मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
दूध को जो दूध और पानी को पानी लिख रहे हैं
लोग वो कम ही बचे जो हक़बयानी लिख रहे हैं
खेत में ओले पड़े हैं नष्ट सब कुछ हो चुका है
कूल है मौसम बहुत वे ऋतु सुहानी लिख रहे हैं
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 27, 2020 at 6:59pm — 10 Comments
पूछते क्या हो यूं लेकर सवाल आंखों में
पढ सको पढ लो मेरा सारा हाल आंखों में
देखना था कि समंदर से क्या निकलता है
बस यही सोच के फेंका था जाल आंखों में
वो मिरे सामने आती है झुकाए पलकें
हया को रखा है उसने संभाल आंखों में
नजर से नब्ज पकडकर इलाज कर भी कर दे
वो लेकर चलती है क्या अस्पताल आंखों में
जो उसका साथ है तो तीरगी से डर कैसा
इश्क में जलने लगती है मशाल आंखों में।। #अतुल
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Added by atul kushwah on April 27, 2020 at 4:50pm — 1 Comment
कुछ पल और ठहर जाओ के रात अभी बाकी है
दो घूंट कश के लगाओ के कई बात अभी बाकी है
जो टूटे है ख्वाब सारे वो बैठ के जोड़ेंगे
छाले दिल में है जितने भी इसी हाथ से फोड़ेंगे
थोड़ा तुम दिल को बहलाओ के ज़ज़्बात अभी बाकी है
के आज हद से गुज़र जाओ मुलाकात अभी बाकी है
तमन्ना जो भी है दिल में आज पूरी सारी कर लो
हम खाएं खो ना जाएं अपने बाहों में भर लो
करेंगे हम ना अब इंकार के इकरार अभी बाकी है
ना होंगे फिर ये हालात के ऐतबार अभी बाकी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 27, 2020 at 2:28pm — 7 Comments
जब हो हृदय अतिशय व्यथित
मन में उठें लहरें अमिट।
शब्द के जल से द्रवित हो
अश्रु सा बन धार बहना
काव्य सरिता का निकलना
है यही कविता का कहना।।काव्य सरिता का...
या परम सुख की घड़ी में
याद करके जिस कड़ी को।
या हृदय की धड़कनों से
शब्द गुच्छों का निकलना
काव्य सरिता का है बहना।काव्य सरिता का....
या विरह की वेदना का
जब स्वयं वर्णन हो करना।
बिन कहे सब कुछ हो कहना
शब्द की नौका पे चढ़कर
दर्द की दरिया में बहना
है यही कविता का…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on April 27, 2020 at 9:19am — 1 Comment
डॉक्टर की बातों के जवाब में वर्मा जी कहने लगे-
-हाँ साहब, मुझे पुरानी चीजों से लगाव है।चाहे यादें हों,या पुस्तकें,पन्ने आदि।
-मसलन?
-मैं यदा-कदा यह निर्णय ही नहीं कर पाता कि किन यादों को स्मृति-पटल से खुरचकर मिटा देना चाहिए या कौन किताब या पन्ना अपनी अलमारी से बाहर करूँ,कौन रखूँ।
-मतलब ,आप दुविधाग्रस्त रहते हैं।
-जी।
-और पुरातनता से संबद्ध भी रहना चाहते हैं।
-जी।पर कभी-कभी अपने इस लगाव के चलते पश्ताचाप भी होता है कि मैं अनावश्यक तौर पर अनचाही चीजों में फँसकर खुद…
Added by Manan Kumar singh on April 27, 2020 at 8:30am — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on April 27, 2020 at 6:24am — 6 Comments
गीत
देखा जब से उनको हिय में हुई अजब सी हलचल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
उनके अरुण अधर ज्यों फूलों की हों कोमल कलियाँ।
जिनसे फूटें स्वर मधुरिम तो गूँजें मन की गलियाँ।।
केशों के झुरमुट में उनका मुखमंडल यों भाये।
घन के मध्य झरोखे में ज्यों इंदु मंद मुसकाये।।
दृग पराग के प्याले हों ज्यों करते हर पल छल-छल।
दिन को चैन और रातों को नींद नहीं है इक पल।।
खिलता यौवन-पुष्प सुरभि यों चहुँ दिश बिखराता…
ContinueAdded by रामबली गुप्ता on April 26, 2020 at 11:03pm — 6 Comments
झूठ
नहीं, नहीं
रहने दो
सच और झूठ की ये तकरार
सच में बेकार है
सत्य
जब उजागर होता है
तो आघात देता है
और झूठ जब उजागर होता है
तो शर्मिंदगी का शूल देता है
फिर क्यूँ मुझे
अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो
सच कहूँ
यदि आघात ही सहना है तो
मुझे ये झूठ अच्छा लगता है
कम से कम मौन पलों में
स्नेह का आवरण तो नहीं हटता
कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता
स्पर्शों की आँधी
सत्य के चौखट पर…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 9:00pm — 4 Comments
दिल के दोहे :
पागल मन की मर्ज़ियाँ, उत्पाती उन्माद।
हुए अलंकृत स्वप्न से, नैनों के प्रासाद।।
वंचक नैनों का भला , कौन करे विश्वास।
इनके हर अनुरोध में, छलके तन की प्यास।।
नैनों के अनुरोध को, नैन करें स्वीकार।
लगती है इस खेल में, दिल को अच्छी हार।।
हृदय कुंज में अवतरित, हुई पिया की याद।
नैन तीर को कर गई, अश्कों से आबाद।।
तृषा हुई बैरागिनी, द्रवित हुए शृंगार।
हौले-हौले दिन ढला, रैन बनी…
Added by Sushil Sarna on April 26, 2020 at 7:10pm — 8 Comments
नन्हीं बिटिया जग में आई
बड़ी उदासी घर में छाई!
सब के सब हैं चुपचाप मगर
मैया की छाती भर आई।।
जन्म दिया मैया कहलाई
पर इक बात समझ ना आई
नानी है या कोई मिसरी?
माँ से भी मीठी कहलाई।।
पहले बिटिया बनकर आई
फिर बिटिया को जग में लाई
माँ बनती जब, माँ की बिटिया
तब जाकर नानी कहलाई।।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Dharmendra Kumar Yadav on April 26, 2020 at 3:30pm — 3 Comments
पत्थर को भी फूल सरीखा होना अच्छा लगता है
काँधा अपनेपन का हो तो रोना अच्छा लगता है।१।
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पहले जगकर रोज भोर में सूरज ताका करते थे
अब आँखों को उसी वक्त में सोना अच्छा लगता है।२।
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छीन लिया है वक्त ने चाहे खेत का जो भी टुकड़ा था
बेटे हलधर के हम जिन को बोना अच्छा लगता है।३।
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घोर तमस के बीच भी जो तब चौपालों में रहते थे
उनको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 12:31pm — 9 Comments
++ग़ज़ल++ ( 1222 *4 )
न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत
कभी बिगड़े नहीं या रब मेरे पिंदार की सूरत
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ख़ुदाया ख़म कभी सर हो न मेरा इस ज़माने में
सदा क़ायम रहे हर पल मेरे मेआ'र की सूरत
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दिखाए मुख़्तलिफ़ रंगों में उसने प्यार के जलवे
कभी इक़रार की सूरत कभी इंकार की सूरत
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सितम कर दिल्लगी कर बस ख़याल इतना ज़रा रखना
न हो ये ज़िंदगी ज़िंदान-ए-तंग-ओ-तार की सूरत
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जवानों के नए अंदाज़…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 26, 2020 at 8:30am — 6 Comments
1222 1222 122
निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।
जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।
रवानी जिस मे होती है समंदर ।
उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।
हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।
कोई सांचे में अपने ढालता है ।।
तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।
यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।
कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।
तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।
ठहर जाती हैं नज़रें…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:35pm — 4 Comments
2122 2122 212
जाने कैसी तिश्नगी है ज़िंदगी ।
ख्वाहिशों की बेबसी है जिंदगी ।।
हर तरफ़ मजबूरियों का दौर है ।
ज़ह्र कितना पी रही है जिंदगी ।।
फ़िक्र किसको है सियासत तू बता ।
भूख से दम तोड़ती है जिंदगी ।।
दर्दो ग़म मत पूछिए मेरा सनम ।
बेवफ़ा सी हो गयी है ज़िन्दगी ।।
इस वबा के जश्न में तू देख तो ।
क्यूँ बहुत सहमी हुई है ज़िन्दगी ।।
है तबाही का नया मंज़र यहां…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:27pm — 1 Comment
पञ्चचामर छंद
सूत्र : जगण + रगण + जगण + रगण + गुरु
शरीर लोकतन्त्र तो विरोध एक वस्त्र है
विरोध एक नाम है विरोध अस्त्र शस्त्र है
न अंधकार हो कहीं विरोध वो मशाल है
विरोध एक आग है विरोध क्रांति भाल है।।1
विरोध कीजिए भले, विकास को न रोकिये
विपक्ष पक्ष साथ हो, तुरन्त आप टोकिये
कभी विरोध नाम से यहाँ न तोड़ फोड़ हो
विरोध हो विरोध सा, विरोध में न होड़ हो।।2
अनीति या कुरीति का सदा विरोध कीजिए
भविष्य…
Added by नाथ सोनांचली on April 25, 2020 at 11:05am — 4 Comments
एक गीत
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न भुज-बल है और न धन-बल ,
मनुज बड़ा सबसे बुद्धि-बल |
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अभिमानी करते हैं केवल नित्य प्रदर्शन अपने धन का |
डर फैलाते चन्द भुजबली रोब दिखाकर अपने तन का |
लक्ष्मी जैसे ही रूठेगी सर्वनाश होना निश्चित है |
मिला स्वयं से शक्तिमान तो गर्व नाश होना निश्चित है |
कहने का बस अर्थ यही है धन-बल भुज-बल हैं अस्थायी,
किन्तु भ्रष्ट नहीं हो जब तक
अक़्ल कभी न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 24, 2020 at 11:00pm — 4 Comments
221 2121 1221 212
वो मेरी ज़िन्दगी है उसे ये पता नहीं,
मैंने सलीके से ही यकीनन कहा नहीं।
ऐसा कोई कोई है ज़माने में दोस्तो,
जो आने वाले कल की कभी सोचता नहीं।
सब अपनी अपनी धुन में बताते हैं उसकी बात,
वो कैसा है, कहाँ है,किसी को पता नहीं।
मजबूरियां हमारी हमारा नसीब है,
चलने की आरज़ू है मगर रास्ता नहीं।
बेकार सर खपाने की आदत का क्या करें,
कोई नया ख्याल मयस्सर हुआ नहीं।
हर फूल को बिछड़ना है डाली से एक दिन, …
Added by मनोज अहसास on April 23, 2020 at 10:30pm — 6 Comments
मत्त गयंद छंद
हाथ रखा जिसने सिर पे वह जीवन सम्बल शक्ति पिता है
प्रेम प्रशासन औ अनुशासन प्यार दुलार विभक्ति पिता है
रीढ़ झुकी उसके तन की पर वज्र दधीचि प्रसक्ति पिता है
तीर्थ बसें जग के जिसमें सब पूजित वो इक व्यक्ति पिता है।।1
खार बिछावन हो अपना सुत सेज रखे पर फूल पिता है
पुत्र हजार करे गलती पर माफ़ करे सब भूल पिता है
होकर आज बड़ा सुत जो कुछ है उसका सब मूल पिता है
पूत कपूत सपूत बने, बनता न कभी प्रतिकूल पिता है।।2
शौक सभी…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on April 23, 2020 at 8:30am — 7 Comments
"आज तो मैं जा के ही रहूंगी, चाहे पुलिस का डंडा ही क्यों न खाना पड़े", उसने एक नजर बिस्तर पर बीमार पड़े पति और भूख से बेचैन दोनों बच्चों को देखते हुए कहा.
बड़े बेटे ने साथ में सुर मिलाया "मैं भी चलूँगा अम्मा, वो तीसरे माले वाली ऑन्टी मुझे कितना मानती हैं".
उसने दृढ़ता से मना कर दिया "मुझे तो शायद छोड़ देंगे लेकिन तुझे नहीं छोड़ेंगे. तू यही छोटे का ख्याल रख, मैं कुछ लेकर आती हूँ".
बाहर निकलकर जैसे ही वह सड़क पर पहुंची, एक पुलिसवाला डंडा फटकारते हुए आया "कहाँ जा रही है, पता नहीं है कि…
Added by विनय कुमार on April 22, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
(1222 *4 )
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महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये
ग़रीबों के रुख़ों पर गर कोई मुस्कान ले आये
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किनारे पर हमेशा बह्र-ए-दिल के एक ख़तरा है
न जाने मौज ग़म की कब कोई तूफ़ान ले आये
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नहीं है मोजिज़ा तो और इसको क्या कहेंगे हम
ख़ुशी का ज़िंदगी में पल कोई अनजान ले आये
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ये कैसा वक़्त आया है न जाने कब कोई मेहमाँ
हमारी ज़िंदगी में मौत का सामान ले आये
**
कभी सोचा नहीं था घर बनेगा एक दिन ज़िंदाँ
मगर…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 22, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
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