हे भगवान, यह प्यार भी क्या चीज है. कुछ अच्छा नहीं लगता है. न जाने क्या हो जाता है. रातों की नींद और दिन का चैन गायब सा हो जाता है. अक्ल भी बहुत होती है, फिल्में भी बहुत देखी जाती है. प्यार करने वाले कभी डरते नही. प्यार कुर्बानी मांगता है. वह देने को तैयार हो जाते है. अपने घर-परिवार की. आखिर घर वालों ने क्या ही किया है और जो भी किया है वह तो उनका फर्ज था, जो उन्होंने पूरा किया. सबसे अहम बात यह है कि सच्चा प्यार जिंदगी में सिर्फ एक बार ही मिलता है, फिर जब सच्चा प्यार मिल रहा है तो उसको क्यों छोडा जाए. हमारा इतिहास बताता है कि प्यार के चक्कर में आकर लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद, सोनी-महीवाल सभी ने दुनिया को छोड़ दिया था. उनको दुनिया से कोई मतलब नहीं था. लेकिन अब दुनिया को नहीं छोड़ सकते, क्योंकि दुनिया को छोडने पर कुछ भी नहीं मिलने वाला. हां यह जरूर है कि अगर घर-परिवार व समाज ने प्यार का विरोध किया तो यह तय है कि उनको छोडऩे में जरा भी वक्त नहीं लगाते. अब क्या करें प्यार में इंसान अंधा हो जाता है. फिर प्यार सपनों की सुनहरी दुनिया में ले जाता है, जहां पर सिर्फ और यही कहा जा सकता है कि (लडक़ा) देखो मैंने देखा है एक सपना, फूलों के शहर में हो घर अपना............ (लड़क़ी) अच्छा ये बताओ कहां पे है पानी, (लडक़ा) बाहर बह रहा है झरना दीवानी, (लड़क़ी) बिजली नहीं है यही एक गम है, (लडक़ा) तेरी बिंदिया क्या बिजली से कम है. आखिर जब बिजली और पानी फ्री में मिल रहा है तो क्या जरूरत है कुछ काम करने की. ऐसी हसीन दुनिया को कौन छोडऩा चाहेगा. भगवान का बहुत-बहुत शुक्रिया हकीकत की कड़वी सच्चाई से दूर सपनों की दुनिया में पहुंचाने के लिए. आखिर घर परिवार को समझना चाहिए कि उनके बच्चों ने अपने लिए बिजली पानी का इन्तजाम तो कर ही लिया है रही बात खाने की तो वह भी मिल ही जाएगा. यह बात भी तो सच है कि जो काम लड़ कर नहीं हो सकता वो प्यार से हो जाता है.
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आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद आपको मेरा लेख अच्छा लगा, बस यूं ही कोशिश करता हूं आप सबके सानिध्य में मैं भी कुछ ऐसा लिख जो अच्छा लगे और मन को प्रसन्न रखे
वाह वाह बहुत खूब. बधाई.
वाह हरीश जी आपने आज की पीढ़ी को... सुन्दर व्यंग लेख से हकीकत का दर्शन करवाया है
हरीश जी बड़ी सरलता से आपने बताया है. मैं आपसे सहमत हूँ. बधाई
वाह, क्या गजब का व्यंग है। ऐसा हो जाय तो फिर तो बिजली पानी की समस्या दूर हो जाय। लोग इक दूसरे की आँखो और दिलों मे रह लें। और घर की भी जरूरत न पड़े
मन और तन के अपने-अपने दायरे होते हैं. जब मन पर तन हावी हो जाय तो और मन तन का दास, तो भावनाओं की ऊँचाइयाँ बौनी हो जाती हैं.
आज की युवा पीढ़ी सतही उफान में व्यस्त है. इसकी इतनी सुन्दर विवेचना हुई है कि मन साँसें खींच कर सिर पीटता दीख रहा है.
लेकिन क्या वे भी सुन रहे हैं जिनको सुनाने की नैतिक जम्मेदारी लेखक उठाता दीख रहा है ? खाये-पीये-अघाये हुए बापों के मँसफूटे साहबज़ादे इश्क़ करने का मतलब तुरत-फुरत अधनंगे हो जाना समझते हैं.
हरीशभट्ट जी की इस व्यंग्यात्मक रचना के लिये सादर बधाई.
हरीश जी ,प्यार में सपनो की दुनिया बहुत रंगीन होती है ,जब भी मन उदास हो बस पहुंच जाओ उस रंगीन दुनिया में ,आनंद ही आनंद ,मीठी सी इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई
हरीश जी नमस्कार|
वाह जी वाह हरीश भट्ट साहेब.......
ऐसी हसीन दुनिया को कौन छोडऩा चाहेगा. भगवान का बहुत-बहुत शुक्रिया हकीकत की कड़वी सच्चाई से दूर सपनों की दुनिया में पहुंचाने के लिए. आखिर घर परिवार को समझना चाहिए कि उनके बच्चों ने अपने लिए बिजली पानी का इन्तजाम तो कर ही लिया है रही बात खाने की तो वह भी मिल ही जाएगा.
बहुत खूब कहा .........
आनंद आया
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