारक हो
और हम बेेरुखी से क्या कहते
*मौलिक ,अप्रकाशित एवं अप्रसारित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय की गहराईयों से आभार. उम्मीद करता हूँ कि भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा. सादर
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें,शेष जनाब अमीरुद्दीन साहिब बता ही चुके हैं ।
प्रिय रूपम
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हार्दिक आभार.
प्रिय रूपम
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हार्दिक आभार.
//अब तो हैवान बन गया है जो ऊला को
हम उसी आदमी से क्या कहते// "अब वो हैवान बन गया तो फिर" कर सकते हैं।
हम उसी आदमी से क्या कहते।
जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब। ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें। कुछ बिन्दुओं पर आपका ध्यानाकर्षण कराना चहता हूँ :
दूर की रौशनी से क्या कहते. सानी मिसरे में काल बदल गया है, इसे यूँ कर सकते हैं :
है अंधेरा किसी से क्या कहते. था अंधेरा किसी से क्या कहते
स्याह रातों में जगमगाती है यहाँ सहीह लफ़्ज़ 'सियाह' 121 होना चाहिए, इसे यूँ कर सकते हैं :
दर्द की चांदनी से क्या कहते जगमगाती सियाह रातों में, दर्द की चांदनी से क्या कहते।
सारा पानी किसी ने रोका है. यहांँ भी काल बदल गया है "सारा पानी किसी ने रोका था" कर सकते हैं।
बेवजह हम नदी से क्या कहते
सामने उसके गिड़गिड़ाए थे खाता-बही बहुवचन हैं इसलिए "उसके खाता-बही से क्या कहते"
उसकी ख़ाता-बही से क्या कहते कर सकते हैं खाता में ख पर नुक़्ता नहीं लगेगा।
अब तो हैवान बन गया है जो ऊला को "अब तो हैवान बन गया तो फिर" कर सकते हैं।
हम उसी आदमी से क्या कहते
तेरी सड़कें तुझे मुबारक हो इस शेअ'र का भाव स्पष्ट नहीं हुआ है, इसे यूँ कर सकते हैं :
और तेरी गली से क्या कहते. "तेरी गलियाँ तुझे मुबारक हों, और हम बेरुखी़ से क्या कहते"। सादर।
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