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तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह(९३ )

221 1221 1221 122 

तू यार हवा गर है तो मानन्द-ए-सबा रह

तू है दुआ तो एक असर वाली  दुआ रह

**

तू अब्र है तो बर्क़ से झगड़ा न किया कर

हर हाल में पाबंद-ए-रह-ए-रस्म-ए-वफ़ा रह

**

तू शम'अ है तो ताक़  में रह कर ही  जला कर

तूफ़ान है तो दिल में मेरे यार उठा रह

**

तू याद किसी की है तो हिचकी में समा जा

तू ज़ख़्म अगर दिल का है दिन रात हरा रह

**

आज़ाद तेरे इश्क़ से हो पाऊँ न जानाँ

मेरे लिए ता-ज़िंदगी ज़िन्दान बना रह

**

औरों के सहारे नहीं चलता कभी जीवन

पैरों पे बशर  अपने लगातार खड़ा रह

**

इक बार गरेबाँ में भी है झाँकना बेहतर

इलज़ाम तू दुनिया पे लगाने से बचा रह

**

किरदार को ख़ुर्शीद की मानन्द बना ले

तू हो के पुराना भी शब-ओ-रोज़ नया रह

**

मंज़िल का सफ़र हो मेरा आसान 'तुरंत'आज

तू बन के मेरी राह में नक़्श-ए-कफ़-ए-पा रह

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 3, 2020 at 1:03pm

आदरणीय Samar kabeer  साहेब , आदाब , आपकी पारखी नज़र की दाद देता हूँ और हौसला आफ़जाई के लिए दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ | 'तू है दुआ तो एक क़ुबूली-सी दुआ रह' में मुझे भी कुछ ग़लत लग रहा था ,लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था |  कर के  वाली आपकी बात भी सही है , सदा लगातार वाला मिसरा भी मुझे कमजोर लग रहा था | इस्लाह के हार्दिक आभार | 

Comment by Samar kabeer on May 3, 2020 at 12:38pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'तू है दुआ तो एक क़ुबूली-सी दुआ रह'

इस मिसरे में 'क़ुबूली-सी दुआ' वाक्य विन्यास ठीक 

नहीं है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'तू एक दुआ है तो असर वाली दुआ रह'

'तू शम'अ है तो ताक में रह कर के जला कर'

इस मिसरे में 'ताक' को "ताक़" कर लें,और यहाँ 'कर' के साथ 'के' का प्रयोग उचित नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

"तू शम'अ है तो ताक़ में रह कर ही जला कर'

'पैरों पे सदा अपने लगातार खड़ा रह'

इस मिसरे में 'सदा' और 'लगातार' शब्द खटक रहे हैं,'सदा' की जगह "यहाँ" शब्द उचित होगा ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 2, 2020 at 7:03pm

सुन्दर एवं प्रेरक शब्दों के लिये दिल से आभार ,आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  जी | सेवानिवृत आदमी के लिए कुछ काम धाम तो करना होता है नहीं , बस पढ़ना और किसी न किसी बह्र में रोज़ लिखना यही काम है आजकल | जो तुक्कामारी होती है उसे मित्रों के सामने प्रस्तुत कर देता हूँ बस | 

Comment by नाथ सोनांचली on May 2, 2020 at 6:50pm

आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। मैं तो आश्चर्य चकित हो जाता हूँ कि आप किस तरह इतनी ग़ज़ल कह पाते हैं वह भी प्रतिदिन। आपके शेर भी गजब के होते हैं। बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 2, 2020 at 11:37am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी ,

आपकी पसंद प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन के लिए अंतस से आभार संग नमन |

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2020 at 11:31am

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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