शिकवों के दौर थे काफी,
साथ ना तेरे आने को,
पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी,
तेरा साथ निभाने को।
अल्फाज़ों का शोर बहुत था,
तुझे दगा बताने को।…
ContinuePosted on March 11, 2023 at 10:28pm — 10 Comments
Posted on May 3, 2020 at 2:00am — 4 Comments
ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,
रुको जरा , सांस लो तनिक ,
सम्भलो जरा I
सब कुछ पाने की चाह में ,
कुछ टूट गया उस आशियाने में,
कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,
ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I
रुको जरा ........
घर पर नन्हों की आस में ,
और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,
छूटे किसी साज और रियाज़ में ,
वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I
रुको जरा ........
लूडो की गोटियाँ खोजो ,
शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,
कैरम की धूल…
Posted on March 27, 2020 at 3:32pm — 2 Comments
तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?
ये दुश्चरित्र है तुम्हारा,
सताता मुझे क्यूँ है?
तुम इन्सान ही बुरे हो,
इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है?
तुम्हे इसमें सुकून है बहुत,
ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है?
ये धर्म के ठेकेदार हैं,
फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं?
ये दोषी है समाज…
ContinuePosted on January 12, 2020 at 8:09pm — 4 Comments
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