Posted on May 3, 2020 at 2:00am — 4 Comments
ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,
रुको जरा , सांस लो तनिक ,
सम्भलो जरा I
सब कुछ पाने की चाह में ,
कुछ टूट गया उस आशियाने में,
कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,
ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I
रुको जरा ........
घर पर नन्हों की आस में ,
और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,
छूटे किसी साज और रियाज़ में ,
वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I
रुको जरा ........
लूडो की गोटियाँ खोजो ,
शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,
कैरम की धूल…
Posted on March 27, 2020 at 3:32pm — 2 Comments
तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?
ये दुश्चरित्र है तुम्हारा,
सताता मुझे क्यूँ है?
तुम इन्सान ही बुरे हो,
इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है?
तुम्हे इसमें सुकून है बहुत,
ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है?
ये धर्म के ठेकेदार हैं,
फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं?
ये दोषी है समाज…
ContinuePosted on January 12, 2020 at 8:09pm — 4 Comments
जब पीड़ा आसुओं को मात दे,
और संभाले ना संभले मन।
जब यादें मेरी दिल पर दस्तक दें,
और बेचैन हो ये अंतर्मन।
तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये,
मैं आऊँगी भाव बनकर ज़रूर।
जब मेरी कमी तुमको खले,
और खोजे अक्श मेरा तुम्हारा मन।
जब बोझिल हो रातें काटे ना कटे,
और नींद से आँख-मिचौली खेले नयन।
तब तुम कोई सपना सजाना प्रिये,
मैं आऊँगी तुमसे मिलने ज़रूर।
जब पतझड़ में झड़ते हो पत्ते पुरातन,
और लहरों को देख विचलित हो मन।…
Posted on December 26, 2019 at 2:00pm — 6 Comments
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