२२१/२१२१/२२२/१२१२
भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें
समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१।
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गैरों से जख्म खायें तो अपनों से बोलते
अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।
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बातें सुधार से अधिक भाती हैं टूट की
दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।
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टूटन दरो - दीवार की करते रफू मगर
जाते नहीं हैं छोड़ कर घर को जो घर कहें।४।
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जाने हुआ है क्या कि सब लगती हैं रात सी
दिखती नहीं है एक भी जिसको सहर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2020 at 7:41am — 7 Comments
एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैं
उसकी यादों में चल रहा हूँ मैं (1)
तेरी यादों में ज़िन्दगी जी कर,
ज़िन्दगी को मसल रहा हूँ मैं (2)
कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?
तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं (3)
प्यार में इक महीन सा काग़ज़,
भीग आँसू से गल रहा हूँ मैं (4)
तुम मुझे देख मुस्कुराते हो,
सारी दुनिया को खल रहा हूँ मैं (5)
वो मेरी राह में खड़ी होगी ,
इसलिए तेज चल रहा हूँ…
Added by सूबे सिंह सुजान on May 3, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
ग़ज़ल:
आग कैसी जल रही है आजकल
क्या वबा ये पल रही है आजकल
हर ख़बर अब क़हर ही बरपा रही
पाँव बिन जो चल रही है आजकल
धैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ
हर चमक तो ढल रही है आजकल
हो रही है बेअसर हर घोषणा
योजना हर टल रही है आजकल
नफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही
ज़ह्र बनकर फल रही है आजकल
हाल अपना मैं कभी कहता नहीं
ख़ामुशी पर खल रही है आजकल
फिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा
जोर…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 3, 2020 at 3:00pm — 3 Comments
एक गीत
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संकट दूर कभी होता है
संकट संकट कहने से क्या ?
त्राण मिलेगा तभी आप यदि
समाधान ढूंढें संकट का |
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जीवन में खुशियाँ यदि हैं तो, संकट का भी तय है आना |
गिरगिट जैसे रंग बदलकर ,रूप दिखाता है यह नाना |
धीरज रखकर हिम्मत रखकर , इससे मानव लड़ सकता है
ख़ुद पर संयम रखने से ही , तय होगा संकट का जाना |
पूरा जोर लगा दें अपना , हम भारत के लोग अगर…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 3, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Dr. Geeta Chaudhary on May 3, 2020 at 2:00am — 4 Comments
पास उसके शक्ति श्रम की, पास उसके नूर है
वह जगत निर्माण करता अलहदा मजदूर है।।
घर खुला आकाश उसका औ शयन को है धरा
अस्थि पंजर शेष काया देख लगता अधमरा।।
भूख पीड़ित वो, नहीं कुछ और बातें सोचता
क्लेश चिन्ता दीनता तन रुग्ण यौवन नोचता।।
पास उसके पेट, भोजन चाहिए हर हाल में
ढूंढता जिसको फिरे वो ज़िन्दगी जंजाल में।।
वो बनाया ताज लेकिन नृप हुआ मशहूर है
जात क्या औ धर्म क्या मजदूर तो मजदूर है।।
पाँव…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on May 2, 2020 at 7:30pm — 16 Comments
ग़ज़ल
1222 1222 1222 122
करेगा दम्भ का यह काल भी अवसान किंचित ।
करें मत आप सत्ता का कहीं अभिमान किंचित ।।
क्षुधा की अग्नि से जलते उदर की वेदना का ।
कदाचित ले रहा होता कोई संज्ञान किंचित ।।
जलधि के उर में देखो अनगिनत ज्वाला मुखी हैं।
असम्भव है अभी से ज्वार का अनुमान किंचित।।
प्रत्यञ्चा पर है घातक तीर शायद मृत्यु का अब ।
मनुजता पर महामारी का ये संधान किंचित ।।
चयन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 2, 2020 at 4:23pm — 9 Comments
उन गलियों को छोड़ दिया
उन राहों से मुँह मोड़ लिया
अपनी यारी के किस्से जहां
आज भी गूंजा कराती है
अब बची रही कुछ खास नहीं
उन उम्मीदों की प्यास नहीं
तेरे घर के चौबारे पर अब भी
आवाज़ जो गूंजा करती है
वो जुते में चिरकुट रखना
पीछे से यूँ पेपर तकना
हिंदी वाली मिस हमेशा
याद अभी भी करती है
वो रातों को पढ़ने जाना
एक दूजे के घर चढ़ आना
किताबे पिली पन्नी के अब भी
हर रात वही पर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 2, 2020 at 2:37pm — 5 Comments
"क्या बहन, कल से बंदी ख़तम हो जायेगी?, एक बाई ने अपने दरवाजे से सामने वाले घर की बाई से पूछा.
"पता नहीं रे, हो सकता हैं ख़तम हो जाए", उसने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की.
"अच्छा तो ये बताओ कि क्या बंदी ख़त्म होते ही दारू की दुकान भी खुल जायेगी?, पहली ने फिर पूछा.
दूसरी ने लगभग घबराते हुए कहा "ख़तम नहीं होता तो अच्छा था".
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on May 2, 2020 at 12:52pm — 6 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
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बरस हुए हैं कई न तुमने की गुफ़्तगू है न हाल पूछा
कहाँ हो तुम ये पता नहीं क्यों न हमने कोई सवाल पूछा
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सँभाल कर सब रखे जो ख़त हैं उन्हीं को पढ़कर करें गुज़ारा
किताब के सूखे फूल ने भी है कैसा हुस्न-ओ-जमाल पूछा
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बिना तुम्हारे फ़ज़ा में ख़ुश्बू न संदली अब रही है जानाँ
बहार ने तितलियों से इक दिन तुम्हारा भी हाल चाल पूछा
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तुम्हारा जायज़ है रूठना पर तवील इतना कभी नहीं था
हमारे …
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 2, 2020 at 11:30am — No Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2020 at 9:41am — 6 Comments
द्वार पर वो नित्य आकर बोलता है
किन्तु अपना सच छुपाकर बोलता है।१।
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दोस्ती का मान जिसने नित घटाया
दुश्मनों को अब क्षमा कर बोलता है।२।
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हूँ अहिन्सा का पुजारी सबसे बढ़कर
हाथ में खन्जर उठाकर बोलता है।३।
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गूँज घन्टी की न आती रास जिसको
वो अजाँ को नित सुनाकर बोलता है।४।
***
दौड़कर मंजिल को हासिल कर अभी तू
पथ में काँटे वो बिछा कर बोलता …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2020 at 10:00pm — 5 Comments
मापनी 2122 1212 22/112
गर कहो तो जनाब हो जाऊँ
तुम जो देखो वो ख़्वाब हो जाऊँ
रोज पढ़ने का गर करो वादा
प्रेम की मैं क़िताब हो जाऊँ
मुझको काँटों से डर नहीं लगता
चाहता हूँ गुलाब हो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 1, 2020 at 12:30pm — 6 Comments
श्रमिक दिवस पर श्रमजीवी को आओ शीश झुकाएँ।
बलाक्रान्त शोषित निर्बल को मिलकर सभी बचाएँ।
दुरित दैन्य दुख झेल रहे हैं
सदा मौत से खेल रहे हैं।
तृषा तपन पावस तुसार सह
जीवन नौका ठेल रहे हैं।
हर सुख से जो सदा विमुख हो उस पर बलि-बलि जाएँ।
निर्मित जो करता नवयुग तन,उसे नहीं ठुकराएँ।
आजीवन कटु गरल पी रहे
दुर्धर जीवन सभी जी रहे।
हाँफ-हाँफ कर विदीर्ण दामन
जीने के हित सदा सी रहे।
कर्म निरत गुरु गहन श्रमिक…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on May 1, 2020 at 11:30am — 8 Comments
221 1221 1221 122
तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह
तू है दुआ तो एक असर वाली दुआ रह
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तू अब्र है तो बर्क़ से झगड़ा न किया कर
हर हाल में पाबंद-ए-रह-ए-रस्म-ए-वफ़ा रह
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तू शम'अ है तो ताक़ में रह कर ही जला कर
तूफ़ान है तो दिल में मेरे यार उठा रह
**
तू याद किसी की है तो हिचकी में समा जा
तू ज़ख़्म अगर दिल का है दिन रात हरा रह
**
आज़ाद तेरे इश्क़ से हो पाऊँ न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 30, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
Added by amita tiwari on April 30, 2020 at 3:00am — 5 Comments
आहट .....
दिल
हर आहट को
पहचानता है
आहट
बेशक्ल नहीं होती
होती हैं उसमें
हज़ारों ख़्वाहिशें
जिनके इंतज़ार में
ज़िंदगी
रहती है ज़िंदा
फ़ना होने के बाद भी
सहर होती है साँझ होती है
वक़्त मगर
ठहरा ही रहता है
किसी आहट के इंतज़ार में
नज़रें
अपनी ख़्वाहिशों के अक़्स
देखने को बेताब रहती हैं
तसव्वुर में
ज़िंदा रहती हैं
आहटें
मगर
मिलता है धोख़ा
सायों…
Added by Sushil Sarna on April 29, 2020 at 8:04pm — 6 Comments
एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल (1222 *4 )
.
ज़मीँ पर हल चलाता है इसी उम्मीद में कोई
कभी तो जाग जाएगी मेरी क़िस्मत अगर सोई
**
मेरे किरदार की दौलत रहे महफूज़, काफ़ी है
मुझे कुछ ग़म नहीं होगा मेरी दौलत अगर खोई
**
भले इल्ज़ाम मुझ पर बेवफ़ा होने का लग जाये
मगर बर्दाश्त कैसे हो उसे रुस्वा करे कोई
**
अभी भी रोक दो सब क़ह्र क़ुदरत पे न बरपाओ
अरे बर्बाद कर देगी कभी क़ुदरत अगर रोई
**
मेरा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 29, 2020 at 12:00pm — 6 Comments
आत्मावलंबन
बाहरी दबाव और आंतरिक आदर्श
असीम उलझन और तीव्रतम संघर्ष
ऐसा भी तो होता है कभी
कि मन का सारा संघर्ष मानो
किसी एक बिंदु पर केंद्रित हो उठा हो
और पीड़ा ... जहाँ कहीं से भी उभरी
सारी की सारी द्रवित हो कर
उस एक बिंदु के इर्द-गिर्द
ठहर-सी गई हो
बह कर कहीं और चले जाने का
उस पीड़ा का
कोई साधन न हो
वाष्प-सा उसका उड़…
ContinueAdded by vijay nikore on April 28, 2020 at 6:52am — 6 Comments
आज धरती धन्य है , उसका हृदय प्रमुदित हुआ
स्वच्छ वायु , स्वच्छ जल , पर्यावरण निर्मल हुआ
गर यही स्थिति रही तो संक्रमण मिट जाएगा
यदि पुनः मानव ना अपनी गलतियां दोहराएगा
क्या कभी नभ सर्वदा उज्ज्वल धुला रह पाएगा ?
या कि फिर से धुन्ध का अजगर निगल ले जाएगा
है यही सपना निशा में दमकते नक्षत्र हों
चँहु दिशा पंछी चहकते उपवनों में मस्त हों
शुद्ध हो वातावरण , कैसे ? बड़ों से ज्ञान लें
उनकी अनुभव जन्य ज्ञान मशाल…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 27, 2020 at 7:39pm — 6 Comments
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