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कई बात अभी बाकी है

कुछ पल और ठहर जाओ के रात अभी बाकी है

दो घूंट कश के लगाओ के कई बात अभी बाकी है

 

जो टूटे है ख्वाब सारे वो बैठ के जोड़ेंगे

छाले दिल में है जितने भी इसी हाथ से फोड़ेंगे

थोड़ा तुम दिल को बहलाओ के ज़ज़्बात अभी बाकी है

के आज हद से गुज़र जाओ मुलाकात अभी बाकी है

 

तमन्ना जो भी है दिल में आज पूरी सारी कर लो

हम खाएं खो ना जाएं अपने बाहों में भर लो

करेंगे हम ना अब इंकार के इकरार अभी बाकी है

ना होंगे फिर ये हालात के ऐतबार अभी बाकी है

 

आज कुछ भी कह जाने की इज़ाज़त है तुम्हे

हाल-ए-दिल अपना सुनाने की इज़ाज़त है हमे

एक बार फिर से रुलाओ के जाम अभी बाकी है

गले से हमको को लगा लो कई याद अभी बाकी है

 

रहे हम राह तकते के तुम लौटे ही नहीं

खड़े हम अब भी मिल जाएँगे उसी मोड़ पे कहीं

हम न छोड़ेंगे कभी हाथ के साथ अभी बाकी है

आँखें देंगी खुद जवाब सवालात कई बाकी है

 

कुछ पल और ठहर जाओ के रात अभी बाकी है

दो घूंट कश के लगाओ के कई बात अभी बाकी है

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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Comment by नाथ सोनांचली on May 3, 2020 at 7:10pm

आद0 अमन सिन्हा जी,, पहले तो इस मंच के कुछ सामान्य सी परम्परा है जिसमें रचनाकारों को आदरणीय जैसे शब्दों से पुकारा जाना एक है। आप निश्चय ही लेखन की ऊँचाई हासिल करेंगे। बस लगे रहिये। मेरी अनन्त शुभकामनाएं आपको निवेदित हैं। सादर

Comment by AMAN SINHA on May 3, 2020 at 6:46pm

@सुरेन्द्र नाथ सिंह जी , हिन्दी लिखना भी इतना सरल नहीं है। मेरे जैसे नौसिखिये के लिए तो बिलकुल भी नहीं। मैंने तो वही लिखा जो कलम ने मुझसे लिखवाया। मैंने कभी भी कोई रचना किसी शिल्प निर्माण की भावना से नहीं लिखा। न तो मैं कोई लेखक हूँ न हीं रचनाकार। सीखने का दौर चल रहा है। देखते है मेरी कला मे धार कब तक आती है। 

धन्यवाद 

Comment by नाथ सोनांचली on May 2, 2020 at 6:26pm

आद0 अमन सिन्हा जी सादर अभिवादन। ओ बी ओ पर आपकी पहली रचना से रूबरू हो रहा हूँ। हो सकता है इससे पहले भी कुछ रचनाये आयी हों। इस रचना का शिल्प क्या है क्योंकि मुझे कोई निश्चित शिल्प दिखाई नहीं दिया। भाव सम्प्रेषण उत्तम है। किसी भी पंक्ति के प्रारम्भ में के शब्द खटक रहा है। देखियेगा। बहरहाल इस सृजन पर बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2020 at 8:44am

आ. अमन जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई । रचना को शीर्षक देने की परम्परा भी कायम रखिए जिससे रचना को और बहतरी से समझने में मदद मिलती है । सादर

Comment by AMAN SINHA on April 30, 2020 at 5:39pm

@डा छोटेलाल सिंह 

Comment by AMAN SINHA on April 30, 2020 at 5:38pm

धन्यवाद महाशय, मेरी कई रचनाए "प्रतिलिपि" पर भी उपलब्ध है उन सब पर भी आपकी समीक्षा काम्य है। 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 30, 2020 at 9:25am

आदरणीय अमन सिन्हा जी बेहतरीन रचना ,मदहोश कर देने वाली रचना लिखी आपने बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

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