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थोड़ा सा आसमान ....

थोड़ा सा आसमान ....

चुरा लिया
सपनों की चादर से
थोड़ा सा
आसमान

पहना दिया
उम्र को
स्वप्निल परिधान
लक्ष्य रहे चिंतित
राह थी अनजान
प्रश्नों के जंगल में
उलझे समाधान


पलकों की जेबों में
अंबर को डाला
अधरों पर मेघों की
बरखा को पाला
व्याकुलता की अग्नि में
जलते अरमान
भोर से पहले हुआ अवसान

धरती पर अंबर की

नीली चुनरिया
पंछी के कलरव की

बजती पायलिया
व्योम क्यूँ फिर भी
लगता परेशान
ये कैसा है जीवन में
विधि का विधान
रातें भी उसकी
सपने भी उसके
यथार्थ के ख़ंजर
स्वप्न लहूलुहान
क्या हुआ
चुरा लिया जो 
सपनों की चादर से
थोड़ा सा
आसमान

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on June 17, 2020 at 9:22pm

आदरणीय  Samar kabeer  जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 17, 2020 at 9:22pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 17, 2020 at 9:22pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on June 15, 2020 at 6:48pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 15, 2020 at 2:51pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आदाब। सुंदर रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें। 

Comment by नाथ सोनांचली on June 15, 2020 at 11:51am

ये कैसा जीवन मे है विधि का विधान,, वाह वाह

आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन। हरबार की तरह सोचने को विवश करती उम्दा रचना पर बधाई स्वीकार कीजिये।

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