हे रूपसखी हे प्रियंवदे
हे हर्ष-प्रदा हे मनोरमे
तुम रच-बस कर अंतर्मन में
अंतर्तम को उजियार करो
यह प्रणय निवेदित है तुमको
स्वीकार करो, साकार करो
अभिलाषी मन अभिलाषा तुम
अभिलाषा की परिभाषा तुम
नयनानंदित - नयनाभिराम
हो नेह-नयन की भाषा तुम
हे चंद्र-प्रभा हे कमल-मुखे
हे नित-नवीन हे सदा-सुखे
उद्गारित होते मनोभाव
इनको ढालो, आकार करो
यह प्रणय निवेदित है तुमको
स्वीकार करो साकार करो
मैं तपता थल तुम हो छाया
मैं सदा दीन तुम हो माया
जब-जब लिक्खा, तुमको लिक्खा
जब-जब गाया, तुमको गाया
हे सुमुखि-केशिनी-रूपवते
हे मधुर-भाषिता, मुग्ध-मते
इस विस्तारित आकर्षण का
कुछ तो स्नेहिल आधार करो
यह प्रणय निवेदित है तुमको
स्वीकार करो साकार करो
आशीष यादव
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रवि शुक्ला सर, सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी प्रणाम, सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीया अन्विता जी प्रणाम। सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आद0 आशीष यादव जी सुंंदर गीत का सृजन हुआ है । इस सृजन पर बधाई स्वीकार कीजिये।
आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन
बेहद खूबसूरत गीत सृजन हुआ है । इस सृजन पर बधाई स्वीकार कीजिये।
आदरणीय श्री Samar kabeer सर,
बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय श्री अमीरुद्दीन 'अमीर' सर,
सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जनाब आशीष यादव जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
जनाब आशीष यादव जी, आदाब।
सुंदर गीत की रचना हुई है बधाई स्वीकार करें।
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