Added by Sushil Sarna on June 20, 2020 at 9:00pm — 2 Comments
ग़ज़ल (2122 1122 1122 22 /112 )
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मीर तक काश कभी दर्द का मंज़र पहुँचे
और मज़मून-ए-शिकायत की झलक भर पहुँचे
**
आज किस हाल में है देख रिआया रहती
ग़म ज़रा उसका किसी दिल के तो अंदर पहुँचे
**
सिर्फ़ बातें ही किया करते गुहर लाने हैं
क्या कभी आप तह-ए-आब-ए-समंदर पहुँचे
**
जो घरों में हैं दुआ है कि सभी शाद रहें
और बिछड़ा है जो भटका है जो वो घर…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 20, 2020 at 12:30am — 4 Comments
तरह तरह के दिवस मनाए जाते। कोई दिन पर्यावरण का होता,तो कोई बाल दिवस आदि आदि।शोर होते,जश्न भी। और दिवस चाहे जैसे भी लगे हों,पर बाल दिवस की चर्चा सुन कुछ शब्द कसमसाए।मुखर होने लगे।ध्वनि फूटी -
' हम कहने के माध्यम हैं।'
' हम तुम्हारे माध्यम हैं।' दूसरी आवाजें आने लगीं।
शब्द जैसे चरमराने लगे। टूटन का अहसास हुआ।वे कराह ते हुए बोले -
' तुम लोग कौन हो?'
' खूब,बहुत खूब!अपने निर्माताओं को ही बिसरा बैठे तुमलोग।' ताना भरी आवाजें गूंजने लगीं।
' निर्माता?हमारे ?' शब्द चौंके।
'…
Added by Manan Kumar singh on June 19, 2020 at 9:37pm — 3 Comments
Added by Anvita on June 18, 2020 at 9:49pm — 6 Comments
प्रेम पर कुछ क्षणिकाएँ :
प्रेम
ह्रदय में इस तरह
ज्यूँ नीर में
नीर तरंग
................
प्रेम
अवचेतन मन की
पराकाष्ठा
......................
प्रेम
अर्पण
समर्पण
..................
प्रेम
अबोले भावों का
मूक प्रदर्शन
...................
प्रेम
एक पावन
प्रतिकर्ष
मिलन का
.........................
प्रेम
एक…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2020 at 9:21pm — 4 Comments
2122 2122 212
दीप बन मैं ही जला हूँ रात-दिन
रोशनी खातिर लड़ा हूँ रात-दिन।1
जब कभी मन का अचल पिघला जरा
नेह बन मैं ही झरा हूँ रात-दिन।2
जब समद निज आग से उबला कभी
मेह बन मैं ही पड़ा हूँ रात-दिन।3
कामनाएँ जब कुपित होने लगीं
देह बन मैं ही ढहा हूँ रात-दिन।4
व्योम तक विस्तार का पाले सपन
यत्न मैं करता रहा हूँ रात-दिन।5
आखिरी दम का सफर जब सालता
गीत बन मैं ही बजा हूं रात - दिन।6
"मौलिक व…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on June 18, 2020 at 5:11pm — 4 Comments
हासिल ग़ज़ल
221 2121 1221 212
बेचैनियों का दौर बढा कर चली गयी ।
महफ़िल में वो बहार जब आ कर चली गयी ।।
उसकी मुहब्बतों का ये अंदाज़ था नया ।
अल्फ़ाज़ दर्दो ग़म के छुपाकर चली गयी।।
उसको कहो न बेवफ़ा जो मुश्क़िलात में ।
कुछ दूर मेरा साथ निभाकर चली गयी ।।
साक़ी भुला सका न उसे चाहकर भी मैं ।
जो मैक़दे में जाम पिलाकर चली गयी ।।
हैरां थी मुझ में देख के चाहत का ये शबाब…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2020 at 1:37pm — No Comments
( 2122 2122 212 )
ज़िंदगी में तेरी हम शामिल नहीं
तूने समझा हमको इस क़ाबिल नहीं
जान मेरी कैसे ले सकता है वो
दोस्त है मेरा कोई क़ातिल नहीं
सारी तैयारी तो मैंने की मगर
जश्न में ख़ुद मैं ही अब शामिल नहींं
हमको जिस पर था किनारे का गुमाँ
वो भंवर था दोस्तो साहिल नहीं
सोच कर हैरत ज़दा हूँ दोस्तो
साँप तो दिखते हैं लेकिन बिल नहीं
देखने में है तो मेरे यार - सा
उसके होटों के किनारे तिल…
Added by सालिक गणवीर on June 17, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
22 22 22 22 22 22
चिकनी बातों में आ जाना अच्छा है क्या?
बेमतलब खुद को बहलाना अच्छा है क्या??1
मूंछों पर दे ताव चले हर वक्त महाशय,
टेढ़ी पूंछों को सहलाना अच्छा है क्या?2
गाओ अपना गीत,करो धूसर वैरी को
कटती गर्दन तब मुसुकाना अच्छा है क्या?3
देखा है दुनिया ने अपना पौरुष पहले
नासमझों के गर लग जाना अच्छा है क्या?4
बाजार बनी जिसके चलते धरती अपनी
उस कातिल से हाथ मिलाना अच्छा है क्या?5
तुम बंद…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on June 17, 2020 at 6:47pm — 2 Comments
ग़ज़ल(1212 1122 1212 22 /112 )
अगर है जीना तो फ़िक्रों के कारवाँ से निकल
हिसार का जो बनाया उस आसमाँ से निकल
कहा ख़ुशी ने कि हूँ इंतज़ार में कब से
है मेरी बारी अरे ग़म तू इस मकाँ से निकल
अमीर है तो क़ज़ा क्या न आएगी तुझको
फ़ना न होगा तू ऐसे बशर गुमाँ से निकल
ख़ुदा ग़रीब की ख़ातिर तू अश्क बन जा मेरे
दुआ का रूप ले मेरी सदा ज़बाँ से निकल
बिना पसीना बहाये नसीब बनता नहीं
नुज़ूमी और लकीरों के साएबाँ से निकल
हयात लेती है जो भी वो…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 17, 2020 at 4:00pm — 2 Comments
कहते हैं मानसून अब
देगा बहुत सुकून
कैसे सहेजेगी भला
यह बारिश की बूँद?
ताल-तलैया , झील , नद
चढ़ें , अतिक्रमण भेंट
दोहन होता प्रकृति का
अनुचित हस्तक्षेप
करें बात जो न्याय की
वही कर रहे घात
करनी कथनी से अलग
ज्यों हाथी के दाँत
मौलिक एवंअप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on June 17, 2020 at 12:43pm — 2 Comments
यथार्थ दोहे :
देह जली शमशान में, सारे रिश्ते तोड़।
राहें तकती रह गईं,अंत चला सब छोड़।।1
अंत मिला बेअंत में, हुई जीव की भोर।
भौतिक तृष्णा मिट गई,मिटे व्यर्थ के शोर।।2
व्यर्थ देह से नेह है, व्यर्थ देह अभिमान।
तोड़ देह प्राचीर को,उड़ जाएंगे प्रान।।3
थोड़ी- थोड़ी रैन है, थोड़ी-थोड़ी भोर।
थोड़ी सी है ज़िंदगी, थोड़ा सा है शोर ।।4
कितना टाला आ गई, देखो आखिर मौत।
ज़ालिम होती है बड़ी, साँसों की ये सौत…
Added by Sushil Sarna on June 16, 2020 at 9:30pm — 4 Comments
बहरे मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
221 / 2121 / 1221 / 212
बद-हालियों का फिर वही मंज़र है और मैं
इक आज़माइशों का समंदर है और मैं [1]
अरमान दिल के दिल में घुटे जा रहे हैं सब
महरूमियों का एक बवंडर है और मैं…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on June 16, 2020 at 11:54am — 17 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
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परिंदा तिफ़्ल हो उसके भी पर तो रहते हैं
ग़रीब हो भले ख़्वाबों में घर तो रहते हैं
**
भले ही ज़िंदगी हासिल हुई अमीरों सी
मगर उन्हें भी कुछ अन्जाने डर तो रहते हैं
**
हुआ है बंद कभी एक रास्ता मत डर
खुले कहीं न कहीं और दर तो रहते हैं
**
मिला न एक सुबू गाँव में तमन्ना का
भले ही हसरतों के कूज़ा-गर तो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 16, 2020 at 1:30am — 16 Comments
तू मेरी साँसों का परिमल, मैं तेरा उच्छ्वास I
बन उपवन भौरे गुंजन सब
देते है अवसाद I
तृप्ति मुझे मिल जाती है यदि
थोड़ा मिले प्रसाद I
अनुभव के पन्नों में बिखरा, रागायित इतिहास I
जाने कहाँ तिरोहित हैं सब
मान और सम्मान I
घुल जाता है तेरे सम्मुख
पुरुषोचित अभिमान I
अग्नि-खंड यह बन जाता है, मुग्ध प्रणय का दास I
उल्काओं को धूल बनाने
की है तुममें शक्ति I
वही शक्ति…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2020 at 7:50pm — 3 Comments
भूल कर सब प्रेम करुणा त्याग तप बलिदान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा
राम सा आदर्श मानव औ' भरत सा भ्रात मैं हूँ
दुश्मनों के वक्ष पर करता रहा आघात मैं हूँ
मैं प्रतिज्ञा भीष्म की हूँ, मैं युधिष्ठिर धर्मकारी
पार्थ का गांडीव मैं हूँ, मैं सुदर्शन चक्र-धारी
शौर्य है श्रृंगार मेरा, रण-विजय ही गान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
भूमिका मेरी यहाँ बेटा, पिता, पति, भ्रात की है
माप रखता जो हमेशा…
Added by नाथ सोनांचली on June 15, 2020 at 11:30am — 13 Comments
इस दुनिया में
हर आदमी की
अपनी एक दुनिया होती है।
वह इस दुनिया में
रहते हुए भी अपनी
उस दुनिया में रहता है।
उसी में रह कर रहता है ,
उसी में सोचता है ,
उसी में जीता है।
**************************
वो बेहद खुशनसीब हैं
जो रिश्तों को जी लेते हैं ,
वफ़ा के लिए जी लेते हैं ,
वफ़ा के लिए मर जाते हैं ,
बाकी तो सिर्फ ,इन्हें
निभाते-निभाते मर जाते हैं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2020 at 9:30am — 9 Comments
हे रूपसखी हे प्रियंवदे
हे हर्ष-प्रदा हे मनोरमे
तुम रच-बस कर अंतर्मन में
अंतर्तम को उजियार करो
यह प्रणय निवेदित है तुमको
स्वीकार करो, साकार करो
अभिलाषी मन अभिलाषा तुम
अभिलाषा की परिभाषा तुम
नयनानंदित - नयनाभिराम
हो नेह-नयन की भाषा तुम
हे चंद्र-प्रभा हे कमल-मुखे
हे नित-नवीन हे सदा-सुखे
उद्गारित होते मनोभाव
इनको ढालो, आकार करो
यह प्रणय निवेदित है तुमको
स्वीकार करो साकार करो
मैं तपता…
ContinueAdded by आशीष यादव on June 15, 2020 at 4:30am — 10 Comments
थोड़ा सा आसमान ....
चुरा लिया
सपनों की चादर से
थोड़ा सा
आसमान
पहना दिया
उम्र को
स्वप्निल परिधान
लक्ष्य रहे चिंतित
राह थी अनजान
प्रश्नों के जंगल में
उलझे समाधान
पलकों की जेबों में
अंबर को डाला
अधरों पर मेघों की
बरखा को पाला
व्याकुलता की अग्नि में
जलते अरमान
भोर से पहले हुआ अवसान
धरती पर अंबर की
नीली चुनरिया
पंछी के कलरव की
बजती पायलिया
व्योम क्यूँ…
Added by Sushil Sarna on June 14, 2020 at 9:35pm — 6 Comments
212 /1212 /2
जो नज़र से पी रहे हैं
बस वही तो जी रहे हैं
ये हमारा रब्त देखो
बिन मिलाए पी रहे हैं
कोई रिन्द भी नहीं हम
बस ख़ुशी में पी रहे हैं
इक हमें नहीं मयस्सर
गो सभी तो पी रहे हैं
क्या पिलाएंगे हमें जो
तिश्नगी में जी रहे हैं
वो हमें भी तो पिला दें
जो बड़े सख़ी रहे हैं
बेख़ुदी की ज़िन्दगी है
बेख़ुदी में पी रहे हैं …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 14, 2020 at 9:00pm — 17 Comments
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