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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ९१

२२१ २१२१ १२२१ २१२

आके तेरी निगाह की हद में मिला सुकूँ
हल्क़े को वस्ते बूद की ज़द में मिला सुकूँ //१

थी रायगाँ किसी भी मुदावे की जुस्तजू
दिल के मरज़ को दर्दे अशद में मिला सुकूँ //२

आशिक़ को अपनी जान गवाँ कर भी चैन था
जलकर अदू को पर न हसद में मिला सुकूँ //३

दामे सुख़न की अपनी हिरासत को तोड़कर
लफ़्ज़ों को ख़ामुशी की सनद में मिला सुकूँ //४

बाग़े जहाँ में जीके भी ख़ुशियाँ न थीं नसीब
इंसान को न मरके लहद में मिला सुकूँ //५

हस्ती ये जानती है बख़ूबी तहे शऊर
दिल को न आ के दामे ख़िरद में मिला सुकूँ //६

सीने को भी पता है कि औक़ाते मर्ग पे
अन्फ़ास को बक़ा-ए-अबद में मिला सुकूँ //७

नैरंगी ए नज़र में भटकता था उम्र भर
ज़ाहिद हुआ तो अपनी ही हद में मिला सुकूँ //८

ऐसा नहीं कि हुस्ने सितमगर ही ख़ुश हुआ
मुझको भी उसकी आदते बद में मिला सुकूँ //९

ख़ुश हूँ मैं 'राज़' होके फ़ना उसके प्यार में
जीकर जो मिल सका न, लहद में मिला सुकूँ //१०

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

हल्क़ा- परिधि, घेरा, मंडल; वस्ते बूद- अस्तित्व का मध्य; ज़द- निशाना, गोद; रायगाँ- व्यर्थ; दर्दे अशद- तीव्र पीड़ा; अदू- दुश्मन, प्रतिद्वंदी; हसद- ईर्ष्या, डाह, जलन; दामे सुख़न- शब्दों/ ध्वनि का बंधन; लहद- कब्र; तहे शऊर- चेतना की तह/ तल में; दामे खिरद- बुद्धि का पाश/ फंदा; औक़ाते मर्ग- मृत्यु के क्षण/ समय; अन्फ़ास- साँसें; बक़ा-ए-अबद- सतत मुक्ति की अवस्था; नैरंगी ए नज़र- दृष्टि में जनित माया; ज़ाहिद- संयमी, विरक्त; लहद- कब्र

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Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:08am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:07am

आदरणीय भाई महेंद्र कुमार साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:07am

आदरणीय अजय तिवारी साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2019 at 8:47pm

आ. भाई राजनवादवी जी, अच्छी गजल हुयी है। हार्दिक बधाई ।

Comment by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 11:38am

बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय राज़ नवादवी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Ajay Tiwari on January 15, 2019 at 6:40pm

आदरणीय राज़ साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by राज़ नवादवी on January 15, 2019 at 12:38am

आदरणीय रवि शुक्ला साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Ravi Shukla on January 14, 2019 at 10:36am

आदरणीय राज जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं पढ़ कर अच्छा लगा दिली बधाई पेश करता हूं

Comment by राज़ नवादवी on January 10, 2019 at 8:39pm

आदरणीय समर कबीर साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई से मेरा लिखना कामयाब हुआ. तहेदिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Samar kabeer on January 10, 2019 at 8:30pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

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