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ज़मीँ पर हल चलाता है इसी उम्मीद में कोई(९२ )

एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल  (1222 *4 )

.

ज़मीँ पर हल चलाता है इसी उम्मीद में कोई

कभी तो जाग जाएगी मेरी क़िस्मत अगर सोई

**

मेरे किरदार की दौलत रहे महफूज़, काफ़ी है

मुझे कुछ ग़म नहीं होगा मेरी दौलत अगर खोई

**

भले इल्ज़ाम मुझ पर बेवफ़ा होने का लग जाये

मगर बर्दाश्त कैसे हो उसे रुस्वा करे कोई

**

अभी भी रोक दो सब क़ह्र क़ुदरत पे न बरपाओ

अरे बर्बाद कर देगी कभी क़ुदरत अगर रोई

**

मेरा लख्ते-जिगर तालीम लेकर मीर बन जाये

इसी उम्मीद में इक माँ ने झूठी थालियाँ धोई

**

गुमाँ होता है मुझको बातिलों के साथ में रहकर

अभी तक भी नहीं छोड़ी है मैंने खू-ए-हक़-गोई

**

शजर उम्मीद के सारे बने हैं ठूँठ तब आकर

अगर देता है दिलजोई वो कैसी यार दिलजोई

**

जो निकला वक़्त हाथों से नतीजा कुछ न निकलेगा

रगड़ना उम्र-ए-पीरी में मियाँ बेकार है लोई

**

रदीफ़-ओ-क़ाफ़िया का वस्ल बस अल्फ़ाज़ से कर दो

'तुरंत' आसाँ नहीं होती है इतनी भी ग़ज़लगोई

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 5, 2020 at 3:50pm

बंधू  सालिक गणवीर  जी , आपने रचना को सराहा उसके लिए दिल से आभार | आपका कहना सत्य है , शब्द जूठी ही है , लेकिन हम लोग बोलचाल में झूठी ही प्रयोग करते हैं इसलिए यह त्रुटि हुई ,सादर अतिरिक्त आभार | 

Comment by सालिक गणवीर on May 5, 2020 at 10:11am
आदरणीय गहलोत जी
सादर अभिवादन
बहुत उम्दा ग़ज़ल पोस्ट करने के लिए दिली मुबारकबाद स्वीकारें.
धोई वाले शे'र में जूठी के बजाय झूठी टाइप हो गया है.
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 2, 2020 at 7:06pm

सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by नाथ सोनांचली on May 2, 2020 at 6:41pm

आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। आप के सृजन को नमन। गज़ब की प्रतिभा भरी है आपमे। कथ्य को शिल्प में गढ़ कर जो आप रचनाएँ लाते हैं, कि कहिये मत। इस ग़ज़ल पर बहुत बहुत बधाई।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 30, 2020 at 3:34pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी हार्दिक आभार एवं नमन | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2020 at 11:11am

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

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