**********************************
दिख रही वो ज़िन्दगानी और है;
मुझ पे जो बीती कहानी और है;
ख़ाक कर डाला मगर हम पर अभी,
इक क़यामत उसको ढानी और है;
कम न थीं पहले ही तेरी हरकतें,
और अब ये बदज़ुबानी और है;
दांव सारे आज़मा हम हैं चुके,
आख़िरी बाज़ी लगानी और है;
कश्तियाँ मझधार से लड़ आईं पर,
इक लहर आती तूफ़ानी और है;
भर गया जी इस जहाँ से अब मुझे,
इक नई दुनिया बनानी और है;
वो जवां थे मर मिटे इस मुल्क पर,
आज की ये नौजवानी और है;
ये सियासत का है मरकज़ आज भी,
देश की पर राजधानी और है;
मशवरे देता रहे 'वाहिद तमाम,
अपने जी में हमने ठानी और है;
Comment
मित्र वीनस जी,
मैं अगर इस तरह से ग़ज़ल कहने में कुछ हद तक सफल हो पाया हूँ तो इसमें आपका ही योगदान सर्वाधिक है| आपके सुझावों पर अमल करने के प्रयास में लगा हुआ हूँ शीघ्र ही प्रभाव दिखने लगेगा| :-))
आपका हार्दिक धन्यवाद डॉ. साहिब.. 'तूफ़ानी' में 'तू' को गिरा कर 'तु' पढ़ा है.. मेरे ख़याल से ये कहन में निकल चलेगा.. 'लेकिन' और 'पर' के बीच के अंतर पर अवश्य विचार करूँगा हालाँकि यह भी मुझे 'चलेबल' लग रहा है :-))| सराहना के लिए पुनश्चः धन्यवाद..
वाह वा संदीप जी
क्या कहने एक से बढ़ कर एक शेर के लिए बधाई स्वीकारें
इस ग़ज़ल पर पहले भी काफी बात हो चुकी है आज पुनः देखा तो सोचा कमेन्ट भी कर ही दिया जाए, ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आवे ...... हा हा हा
वाहिद भाई खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आपको बहुत सारी दाद देता हूँ। अच्छी ज़मीन पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने ! तूफानी शब्द बहर से थोड़ा खटक रहा है....और ग़ज़ल में "लेकिन" के भाव के लिए "पर" शब्द प्रयोग करना कहन तक उचित है इसे देख लीजिएगा। एक बार पुन: आपको मुबारकबाद !!
अपने ख़ास अंदाज़ में प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद दीप जी! आपकी हर दाद क़ुबूल है! :-)
वाह वाह
एक एक शेर की अपनी जुबानी है लाजवाब
शानदार ग़ज़ल और जानदार ग़ज़ल कही है संदीप भाई जी
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
ग़ज़ल आपको पसंद आई इसके लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ|
हौसलअफ़ज़ाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया उमाशंकर जी!!
आदरणीय सौरभ भईया,
आपकी पारखी दृष्टि से मिली सराहना निश्चय ही एक सम्मान के समान है| दरअस्ल ये ग़ज़ल ग़ालिब की एक ग़ज़ल से प्रेरित है और तरही मुशायरे की तर्ज पर उनके एक मिसरे 'अपने जी में हमने ठानी और है' को लेकर लिखी गई है| :-))
सादर,
सादर भ्रमर भाई.. आपका उत्साहवर्धन सदैव ही एक नवीन ऊर्जा का संचार करता है! हार्दिक आभार..!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online