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बरस हुए हैं कई न तुमने की गुफ़्तगू है न हाल पूछा
कहाँ हो तुम ये पता नहीं क्यों न हमने कोई सवाल पूछा
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सँभाल कर सब रखे जो ख़त हैं उन्हीं को पढ़कर करें गुज़ारा
किताब के सूखे फूल ने भी है कैसा हुस्न-ओ-जमाल पूछा
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बिना तुम्हारे फ़ज़ा में ख़ुश्बू न संदली अब रही है जानाँ
बहार ने तितलियों से इक दिन तुम्हारा भी हाल चाल पूछा
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तुम्हारा जायज़ है रूठना पर तवील इतना कभी नहीं था
हमारे दिल ने सनम हमीं से - "खड़ा किया क्यों वबाल" पूछा
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सवाल था तिफ़्ल के ये मन में जवाब देना बड़ा है मुश्किल
बनाई दुनिया हसीं ख़ुदा ने "किया है कैसे कमाल" पूछा
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ख़मोशियों का ज़माने भर में जहाँ भी देखें लगा है पहरा
वबा ने आकर हर इक वतन में "बशर तेरी क्या मज़ाल" पूछा
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सियासतों ने ग़रीब को ही बना निशाना सदा है लूटा
मगर किसी ने "ग़रीब क्यों है इन्हीं के हाथों हलाल" पूछा ?
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हज़ारों दाग़ी करे हकूमत अवाम पर कोई कुछ न बोले
मगर रियाया ने मीर को भी किया है क्या गोलमाल पूछा ?
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'तुरंत' कहता ग़ज़ल ये मुमकिन हुआ है मेहनत से उसकी यारो
मगर किसी ने कभी अभी तक कहाँ से आते ख़याल पूछा ?
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
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