Added by मोहन बेगोवाल on January 14, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )
ख़त्म इकबाल-ए-हुकूमत* को न समझे कोई
और लाचार अदालत को न समझे कोई
***
मीर सब आज वुजूद अपना बचाने में लगे
आम जनता की ज़रूरत को न समझे कोई
***
ख़ून के रिश्ते भुला देती है जो इक पल में
हैफ़ !भारत की सियासत को न समझे कोई
***
जिस्म को छू लिया और इश्क़ मुकम्मल समझा
इतना आसाँ भी महब्बत…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 14, 2019 at 12:30pm — 11 Comments
लडकी ने साहस किया I एक दिन ट्रेन से उतरकर उसने लडके से कहा -‘आप को ऐतराज न हो तो हम साथ-साथ काफी पी सकते हैं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 13, 2019 at 8:30pm — 5 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 22
कैसे बनता है कोई शख़्स तमाशा देखो
आओ बैठो यहाँ पे हश्र हमारा देखो
कैसे हिन्दू को किया दफ़्न वहाँ लोगों ने
एक मुस्लिम को यहाँ कैसे जलाया देखो
जिस तरह लूटा था दिल्ली को कभी नादिर ने
उसने लूटा है मेरे दिल का ख़ज़ाना देखो
आदमी वो नहीं होता जो दिखा करता है
जो नहीं दिखता हो जैसा उसे वैसा देखो
नूर से जल के, फ़लक से कोई साज़िश करके
चाँद को कैसे सितारों…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on January 13, 2019 at 7:30pm — 18 Comments
जाने कितने बढ़े हुए हैं
दुष्ट, अधर्मी, व्यभिचारी
पग-पग पर धोखा देते जो
लोभी, कृपण,अनाचारी
इनकी घातों का कब तक,अब
बोझ सहन करना होगा?
कलियुग के इन दुष्ट,पापियों
का, कुछ तो करना होगा
अन्यायी, पापाचारी जो
कामी, भ्रष्ट, दुराचारी जो
इनकी कुटिल कुचालों का
प्रतिरोध हमे करना होगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on January 11, 2019 at 6:30pm — 3 Comments
(ताटंक छन्द)
इज्जत देना जब सीखोगे, इज्जत खुद भी पाओगे,
नेक राह पर चलकर देखो, कितना सबको भाओगे।
शब्द बाँधते हर रिश्ते को, शब्द तोड़ते नातों को।
मधुर भाव जो मन में पनपे, बहरा समझे बातों को।
तनय सुता वनिता माता सब,भूखे प्रेम के होते हैं,
कड़वाहट से व्यथित होय ये, आँसू पीकर सोते हैं।
इज्जत की रोटी जो खाते, सीना ताने जीते हैं,
नींद चैन की उनको आती, अमृत सम जल पीते हैं।
नारी का गहना है इज्जत, भावों की वह…
ContinueAdded by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 10, 2019 at 4:30pm — 3 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
आके तेरी निगाह की हद में मिला सुकूँ
हल्क़े को वस्ते बूद की ज़द में मिला सुकूँ //१
थी रायगाँ किसी भी मुदावे की जुस्तजू
दिल के मरज़ को दर्दे अशद में मिला सुकूँ //२
आशिक़ को अपनी जान गवाँ कर भी चैन था
जलकर अदू को पर न हसद में मिला सुकूँ //३
दामे सुख़न की अपनी हिरासत को तोड़कर
लफ़्ज़ों को ख़ामुशी की सनद में मिला सुकूँ…
Added by राज़ नवादवी on January 10, 2019 at 1:04am — 10 Comments
(२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
***
पांचों घी में रहती है जब सरकारी कारिन्दों की
कौन सुने फ़रियाद अँधेरी नगरी के बाशिन्दों की
***
टूटी है मिजराबें फिर भी साज़ बजाना पड़ता है
बे-सुर होते सुर तो इसमें ग़ल्ती क्या साजिन्दों की
***
फेंक दिया करते कचरे में क्या क्या लोग पुलिंदों में
असली कीमत आज समझते कचराबीन पुलिंदों की …
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 9, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
Added by PHOOL SINGH on January 9, 2019 at 3:00pm — 3 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on January 9, 2019 at 2:34pm — 5 Comments
बाद ए सबा
पूछा जो किसी ने बावरी बाद ए सबा से
उफ़्ताँ व खेज़ाँ है तू ए बावली हवा
टकराई है तू बारहा बेरहम दीवारों से
खटखटाए हैं कितने बंद दरवाज़े भी तूने
आज बता तो ज़रा तेरी मंज़िल कहाँ है…
ContinueAdded by vijay nikore on January 9, 2019 at 1:05pm — 4 Comments
2122/1212/22
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हार तूफ़ान से न मानी है
कश्ती ने तैरने कि ठानी है
मेरी पलकों पे ये जो पानी है
ऐ मुहब्बत तेरी निशानी है
हमने माना बहुत पुरानी है
पर बहुत ख़ूब ये कहानी है
दिल पे चस्पां है जो नही मिटती
यूूँ तेरी हर शबीह फानी है
राख मैं कर चुका तेरे ख़त को
याद लेकिन मुझे ज़बानी है
हर किसी दर पे ये नही झुकती
मेरी दस्तार ख़ानदानी है
पहली बारिश है तिफ़्ल बन…
Added by Gajendra shrotriya on January 9, 2019 at 11:59am — 16 Comments
(१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२ )
***
न हसरतों से ज़ियादा रखें लगाव कभी
वगरना क़ल्ब में मुमकिन है कोई घाव कभी
***
इमारतें जो बनाते जनाब रिश्तों की
उन्हें भी चाहिए होता है रखरखाव कभी
***
हयात का ये सफर एक सा कहाँ होता
कभी ख़ुशी तो मिले ग़म का भी पड़ाव कभी
***
न इश्क़ की भी ख़ुमारी सदा रहे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 8, 2019 at 7:00pm — 17 Comments
देहलीज़ - लघुकथा -
दिल्ली में जनवरी की कयामत की सर्दी वाली रात। रात के ग्यारह बजे के लगभग घर की डोर बेल बजी। घर में दो बुजुर्ग प्राणी। दोनों ही सत्तर पार। आमतौर पर नौ बजे तक रजाई में घुस जाते थे। गहरी नींद में थे। बार बार घंटी बजी तो शर्मा जी की आँख खुली तो उठकर द्वार खोलने चल दिये। खटर पटर की आवाज से तथा लाइट जलने से मिसेज शर्मा भी आँख मलते हुए उठ बैठी।
"सुनो जी, तुम रुको, मैं खोलती हूँ।"
वे थोड़ी मजबूत थीं। शर्मा जी दुबले पतले और बीमार भी थे। वे रुक गये। मिसेज शर्मा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 8, 2019 at 6:14pm — 10 Comments
रेशमा की नजर फिर उस लड़की पर पड़ी जो कल ही यहाँ लायी गई थी. बेहद घबराई और लगातार रोती हुई वह लड़की देखने में तो किसी गरीब घर की ही लगती थी लेकिन पढ़ी लिखी भी लगती थी. उससे रहा नहीं गया तो वह उसकी तरफ बढ़ी और पास जाकर उसने पूछा "क्या नाम है रे तेरा और कहाँ से आयी है? यहाँ रोने धोने से कुछ नहीं होता, जितनी जल्दी सब मान लेगी, उतना बढ़िया. वर्ना तेरी दुर्गति ही होनी है यहां पर".
लड़की ने उसकी तरफ देखा, रेशमा की आँखों का सूनापन देखकर वह सिहर गयी. उसने रेशमा का हाथ पकड़ा और फफक पड़ी "मुझे यहाँ से बचा…
Added by विनय कुमार on January 8, 2019 at 5:52pm — 12 Comments
३ क्षणिकाएं :
तृप्त हो गए
चक्षु
पिघला कर
एक पाषाण से बोझ को
हृदय की
स्मृति श्रृंखला से
.......................
मृत्यु
किसी जीवंत स्वप्न का
यथार्थ है
ज़िंदगी
यथार्थ का
आभास है
प्रीत
आभास में निहित
विश्वास है
...............................
कुछ टूटा
कुछ छूटा
प्रीत पथ के
अंतस से
वेदना साकार हुई
बुत बनी आँखों से …
Added by Sushil Sarna on January 8, 2019 at 2:30pm — 10 Comments
2122 2122 212
आज उनका है ज़माना चुप रहो ।
गर लुटे सारा खज़ाना चुप रहो ।।
क्या दिया है पांच वर्षों में मुझे ।
मांगते हो मेहनताना चुप रहो ।।
रोटियों के चंद टुकड़े डालकर ।
मेरी गैरत आजमाना चुप रहो ।।
मंदिरों मस्ज़िद से उनका वास्ता ।
हरकतें हैं वहिसियाना चुप रहों ।।
लुट गया जुमलों पे सारा मुल्क जब ।
फिर नये सपने दिखाना चुप रहो ।।
दांव तो अच्छे चले थे जीत के ।
हार पर अब…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on January 8, 2019 at 12:30pm — 10 Comments
2122 2122 2122 212
प्यार का तुमने दिया मुझको सिला कुछ भी नहीं,
मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं।
कोख में ही मारकर मासूम को बेफ़िक्र हैं,
फिर भी अपने ज़ुर्म का जिनको गिला कुछ भी नहीं।
राह जो खुद हैं बनाते मंजिलों की चाह में ,
मायने उनके लिए फिर काफिला कुछ भी नहीं।
हौंसले रख जो जिये पाये सभी कुछ वे यहाँ,
बुज़दिलों को मात से ज्यादा मिला कुछ भी नहीं।
ज़िंदगी चाहें तो बेहतर हम बना सकते यहाँ,
ज़ीस्त में…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 7, 2019 at 8:02pm — 13 Comments
मैं सक्षम, हूँ विलक्षण
निर्मल करता, विचलित मन
पुलकित कर तेरे, तन मन
सुगन्धित करता, वन उपवन
प्रकृति का श्रृंगार कर
महक का प्रसार कर
चिंतन करता हर एक क्षण
खुशियाँ देता मैं पल पल
न्योछावर अपना जीवन कर
कभी मंदिर, कभी जमी में
कभी रेंगता धूलि में
जीवन की प्रवाह ना कर
खुशियाँ बाटता हर एक क्षण
कभी कंठ की शोभा बनता
कभी बढाता शोभा शव
कभी गजरा नारी बनता
कभी में देता सेज सजा
क्षण भर के…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 7, 2019 at 4:30pm — 4 Comments
कलम ....
कहाँ
चल सकती है
बिना बैसाखी के
कागज़ पर
कलम
पडी रहती है
निर्जीव सी
किसी के इंतज़ार में
कलमदान में
कलम
लेकिन
ये न हो तो
आसमान की ऊंचाईयों को
ज़मीन नहीं मिलती
शब्दों को पंख नहीं मिलते
सोच को साकार का माध्यम नहीं मिलता
भाव अन-अंकुरित ही रह जाते हैं
यथार्थ में देखा जाए तो
कलम को बैसाखी की नहीं
अपितु
भाव
बिना कलम की बैसाखी के
मृत समान होते…
Added by Sushil Sarna on January 7, 2019 at 2:46pm — 2 Comments
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