For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये-ग़ज़ल (८९ )

(1222 *4 )

.

महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये

ग़रीबों के रुख़ों पर गर कोई मुस्कान ले आये

**

किनारे पर हमेशा बह्र-ए-दिल के एक ख़तरा है

न जाने मौज ग़म की  कब कोई  तूफ़ान ले आये

**

नहीं है मोजिज़ा तो और इसको क्या कहेंगे हम

ख़ुशी का ज़िंदगी में पल कोई  अनजान ले आये

**

ये कैसा वक़्त आया है न जाने कब कोई मेहमाँ

हमारी ज़िंदगी में  मौत का सामान ले आये 

**

कभी सोचा नहीं था घर बनेगा एक दिन ज़िंदाँ 

मगर इस बात पर हम आजकल ईमान ले आये

**

हमारे मुल्क में आज़ादियों का सिर्फ़ है   मतलब

यहाँ आफ़त  कोई भी सरफिरा   नादान ले आये

**

मुहब्बत में जो ख़ुश्बू है नहीं मुमकिन किसी शय में

मुक़ाबिल कोई भी इसके भले लोबान ले आये

**

पढ़ाता  पाठ  नफ़रत का बताओ कौन सा मज़हब

चुनौती है कोई  गीता कि वो क़ुरआन ले आये

**

मुहब्बत नापना मुमकिन कहाँ होता है दुनिया में

'तुरंत' ऐसा  कहीं है तो कोई मीज़ान ले आये

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 357

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 24, 2020 at 11:10pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी, उत्साहवर्धन के लिए दिली शुक्रिया | 

Comment by TEJ VEER SINGH on April 24, 2020 at 9:36pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी जी। बेहतरीन गज़ल।

ये कैसा वक़्त आया है न जाने कब कोई मेहमाँ

हमारी ज़िंदगी में  मौत का सामान ले आये 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 24, 2020 at 7:48pm

आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर "  साहेब , आदाब , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए दिल से शुक्रगुज़ार हूँ | उर्दू के कई शब्दों में मुझे दिक्कत रहती है , लहज़े से कुछ लफ्ज़ पुल्लिंग होते हुए स्त्रीलिंग होते हैं और कुछ स्त्रीलिंग होते हुए पुल्लिंग | ध्यान आकर्षित करने के लिए हार्दिक आभार | 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 24, 2020 at 5:46pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब ।

मुकम्मल ग़ज़ल शानदार हुई है, शेअ'र दर शेअ'र दाद पेश करता हूँ ।

अंतिम मिसरे में शायद लिपिकीय त्रुटि हो गयी है। मीज़ान यानि तराज़ू  शब्द  पुल्लिंग है न कि स्त्रीलिंग।

'तुरंत' ऐसी कहीं है तो कोई मीज़ान ले आये के स्थान पर 'तुरंत' ऐसा कहीं है तो कोई मीज़ान ले आये उचित होगा ।सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service