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221 2121 1221 212

छलके जो उनकी आंख से जज़्बात ख़ुद ब ख़ुद ।
आए मेरी ज़ुबाँ पे सवालात ख़ुद ब  ख़ुद ।।

किस्मत खुदा ने ऐसी बनाई है सोच कर ।
मिलती गमों की हमको भी सौगात ख़ुद ब ख़ुद ।।

चर्चा  है  शह्र  में  उसी की  देख आज कल ।
बाँटा है जिसने इश्क़ को ख़ैरात ख़ुद ब ख़ुद ।।

मेहनत पे कुछ भरोसा हो और हो नियत भी साफ।
बढ़ जाएगी तुम्हारी भी औक़ात ख़ुद ब ख़ुद ।।

आवाम की घुटन से ये अहसास हो रहा ।
बदलेगी  कुछ  तो सूरते  हालात ख़ुद ब ख़ुद ।।

मुद्दत से इस तरह से मुझे देखते हो क्यूँ ।
कर दो कहीं इश्क़ की शुरुआत खुद ब खुद।।

इक दिन तुम्हारे हुस्न का दीदार क्या हुआ ।
अब तक हैं क़ैद ज़ेहन में लम्हात ख़ुद ब ख़ुद ।।

कुछ तो असर हुआ है मेरी चाहतों का यार ।
करने लगे वो  मुझसे मुलाकात खुद ब खुद ।।

इन ख़्वाहिशों  के दौर में थोड़ा तो सब्र कर ।
आएगी तेरे हक़ में कोई रात ख़ुद ब ख़ुद ।।

        --डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
         मौलिक अप्रकाशित




































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Comment by नाथ सोनांचली on February 2, 2019 at 6:42am

आद0 नवीन मणि त्रिपाठी जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। उस पर आद0 समर साहब की इस्लाह से रचना और निखर गयी। बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2019 at 4:45am

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on February 1, 2019 at 5:59pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'किस्मत खुदा ने ऐसी बनाई है सोच कर ।
मिलती गमों की हमको भी सौगात ख़ुद ब ख़ुद'

इस शैर के ऊला में 'सोच कर' की जगह "दोस्तो" कर लें और सानी मिसरा यूँ कर लें:-

  1. 'मिलती हमें ग़मों की ये सौग़ात ख़ुद ब ख़ुद'

'चर्चा  है  शह्र  में  उसी की  देख आज कल ।
बाँटा है जिसने इश्क़ को ख़ैरात ख़ुद ब ख़ुद'

इस शैर में 'ख़ैरात' शब्द स्त्रीलिंग है,इस शैर को यूँ कर लें:-

"चर्चा है शह्र भर में इसी बात का सनम

बाँटी है तूने इश्क़ की ख़ैरात ख़ुद ब ख़ुद' 

'आवाम की घुटन से ये अहसास हो रहा'

पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि 'आवाम' ग़लत है,सहीह शब्द है "अवाम" इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'जनता की इस घुटन से ये अहसास हो रहा'

'मुद्दत से इस तरह से मुझे देखते हो क्यूँ ।
कर दो कहीं  इश्क़ की शुरुआत खुद ब खुद'

इस शैर में क़ाफ़िया सहीह नहीं,शैर हटा दें ।

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