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षट ऋतु हाइकु

चैत्र वैशाख
छायी 'बसंत'-साख।
बौराई शाख।
**
ज्येष्ठ आषाढ़
जकड़े 'ग्रीष्म'-दाढ़
स्वेद की बाढ़।
**
श्रावण भाद्र
'वर्षा' से धरा आर्द्र
मेघ हैं सांद्र।
**
क्वार कार्तिक
'शरद' अलौकिक
शुभ्र सात्विक।
**
अग्हन पोष
'हेमन्त' भरे रोष
रजाई तोष।
**
माघ फाल्गुन
'शिशिर' है पाहुन
तापे आगुन।
*******

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on February 4, 2019 at 2:14pm

जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब,अच्छे हाइकू लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 2, 2019 at 1:53pm

आ0 लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत आभार।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 2, 2019 at 1:52pm

आ0 सुरेंद्र नाथ जी आपसे हाइकु को सराहना मिली, आपका बहुत बहुत आभार।

मेघ हैं सांद्र= मेघ घने हैं। सांद्र"=घने

तोष यानि सन्तुष्टि, प्रसन्नता इत्यादि। रजाई तोष प्रदान करने वाली है।

तापे आगुन= आग तप रहा है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2019 at 5:46am

आ. भाई वासुदेव जी, सुंदर हाइकू हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 31, 2019 at 10:11pm

आद0 बासुदेव अग्रवाल जी सादर अभिवादन। बढ़िया हाइकू लिखा आपने,, सच कहूं तो पहली बार तीनो पंक्तियों में तुकांतता की हाइकू पहली बार ही पढ़ा मैंने। कुछ जगहों पर मैं अर्थ समझ न सका जैसे-"मेघ हैं सांद्र", "रजाई तोष", "तापे आगुन"...  इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये।

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