मै
इक आवाज हूँ.
जब किसी मजलूम के
मुँह से निकलूँ,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी की
सिसकी बन
आँखों से छलकूँ
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी के
दर्द में
कराह बन जाऊं,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी के
दिल से
आह बन टपकूँ,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी के
चहरे पर
ख़ुशी बन चमकूँ,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै..................
वीणा सेठी
Comment
मर्मस्पर्शी भावों को अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई, आदरणीया वीणा जी।
सादर,
विजय निकोर
मेरी रचना को पसंद करने व उसपर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद. भविष्य में भी इसी तरह हौसलाफजाई की तमन्नाई हूँ.
बहुत बढ़िया रचना स्वरों का भाव अनुसार स्पंदन ......मुझे इल्जाम ना देना
बहुत खूब हार्दिक बधाई
जब किसी की
सिसकी बन
आँखों से छलकूँ
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
जब किसी के
दर्द में
कराह बन जाऊं,
मुझे इल्जाम मत देना.
मै...
काहे का इल्जाम अरे अब सांस सांस पर सेंसर लगता
वाह बहुत खुबसूरत रचना
बधाई आपको
आदरणीया वीणा जी,
आपने 'वाणी' की भावनात्मक व्यथा को बड़े ही मार्मिक ढंग से अभिव्यक्ति प्रदान की है| साधुवाद आपको,
वाह बेहतरीन पंक्तियाँ सुन्दर अभिव्यक्ति.
बेहतरीन अभिव्यक्ति
आवाज़ अभिव्यक्ति संप्रेषण का सबसे सतही माध्यम है लेकिन वीणा सेठी जी की आवाज़ स्वयं शोर नहीं करती बल्कि संत्रस्त भावनाओं को भरपूर चीखने देती है. यही वह नायाब खूबसूरती है जो चेहरे पर चमक के रूप में दीखती है, बतियाती हुई..
वीणाजी को हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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