बहरे मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
221 / 2121 / 1221 / 212
बद-हालियों का फिर वही मंज़र है और मैं
इक आज़माइशों का समंदर है और मैं [1]
अरमान दिल के दिल में घुटे जा रहे हैं सब
महरूमियों का एक बवंडर है और मैं [2]
बैठा हूँ इन्तेज़ार में ढय जाये ख़ुद-ब-ख़ुद
दिल में तुम्हारी याद का खंडर है और मैं [3]
आँखों में धुँधले धुँधले से फूलों के ख़्वाब हैं
काँटों भरा हयात का बिस्तर है और मैं [4]
मुझ नातवाँ से बोझ ये उठ पाएगा कहाँ
कार-ए-जहाँ पहाड़ बराबर है और मैं [5]
मुझको सज़ा मिलेगी सदाक़त की बार बार
हर आदमी के हाथ में पत्थर है और मैं [6]
मक़तल में खेंच लाया है फिर से मुझे ये दिल
क़ातिल भी है वही वही ख़ंजर है और मैं [7]
सुनता हूँ दश्त में भी मैं शहरों का शोर-ओ-ग़ुल
शोरिश ये मेरे ज़ह्न के अंदर है और मैं [8]
कब से सफ़र में हूँ दिल-ए-बे-मुद्दआ लिए
'शाहिद' ये मेरे पाँव का चक्कर है और मैं [9]
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
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कठिन शब्दों के अर्थ:
Comment
आदरणीय भसीन जी वाह बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हूं है आपकी । हर शेर लाज़वाब । मुबारक़बाद कबूल कीजियेगा ।
सादर ।
आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और मुबारकबाद के लिए बेहद मशकूर-ओ-ममनून हूँ जनाब!
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब, आप की नवाज़िश और हैसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ! ग़ज़ल तक आने के लिए आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय रवि भसीन साहिब
बेहतरीन अश'आर से लबालब भरी इस उम्दा ग़ज़ल के लिए मेरी ओर दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें. सादर
आद0 रवि भसीन शाहिद जी सादर अभिवादन। आप लोग जीवन के हर फलसफे को जिस तरह अशआर के रूप में ढाल कर लाते हैं कि मन मुग्ध हो जाता है। बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर। हर शैर अपने आप में मुकम्मल
आदरणीय Rupam kumar 'मीत' भाई, आपकी मुबारकबाद और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
आदरणीय आशीष यादव साहिब, आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! सादर
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आदाब! आपकी दाद और मुबारकबाद के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय!
वाह क्या कमाल की गजल कही है आपने। बधाई स्वीकार कीजिए।
मुहतरम रवि भसीन 'शाहिद' साहिब, आदाब।
बहुत उम्द: ग़ज़ल हुई है, शेअ'र दर शेअ'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ । सादर ।
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