For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

'तेरे-मेरे मन की बातें' (लघुकथा)

"तुम भी सिर्फ़ एक क़िताबी कीड़े ही हो! कभी तुमने अपनी सूरत आइने में देखी है? कभी किसी ने तुम्हारी सूरत पर कोई अच्छी सी टिप्पणी की है?"

"क्या मतलब?"

"मतलब यह कि न तो तुम्हारी सूरत देखकर मुझे ख़ुशी मिलती है, न ही तुम्हारी बातें सुनकर! तुम्हारे दिलो-दिमाग़ की सीमाएं नापी जा सकती हैं! तुम ज्ञानी ज़रूर हो, लेकिन तुम भी मेरे किसी काम के नहीं?"

"काम का कैसे नहीं हूं? बताओ क्या सुनना है मुझसे? कहानी, लघुकथा, कविता, इतिहास, नीति-शास्त्र, राजनीति या धर्म संबंधी?"

"वह सब तू…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 4, 2019 at 12:00am — 3 Comments

ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)

ग़ज़ल (मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर)

(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)

मिट चुके हैं प्यार में कितने ही सूरत देख कर l

कीजिए गा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर l

मुझको आसारे मुसीबत का गुमां होने लगा

यक बयक उनका करम उनकी इनायत देख कर l

कुछ भी हो सकता है महफ़िल में संभल कर बैठिए

आ रहा हूँ उनकी आँखों में क़यामत देख कर l

देखता है कौन इज्ज़त और सीरत आज कल

जोड़ते हैं लोग रिश्ते सिर्फ़ दौलत देख…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 3, 2019 at 7:43pm — 8 Comments

कुम्भ स्नान (लघुकथा )

‘अरे राम-राम, संगम से इतनी दूर भी गंगा का किनारा साफ़ नहीं I सब ससुर किनारे में ही निपटान करत है i ऐसे में गंगा नहाय से का फायदा ? मगर हमरे घरैतिन के सिर पर तो कुम्भ सवार रहै I’- पंडित जी ने नाव वाले से कहा I नाव में कुछ और सवारियाँ भी थीं, परन्तु किसी का भी चेहरा धुंधलके और घने कुहरे के कारण साफ़ नजर नही आता था I

मल्लाह ने स्वीकार की मुद्रा में धीरे से ‘हूँ------‘ कहा और नाव खेने में मशगूल हो गया I    

‘इनका होश ही नाहीं i’– पंडिताइन ने ठंढी बयार से बचाने के लिए गोद में पड़े अपने…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 3, 2019 at 5:41pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ९२

२२१ २१२१ १२२१ २१२



मिलना नहीं जवाब तो करना सवाल क्यों

मेरी ख़मोशियों पे है इतना मलाल क्यों //१

दामाने इंतज़ार में कटनी है ज़िंदगी

मरने तलक है हिज्र तो होगा विसाल क्यों //२ 

यारों को कब पता नहीं कैसे हैं दिन मेरे

है जो नहीं वो ग़ैर तो पूछेगा हाल क्यों //३ 



जब है ज़रीआ कस्ब का कोई नहीं मेरा

आसाईशों की चाह की फिर हो मज़ाल…

Continue

Added by राज़ नवादवी on February 3, 2019 at 12:09pm — 3 Comments

अनसोई कविता............

अनसोई कविता............

कभी देखे हैं
अनसोई कविताओं के चेहरे
अँधेरे में टटोटलना
मेरे साँझ से कपोलों पर
रुकी कविताओं के
सैलाब नज़र आएँगे
छू कर देखना
उसमें आहत
अनसोई कविताओं के चेहरे
बेनकाब
नज़र आएँगे

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 2, 2019 at 6:23pm — 2 Comments

हयात में तू मुहब्बत की आन रहने दे (२१)

(1212 1122 1212 22 )

हयात में तू मुहब्बत की आन रहने दे 

कतर न पंख ये दिल की उड़ान रहने दे 

***

न तोड़ सिलसिला तू इस तरह मुहब्बत का

वफ़ा का मुझको जरा सा गुमान रहने दे

****

न खोल राज़ सभी हो न मेरी रुसवाई 

कुछ एक राज़ सनम दरमियान रहने दे

***

मैं जानता हूँ हक़ीक़त में प्यार है मुझसे 

क़फ़स में क़ैद तेरे मेरी जान रहने दे…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 2, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

कुण्डलिया छंद -

1-

जिसको ईश्वर की नहीं, कोई भी परवाह।

वह चल पड़ता है यहाँ, पाप कर्म की राह।।

पाप कर्म की राह, मगर फिर ठोकर खाता।

करके सत्यानाश, सही पथ पर वह आता।।

लोकलाज या शर्म,आज आखिर है किसको।

करता वही कुकर्म,न ईश्वर का भय जिसको।।

2-

हो जाता जो आदमी, लालच में पथभ्रष्ट।

वही भोगता बाद में, जीवन में अति कष्ट।।

जीवन में अति कष्ट, मगर हो जाता अंधा।

झूठ कपट छल छिद्र,पाप का करता धंधा।।

सीधा सच्चा मार्ग, नहीं उसको फिर भाता।

लालच में पथभ्रष्ट, आदमी…

Continue

Added by Hariom Shrivastava on February 1, 2019 at 7:08pm — 3 Comments

ग़ज़ल



221 2121 1221 212

छलके जो उनकी आंख से जज़्बात ख़ुद ब ख़ुद ।

आए मेरी ज़ुबाँ पे सवालात ख़ुद ब  ख़ुद ।।

किस्मत खुदा ने ऐसी बनाई है सोच कर ।

मिलती गमों की हमको भी सौगात ख़ुद ब ख़ुद ।।

चर्चा  है  शह्र  में  उसी की  देख आज कल ।

बाँटा है जिसने इश्क़ को ख़ैरात ख़ुद ब ख़ुद ।।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 1, 2019 at 3:01pm — 3 Comments

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (मुहब्बत के सफ़र में सैकड़ों आज़ार आने हैं)

1222 1222 1222 1222
मदारिस हैं, मसाजिद, मैकदे हैं, कारख़ाने हैं।
हमारी ज़िन्दगी में और भी बाज़ार आने हैं।
ये लावारिस से पौधे बस इसी अफ़वाह से खुश हैं,
जताने इख़्तियार इन पर भी दावेदार आने हैं।
मैं मरना चाहता हूँ और वो कहते हैं जीता…
Continue

Added by Balram Dhakar on January 31, 2019 at 10:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल : मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ

बह्र : 1222 1222 122

तुम्हारे शहर से मैं जा रहा हूँ

बिछड़ने से बहुत घबरा रहा हूँ

 

वहाँ दुनिया को तू अपना रही है

यहाँ दुनिया को मैं ठुकरा रहा हूँ

 

उठा कर हाथ से ये लाश अपनी

मैं अपने आप को दफ़ना रहा हूँ

 

तुम्हारे इश्क़ में बन कर मैं काँटा

सभी की आँख में चुभता रहा हूँ

 

नहीं मालूम जाना है कहाँ पर

न जाने मैं कहाँ से आ रहा हूँ

 

मुहब्बत रात दिन करनी थी तुमसे

तुम्हीं से…

Continue

Added by Mahendra Kumar on January 31, 2019 at 7:51pm — 8 Comments

जब तलक यारो जलेगी लौ नवेली जिस्म की -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'-(गजल)

२१२२ २१२२/ २१२२  २१२



रूप सँवरा  और  खुशबू  है  बनेली  जिस्म की

हो गयी है क्यों हवस ही अब सहेली जिस्म की।१।



ये शलभ यूँ  ही मचलते पास तब तक आयेंगे

जब तलक यारो जलेगी लौ नवेली जिस्म की।२।



ये चमन  ऐसा  है  जिसमें  साथ  यारो उम्र के

सूखती जाती है चम्पा औ'र चमेली जिस्म की।३।



रूप का मेहमान ज्यों ही जायेगा सब छोड़ के

हो के रह जायेगी  सूनी  ये  हवेली जिस्म…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2019 at 7:25pm — 10 Comments

षट ऋतु हाइकु

षट ऋतु हाइकु

चैत्र वैशाख
छायी 'बसंत'-साख।
बौराई शाख।
**
ज्येष्ठ आषाढ़
जकड़े 'ग्रीष्म'-दाढ़
स्वेद की बाढ़।
**
श्रावण भाद्र
'वर्षा' से धरा आर्द्र
मेघ हैं सांद्र।
**
क्वार कार्तिक
'शरद' अलौकिक
शुभ्र सात्विक।
**
अग्हन पोष
'हेमन्त' भरे रोष
रजाई तोष।
**
माघ फाल्गुन
'शिशिर' है पाहुन
तापे आगुन।
*******

मौलिक व अप्रकाशित

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 31, 2019 at 12:00pm — 5 Comments

इतनी सी बात थी ....

इतनी सी बात थी ....

एक शब के लिए

तुम्हें माँगा था

अपनी रूह का

पैरहन माना था

मेरी इल्तिज़ा

तुम समझ न सके

तुम ज़िस्म की हदों में

ग़ुम रहे

मेरा समर्पण

तुम्हारी रूह पर

दस्तक देता रहा

लफ्ज़

अहसासों की चौखट पर

दम तोड़ते रहे

रूह का परिंदा

करता भी तो क्या

हार गया

दस्तक देते -देते

उल्फ़त की दहलीज़ पर

तुम

समझ न सके

बे-आवाज़ जज़्बात को

ज़िस्म की हदों में कहाँ

उल्फ़त के अक़्स होते…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 30, 2019 at 6:39pm — 4 Comments

प्रार्थना (मधुमालती छंद पर आधारित)

( १४ मात्राओं का सम मात्रिक छंद सात-सात मात्राओं पर यति, चरणान्त में रगण अर्थात गुरु लघु गुरु)

कर जोड़ के, है याचना, मेरी सुनो, प्रभु प्रार्थना।

बल बुद्धि औ, सदज्ञान दो, परहित जियूँ, वरदान दो।।

निज पाँव पे, होऊं खड़ा, संकल्प लूँ, कुछ तो बड़ा।

मुझ से सदा, कल्याण हो, हर कर्म से, पर त्राण हो।।

अविवेक को, मैं त्याग दूँ, शुचि सत्य का, मैं राग दूँ।

किंचित न हो, डर काल का, विपदा भरे, जंजाल का।।

लेकर सदा, तव नाम को, करता रहूँ, शुभ…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 30, 2019 at 11:01am — 4 Comments

कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे (२०)

(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ )

कभी तन्हा अगर बैठें तो ख़ुद से गुफ़्तगू कीजे 

खुदा मौजूद है  अंदर उसी की जुस्तजू कीजे 

***

नुज़ूमी चाल क़िस्मत की क्या हमारी बताएगा 

पढ़ा किसने मुक़द्दर है भला क्या आरजू कीजे 

***

कहाँ तक नफ़रतों का ज़ुल्म सहते जायेंगे यारों 

मुहब्बत के  शरर से रोशनी अब चार सू कीजे 

***

तभी करना मुहब्बत जब निभा…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 30, 2019 at 10:00am — 8 Comments

हाइकु (हिंसा-अहिंसा पर)

स्वार्थ बाधित

अहिंसा का अस्तित्व

पशुतावाद

**

हिंसा सिखाती

है स्वार्थलोलुपता-

वेदनाहीन

**

हिंसा की धाक

गांधीगीरी मज़ाक

व्यापारिकता

***

सह-अस्तित्व

हिंसा-आधुनिकता

धन-प्रभुत्व

**

लुप्त अस्तित्व…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 29, 2019 at 7:30pm — 5 Comments

हर बुढ़ापा जिन्दगी भर बेबसी खोता नहीं - गजल

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



नींद में भी जागता रहता है जो सोता नहीं

हर बुढ़ापा जिन्दगी भर बेबसी खोता नहीं।१।



है जवानी भी  कहाँ  अब  चैन  के  परचम तले

सिर्फ बचपन ही कभी चिन्ताओं को ढोता नहीं।२।

ज़िन्दगी यूँ  तो  हसीं  है, इसमें  है  बस ये कमी

जो भी अच्छा है वो फिर से यार क्यों होता नहीं।३।



नफरतों का तम सदा को दूर हो जाये यहाँ

आदमी क्यों…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2019 at 7:30pm — 6 Comments

पूर्ण विराम :

पूर्ण विराम :

ओल्ड हो जाता है जब इंसान

ऐज हो जाती है लहूलुहान अपने ही खून के रिश्तों से

होम में जल जाते हैं सारे कोख के रिश्ते

बदल जाता है

एक घर

जब

ढाँचा चार दीवारों का

पुराना ज़िस्म

जब

पुराना सामान हो जाता है

वो

ओल्ड ऐज होम का

सामान हो जाता है

अपनों के हाथों पड़ी खरोंचों के

झुर्रीदार चेहरे

मृत संवेदनाओं की

कंटीली झाड़ियों के साथ

शेष जीवन व्यतीत करने वालों के लिए

अंतिम सोपान हो जाता…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 28, 2019 at 1:30pm — 6 Comments

स्वयं को एक बार देखो

अवनि के विस्तृत पटल पर

प्रकृति के नित नव सृजन,

संगीत की अद्भुत समन्वित

राग-रागनियों के रस , लय ,

छन्द का विस्तार देखो

स्वयं को एक बार देखो



चहुँ दिशाओं में थिरकतीं

इन्द्रधनुषी नृत्य करतीं

रंगों की मनहर ऋचाएँ 

सृष्टिकर्ता प्रकृति का प्रतिपल

नया अभिसार देखो

स्वयं को एक बार देखो



विपुल रवि , ग्रह , चन्द्र मंडित

गहन अनुशासित अखंडित

ज्योति किरणों से प्रभासित

व्योम में , गतिमान

सामंजस्य का श्रृंगार देखो…

Continue

Added by Usha Awasthi on January 27, 2019 at 8:30pm — 3 Comments

दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब (१९)

(२२१ २१२१ १२२१ २१२  )

दस्तूर इस जहाँ के हैं देखे अजीब अजीब

दुश्मन भी एक पल में बने देखिये हबीब

***

बनती बिगड़ती बात अचानक कभी कभी

बिगड़े नसीब वालों के खुल जाते हैं नसीब

***

वादा किया था हम से सजा लेंगे ज़ुल्फ़ में

लेकिन सजा है ज़ीस्त में क्यों आपके रक़ीब

***

नज़दीक आज लग रहा होता है दूर कल

जो दूर दूर रहता वो हो जाता है क़रीब

***

होता है पर कभी कभी ऐसा भी मो'जिज़ा

बनता ग़रीब बादशा और बादशा ग़रीब

***

हैरत है बातिलों…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 27, 2019 at 5:00pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"स्वागतम"
3 hours ago
Mamta gupta joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
13 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA updated their profile
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
16 hours ago
Mamta gupta and Euphonic Amit are now friends
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"आ. भाई सत्यनारायण जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Wednesday
Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
Tuesday
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
Tuesday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Oct 5
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service