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खजाना खाली है

कहती है सरकार ,खजाना खाली है
बेकल बेरोजगार खजाना खाली है

बिना विभाग के मंत्री पद निर्माण करें ;
जनता के लिए यार ,खजाना खाली है .

अपने हक जो मांगे उन को पीटो बस;
कर लो गिरफ्तार ,खजाना खाली है .

सी .एम् पुत्र तो सी. एम् ही बन जाना है
काहे की तकरार ,खजाना खाली है .

वोटें हैं ,मेहनत हैं ,या फिर जेबें हैं ;
इन की क्यों सोचें यार ,खजाना खाली है .


दीप जीर्वी

Added by DEEP ZIRVI on July 11, 2012 at 7:48pm — 9 Comments

ज्ञान का प्रकाश दे जो दीप वो जलाइए

देश हित वाली बात हिल-मिल सुनाइए
ज्ञान का प्रकाश दे जो दीप वो जलाइए

देश पर विदेशियों की रीत न चलाइए
मान सम्मान अपने देश का बचाइये

अपना संस्कारों वाला देश नव बनाइये
रीत औ रिवाजों वाले गीत अब गाइए

छोटों को गरीबों को कभी मत सताइए
हो सके तो उनको भी गले से लगाइए

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

दिल लगाने को तुला है

नापाक इरादे से दिल लगाने को तुला है,

इक शक्स मेरी हस्ती मिटाने को तुला है,

  

हजारों किये हैं जुर्म मगर सजा कोई नहीं,

मुझको भी गुनाहों में फ़साने को तुला है,



सौदागर है, दिलों का व्यापार करता है,

धंधा है यही वो जिसको, बढ़ाने को तुला…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 2:29pm — 10 Comments

"ज़िन्दगानी और है!"

**********************************

दिख रही वो ज़िन्दगानी और…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 11, 2012 at 1:52pm — 19 Comments

सितमगर

तकदीर पर विशवास तो नही मुझे ,

आये क्यों हो मेरी जिंदगी में तुम ,

निभाया सदा साथ तुम्हारा लेकिन ,

दर्देदिल के सिवा क्या मिला मुझे|

.........................................

भुला कर हमने हर सितम तुम्हारे ,

साथ निभाने का क्यों वादा किया ,

हद हो गई अब ज़ुल्मो सितम की ,

प्यार में तो हमने धोखा ही खाया |

.........................................

निभा न सके जब तुम वफ़ा को ,

चुप रहे फिर भी खातिर तुम्हारी ,

दफना दिया सीने में ही दर्द को ,

उफ़ तक न की…

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Added by Rekha Joshi on July 11, 2012 at 1:33pm — 17 Comments

तेरा नाम भूल जाऊँ

बस दो घूंट पियूँ , और सारा जाम भूल जाऊँ

कि तुझे याद करूँ, और तेरा नाम भूल जाऊँ



जीवन के सफ़र में कहीं, तू मिले जो दुबारा,

तेरा हाल पूछूँ, और क्या था काम भूल जाऊँ,

मिलने को तुझसे, जब भी सजाऊँ कोई रात,

मारे ख़ुशी के मैं तो वही, शाम…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 12:00pm — 8 Comments

शहरों में घर रूम रूम के बाबाजी

सावन आया झूम झूम के बाबाजी

बजे  नगाड़े  धूम धूम  के बाबाजी



छोरे ने छोरी के गाल भिगो डाले

चूम चूम के, चूम चूम के बाबाजी



घाट घाट का पानी पीने वालों ने

कपड़े पहने लूम लूम के बाबाजी



आँगन,वेह्ड़ा और वरांडा मत ढूंढो…

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Added by Albela Khatri on July 10, 2012 at 9:00pm — 18 Comments

"स्वप्न"

"स्वप्न"



सूदखोर नहीं मानते

आते हैं हाथ जोड़ के

देते हैं कर्ज

चंद दिनों के बाद

दोगुना वसूल करते हैं

सूद

ले जाते हैं लूट के सारे सुन्दर स्वप्न

छाती फुला के अकड़…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 10, 2012 at 7:07pm — 6 Comments

मुझे इल्जाम मत देना



मै

इक आवाज हूँ.

जब किसी मजलूम के

मुँह से निकलूँ, 

मुझे इल्जाम मत देना.

मै...

जब किसी की

सिसकी बन

आँखों से छलकूँ

मुझे इल्जाम मत देना.

मै...

जब किसी के

दर्द में

कराह बन जाऊं,

मुझे इल्जाम मत देना.

मै...

जब किसी के

दिल से

आह बन टपकूँ,

मुझे इल्जाम मत देना.

मै...

जब किसी के

चहरे पर

ख़ुशी बन चमकूँ,

मुझे इल्जाम मत देना.

मै..................



वीणा…

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Added by Veena Sethi on July 10, 2012 at 5:00pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अश्क हथेली पे

वो ख़्वाब उज़ागर क्यूँ  किये हमने 

सौ दर्द  ज़िगर को क्यूँ दिए हमने||

 जब करनी थी बातें कई हज़ार

वो लब  चुपके से क्यूँ सिये हमने||

ख़्वाब  बुनते रहे वो ही गलीचा 

 तलवे ये जख्मी क्यूँ किये हमने ||

 ता उम्र करते रहे  उन से  वफ़ा

ये जफ़ा के घूँट  क्यूँ पिए हमने ||

 दे के जहान  भर की दुआ उनको

मिटा दिए सुख के क्यूँ ठिये हमने  

 अश्क तो पलकों में ज़ब्त हो…

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Added by rajesh kumari on July 10, 2012 at 12:30pm — 22 Comments

मास है ये श्री शिव महेश का बाबाजी





क्या बतलाऊं हाल देश का बाबाजी

झगड़ा, टंटा, हठ, क्लेश का बाबाजी



माल स्वदेशी कौन ख़रीदे  भारत में

सबको चस्का है विदेश का बाबाजी



कालिख भ्रष्टाचार की किस दिन जायेगी

धोला हो गया रंग केश का बाबाजी 



पाखंडियों  ने  इतना…

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Added by Albela Khatri on July 10, 2012 at 12:15pm — 18 Comments

किस ज़ुर्म की

किस ज़ुर्म की
 
मुझको मेरे किस ज़ुर्म की सजा देते हो
आप तो मेरे अश्कों से भी मज़ा लेते हो
हम मुहब्बत के लिए जीते रहे और मर भी गए
आप मुझको नहीं खुद को भी दगा देते हो
मुझको मेरे किस ज़ुर्म की स----------…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on July 10, 2012 at 11:24am — 9 Comments

मेरी आँखों में जो देखा गया है ... तेरे ही अक़स को पाया गया है ...

मेरी आँखों में जो देखा गया है ...

तेरे ही अक़स को पाया गया है ...



मुझे आइन-ए-तहज़ीब समझा ...

वो शायद  इस लिये शर्मा गया है ...



वही जिसने मुझे दीवाना  समझा ...

जहाने दिल पे मेरे छा गया है ...



निगाहों से न बच पाया मैं उसकी ...

मुझे इस तोवर से ढूंढा  गया है ...



उसे हुस्ने-सरापा कह दिया था ...

उसी दिन से वो बस इतरा गया है ...



ये किसके लम्स का झोंका था आख़िर  ...

मेरे कमरे को जो महका गया है ... …

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Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 9, 2012 at 6:30pm — 6 Comments

जलाया जब रातों में मुझको

छोड़ कर उल्फत की गलियां, मैं तेरे बिन निकल आया,

जलाया जब रातों में मुझको, इक नया दिन निकल आया,

दिल में दफनाई थी यादें, आज जो फुर्सत में खोदीं,

बे-दर्द जिन्दा जख्मों का, वही पल-छिन निकल आया,

सोंचकर रात भर जागे, सबेरा कल नया होगा,

मगर बीता वही समय उठ के , प्रतिदिन निकल…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 9, 2012 at 4:30pm — 13 Comments

तेरी बिंदिया क्या बिजली से कम है

हे भगवान, यह प्यार भी क्‍या चीज है.  कुछ अच्छा नहीं लगता है.  न जाने क्या हो जाता है. रातों की नींद और दिन का चैन गायब सा हो जाता है. अक्ल भी बहुत होती है, फिल्में भी बहुत देखी जाती है. प्यार करने वाले कभी डरते नही. प्यार कुर्बानी मांगता है. वह देने को तैयार हो जाते है. अपने घर-परिवार की. आखिर घर वालों ने  क्या ही किया है और जो भी किया है वह तो उनका फर्ज था, जो उन्होंने पूरा किया. सबसे अहम बात यह है कि सच्चा प्यार जिंदगी में सिर्फ एक बार ही मिलता है, फिर जब सच्चा प्यार मिल रहा है तो…

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Added by Harish Bhatt on July 9, 2012 at 2:00am — 11 Comments

बरसात

रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे
जब याद तुम्हारी आती है ।
बिन मौसम ही मेरे घर में
वो बरसात ले आती है ।
जब पड़ी मेह की बूंदे
मुस्कुराते उन फूलों पर
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है ।
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो 
दोनों भिगो जाती हैं ।

- दीप्ति शर्मा

Added by deepti sharma on July 8, 2012 at 8:30pm — 31 Comments

मुस्कुराना भूल आये हैं

ख़ुशी से हंसते-हंसते लब, मुस्कुराना भूल आये हैं,

आज हम अपने ही घर का, ठिकाना भूल आये हैं,



यादों के सब लम्हे , यादों से मिटाकर हम,

उसके साथ वो गुजरा, जमाना भूल आये हैं,

बुझाकर रख गई जब वो, सुहाने साथ बीते पल,

सुलगता यादों का वो पल छिन, जलाना भूल आये…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 8, 2012 at 1:30pm — 10 Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३८

पुणे से पत्नी को लिखा पत्र

 

प्यारी बिन्नी,

 

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

जहाँ के पेड पौधे, खेत खलिहान और

कुत्ते भी हमसे बातें किया करते थे

 

वो गांव क्या था पूरा परिवार था

हर आदमी इक दूसरे के प्रति

कितना जिम्मेवार था

सबकी खुशियाँ हमारी खुशियाँ थीं और

हमारे दुःख में हर कोई हिस्सेदार था

 

गांव के चौधरी यही तो कहा करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते…

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Added by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 1:00pm — 5 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २०

पूरा हो या अधूरा अरमाँ निकल ही जाता है

करीब आ के दूर कारवाँ निकल ही जाता है

 

जो न बदलें हालात तो खुद को बदल डालो

जंगलोंसे निकलो आस्माँ निकल ही जाता है

 

रहेंगे कबतक मुन्हसिर गुंचे खिलही जाते हैं

कभीतो ज़िंदगीसे बागवाँ निकल ही जाता है

 

पत्थरोंसे भी मिट जाती हैं इबारतें समय पे

हो गहरा दिल का निशाँ निकल ही जाता है

 

मसीहा आते हैं इम्तेहा-ए-गारतपे हर दौर में

दौरेज़ुल्मियत से ये जहाँ निकल ही जाता…

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Added by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 12:56pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३७

मरना क्या है?

 

जब मेरे दादा मरे थे तो मैं बहुत छोटा था, मुझे मालूम न हो सका कि मरना क्या है 

कुछ अजीब सा माहौल था मगर फिर सब अच्छा लगा 

घर में भोज हुआ और खाने पीने को अच्छा मिला.

 

जब मेरे चाचा मरे तो मैं कुछ बड़ा हो चुका था, माहौल ग़मगीन था, लोग रो रहे थे, सन्नाटा था 

मगर फिर सब अच्छा लगा 

घर में भोज हुआ और खाने पीने को अच्छा मिला.

 

जब मेरे पिता मरे तो पहली बार दुःख हुआ, लगा…

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Added by राज़ नवादवी on July 8, 2012 at 12:49pm — 10 Comments

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