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'तेरे-मेरे मन की बातें' (लघुकथा)

"तुम भी सिर्फ़ एक क़िताबी कीड़े ही हो! कभी तुमने अपनी सूरत आइने में देखी है? कभी किसी ने तुम्हारी सूरत पर कोई अच्छी सी टिप्पणी की है?"

"क्या मतलब?"

"मतलब यह कि न तो तुम्हारी सूरत देखकर मुझे ख़ुशी मिलती है, न ही तुम्हारी बातें सुनकर! तुम्हारे दिलो-दिमाग़ की सीमाएं नापी जा सकती हैं! तुम ज्ञानी ज़रूर हो, लेकिन तुम भी मेरे किसी काम के नहीं?"

"काम का कैसे नहीं हूं? बताओ क्या सुनना है मुझसे? कहानी, लघुकथा, कविता, इतिहास, नीति-शास्त्र, राजनीति या धर्म संबंधी?"

"वह सब तू अपने पास रख! तेरी सूरत, तेरी दिनचर्या, तेरे उसूल और आदर्श से तेरा क़िताबी ज्ञान नाप लेता हूं मैं? बता, क्या तू मुझे हंसा सकता है? मुझे रिलेक्स करा सकता है?"

"... लेकिन ऐसा क्यूं कह रहे हो?"

"क्योंकि मुद्दत हो गई मुझे हंसे हुए! भूल गया हूं हंसना!"

"तो कुछ चुटकुले, लतीफ़े सुनाऊं या टीवी पर कोई कॉमेडी शो दिखाऊं?"

"उनकी भी वैसी तासीर कहां रही? बनावटीपन या फूहड़पन मुझे न तो हंसा सकता है, न रिलेक्स करा सकता है, समझे! जस्ट टाइम पास; और कुछ नहीं!"

"तो फ़िल्मी गाने सुनवाऊं? नये या पुराने?"

"नयों में वो बात नहीं और पुराने से हालात नहीं! वे भी मुझे हंसा तो नहीं सकते! ... मैं हंसना चाहता हूं दोस्त, हंसना! असली स्वाभाविक हंसी को मोहताज़ हूं मैं? क्या तुम्हारी क़िताबें ऐसा कर पातीं हैं आज की जीवन-शैली में, ऐं?"

"तो, तू थोड़ा रिलेक्स कर ले पहले! तुझे दरअसल हॉटी-नॉटी बोटी की ज़रूरत है! सेक्स से रिलेक्स तक!"

"नहीं, हरगिज़ नहीं! वह सब भी या तो आभासी है या मशीनी! अनुबंधित है या व्यापारिक! सिर्फ़ सौदेबाज़ी, फर्ज़, कर्ज़, औपचारिकता, लत या फूहड़ प्रर्दशन!"

"तो, तू ऐसा कर! मेरी तरह बन जा! लेखक भी और पाठक भी! दिन का फ़्री टाइम भी कट जायेगा और रात भी! जब कोई किसी का नहीं होता न, तो क़िताबें ही सच्ची दोस्त होतीं हैं, दोस्त! लेकिन हंसने-हंसाने की बात मत करना, समझे!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 12, 2019 at 12:18am

आदाब। मेरी इस लघुकथा पर समय देकर अवलोकन और मेरी हौसला अफ़ज़ाई व विचार साझा करने हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समय कबीर साहिब और जनाब अमित कुमार'अमित' साहिब।

Comment by Samar kabeer on February 4, 2019 at 9:21pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Amit Kumar "Amit" on February 4, 2019 at 6:06pm

अजी वाह आदरणीय शहजाद उस्मानी जी बहुत ही सही बात कही आपने किताबें इंसान की सच्ची दोस्त होती हैं। लेखक भी और पाठक भी बाली बात भी बहुत सुंदर है। बधाईयां

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