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दिल के दोहे :

पागल मन की मर्ज़ियाँ, उत्पाती उन्माद।
हुए अलंकृत स्वप्न से, नैनों के प्रासाद।।

वंचक नैनों का भला , कौन करे विश्वास।
इनके हर अनुरोध में, छलके तन की प्यास।।

नैनों के अनुरोध को, नैन करें स्वीकार।
लगती है इस खेल में, दिल को अच्छी हार।।

हृदय कुंज में अवतरित, हुई पिया की याद।
नैन तीर को कर गई, अश्कों से आबाद।।

तृषा हुई बैरागिनी, द्रवित हुए शृंगार।
हौले-हौले दिन ढला, रैन बनी अंगार।।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on May 4, 2020 at 10:16pm

आदरणीय  vijay nikore  जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by vijay nikore on May 2, 2020 at 6:58am

आप दोहे, अतुकांत, क्षणिकाएँ.... सभी के मालिक हैं, अच्छा लिखते हैं।बधाई, मित्र सुशील जी।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2020 at 8:26pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2020 at 8:25pm

आदरणीय  डॉ छोटेलाल सिंहजी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2020 at 8:25pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 1, 2020 at 11:52am

आदरणीय सुशील सरना जी बहुत ही मादक औऱ मारक दोहे पढ़कर मन झूम उठा,बहुत बहुत बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2020 at 12:03pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । उत्तम होहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on April 29, 2020 at 6:07am

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। आपको पढ़ना सदैव अच्छा लगता है। बढ़िया कथ्ययुक्त दोहों पर बधाई स्वीकार कीजिये

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