पूरा हो या अधूरा अरमाँ निकल ही जाता है
करीब आ के दूर कारवाँ निकल ही जाता है
जो न बदलें हालात तो खुद को बदल डालो
जंगलोंसे निकलो आस्माँ निकल ही जाता है
रहेंगे कबतक मुन्हसिर गुंचे खिलही जाते हैं
कभीतो ज़िंदगीसे बागवाँ निकल ही जाता है
पत्थरोंसे भी मिट जाती हैं इबारतें समय पे
हो गहरा दिल का निशाँ निकल ही जाता है
मसीहा आते हैं इम्तेहा-ए-गारतपे हर दौर में
दौरेज़ुल्मियत से ये जहाँ निकल ही जाता है
राहीमें हो हौसला तो राहकी तवालत क्या है
वो चलके खिरामाँखिरामाँ निकल ही जाता है
बिखरना हुस्नकी अदा है ज़ुल्फेजीनत से भी
इक रेशा-ए-काकुले-पेचाँ निकल ही जाता है
गो लंबा है नफ़सका कयाम जिस्ममें लेकिन
मीयाद पूरी हुईतो मेहमाँ निकल ही जाता है
रहे फ़कीरकी तरह दे दिया जो दे सकते थे
ज़रूरत में किया अहसाँ निकल ही जाता है
कितनीभी करूँ तदबीर कि न छोडूंगा इसबार
हाथ आके वो गुलेबदामाँ निकल ही जाता है
उफ़ कि क्या दोशीज़गी-ए-बशक्लेक़यामत है
तुझे देखके ये कॉलेजुबां निकल ही जाता है
नहो पास माया खानेको या आशियाँ रहनेको
करम खुदाका कोई मेज़बां निकलही जाता है
न घबराओ इब्तिदाए-इश्क की रुसवाइयों से
लगती है आग तो धुआँ निकल ही जाता है
मजहबी झगड़ेको क्या सबात आलमे फ़नासे
हिंदू हो या कि मुसलमाँ निकल ही जाता है
दिल न हो तो बज़्मेमुसर्रत भी क्या चीज़ है
दिलहो तो खुशीका सामाँ निकल ही जाता है
लगता है तवील जो होते हैं सरे राहेमुश्किल
पे सब्र करो राज़ दौरेपरेशाँ निकलही जाता है
© राज़ नवादवी
पुणे, २८/०१/२०१२
लफ़्ज़ों के मानी-
मुन्हसिर- निर्भर; गुंचे- कली; इबारत- लिखावट; इम्तेहा-ए-गारतपे- विनाश की पराकाष्ठा पे; दौरेज़ुल्मियत से- अंधकार के युग से; तवालत- लम्बाई; चलके खिरामाँखिरामाँ- धीरे धीरे चलके ; ज़ुल्फेजीनत भी- सुन्दर ज़ुल्फ़ से भी; इक रेशा -ए-काकुले-पेचाँ- मुड़े हुए बाल का एक रेशा; नफ़सका कयाम जिस्ममें- साँसों का शरीर में प्रवास; मीयाद- तय समय; तदबीर- उपाय; गुलेबदामाँ- फूल के रंग वाला; दोशीज़गी-ए-बशक्लेक़यामत- क़यामत सी मारने वाली जवानी; कॉलेजुबां- मुंह के शब्द; माया- धन; करम- कृपा; इब्तिदाए-इश्क की रुसवाइयों से- शुरुआती प्यार की बदनामियों से;सबात- स्थाईत्व; आलमे फ़ना- मृत्युलोक;बज़्मेमुसर्रत- खुशी से लबरेज़ महफ़िल; सामाँ- कारण, उपादान कारण; तवील- लंबा;
Comment
रेखाजी, आपकी बधाई का दिल से शुक्रिया.! आपकी बातों से हमें मालूम हुआ, मेरे घर पे भी कोई जलता है दिया.
आपका, राज़ नवादवी!
राज़ जी ,
जो न बदलें हालात तो खुद को बदल डालो
जंगलोंसे निकलो आस्माँ निकल ही जाता है,बहुत खूब ,खुद को बदलो जिंदगी के हालत बदल जाएँ गे ,बधाई
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